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अनोखा विवाह: उत्तराखंड में दो वृक्षों की हुई शादी, वट और पीपल ने लिए 'सात फेरे', दिल्ली-मुंबई से आए बाराती - UNIQUE WEDDING IN Bageshwar - UNIQUE WEDDING IN BAGESHWAR

Unique wedding in Bageshwar लड़का-लड़की की शादी तो सभी ने देखी होगी, लेकिन आज हम आपको वृक्षों की शादी के बारे में बताएंगे. इसे देखकर आप कहेंगे कि 'एक विवाह ऐसा भी'. दरअसल बागेश्वर जिले के अतंर्गत आने वाले मयूं गांव में पीपल और वट वृक्ष की अनोखी शादी कराई गई. इस कार्यक्रम में वट वृक्ष को दूल्हा बनाया गया, जबकि पीपल वृक्ष को दुल्हन की तरह सजाया गया. पढ़ें पूरी खबर..

Unique wedding in Tharali
उत्तराखंड में अनोखा विवाह (photo-ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 24, 2024, 12:38 PM IST

Updated : May 24, 2024, 3:50 PM IST

बागेश्वर में अनोखी शादी (video- ETV Bharat)

बागेश्वर:उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है. उत्तराखंड खूबसूरत वादियों के साथ-साथ अनोखी संस्कृति और परंपराओं का संगम है. यही कारण है कि उत्तराखंड देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. दफौट क्षेत्र के मयूं गांव में धूमधाम के साथ पीपल और वट वृक्ष की शादी कराई गई. इस अनोखे विवाह के लिए नैनीताल से आचार्य पहुंचे. सैकड़ों लोग इस विवाह के गवाह बने और शगुन आंखर गाए.

वट वृक्ष बना दूल्हा, तो पीपल वृक्ष दुल्हन:पीपल वट वृक्ष के विवाह में नैनीताल, हल्द्वानी, दिल्ली और मुंबई के प्रवासी साक्षी बने. वट वृक्ष को दूल्हे के रूप में डोली में बैठाकर गांव के गोलज्यू मंदिर ले जाया गया, जहां से कार्यक्रम शुरू हुआ. इसके बाद गाजे-बाजे और परंपरागत नृत्य के साथ गांव के सड़क मार्ग से होकर बारात गांव के हरज्यू सैम और देवी मंदिर के प्रांगण में पहुंची. ग्रामीणों ने पीपल वृक्ष को दुल्हन के रूप में सजाया था. वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह की सभी रस्में संपन्न हुईं. वहीं, नैनीताल से पहुंचे आचार्य केसी सुयाल ने कहा कि सनातन संस्कृति में वृक्ष पूजन कर पर्यावरण संरक्षण जैसे आयोजन किसी और संस्कृति में दृष्टि गोचर नहीं होते.

ऐसे कार्यक्रमों से लुप्त परंपराएं होती हैं जीवित:लेखक और पर्यावरणविद हरीश जोशी ने बताया कि ऐसे आयोजन समाज को जोड़ने का काम करते हैं और इन सबसे लुप्त हो रहीं परंपराएं भी पुनर्जीवित होती हैं. यह परंपरा वर्षों पुरानी है. संस्कृति को जीवित रखना और उसका अनुपालन करना हम सबकी पहली जिमेदारी है. उन्होंने कहा कि यह संस्कृति सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से हमें आपस में जोड़े रखती है.

जंगल खत्म होने से मानव जीवन भी खत्म: हरीश जोशी ने बताया कि मूल संस्कृति को आज के समाज तक तभी पहुंचाया जा सकता है, जब उसको मनाया जाए. आज का कार्यक्रम नई पीढ़ी के लिए भी नजीर पेश करेगा. उन्होंने कहा कि जिस तरह से आज लगातार जंगलों में आग लग रही है. उससे मानव जीवन का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा.

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Last Updated : May 24, 2024, 3:50 PM IST

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