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आस्था से बढ़कर कुछ नहीं! जगमग रोशनी होगी, भगवान कोटय्या पहाड़ी से उतरकर आशीर्वाद देंगे - MAHASHIVARATRI 2025

पलनाडु जिले के नरसारावपेट मंडल में त्रिकुटाद्री पहाड़ी पर स्थित भगवान त्रिकोटेश्वर स्वामी का मंदिर जीवंत उत्सवों का केंद्र है.

कोटप्पाकोंडा थिरुनाल्ला
भगवान त्रिकोटेश्वर स्वामी का मंदिर (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 24, 2025, 7:24 PM IST

Updated : Feb 24, 2025, 7:58 PM IST

अमरावती: आंध्र प्रदेश के कई गांवों में वैसे तो संक्रांति प्रमुख त्योहार है. दूसरी तरफ पलनाडु जिले के लोगों के लिए महाशिवरात्रि का महत्व और भी अधिक गहरा है. वैसे तो महाशिवरात्रि पूरे देश में हिंदुओं द्वारा मनाई जाती है लेकिन पालनाडु में, यह भव्य कोटप्पकोंडा थिरुनल्ला के रूप में मनाई जाती है. इस, अवसर पर यहां रात्रि के आकाश को रोशन करने वाली ऊंची इलेक्ट्रिक किरणों के निर्माण के माध्यम से भक्ति प्रदर्शित की जाती है.

इस जात्रा में रात के समय विशाल बिजली के बीम से पूरा आसमान और इलाका जगमग हो उठता है. पलनाडु जिले के नरसारावपेट मंडल में त्रिकुटाद्री पहाड़ी पर स्थित भगवान त्रिकोटेश्वर स्वामी का मंदिर जीवंत उत्सवों का केंद्र है. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. भक्त अभिषेक करते हैं, नारियल और फल चढ़ाते हैं, लेकिन जो चीज इस त्योहार को सबसे अलग बनाती है, वह है कोटप्पाकोंडा कोटय्या के प्रति लोगों की अपार भक्ति. जानकारी के मुताबिक, जात्रा में 90 से 100 फीट ऊंची लाइटिंग की जाती है.

भगवान त्रिकोटेश्वर स्वामी का मंदिर (ETV Bharat)

भक्ति और एकता की एक महीने तक चलने वाली तैयारी
इन विशाल बीमों का निर्माण एक सामुदायिक विषय है. गांव के लोग लागत को अलग रखते हुए और लगभग एक महीने तक अथक परिश्रम करते हुए एकजुट होते हैं. लकड़ी, बांस के खंभों और हजारों बिजली के बल्बों से बने बीम को सटीकता और सावधानी से तैयार किया जाता है. प्रत्येक 'प्रभा' की लागत लगभग 25 से 35 लाख रुपये होती है. हालांकि, इस खर्च को बोझ के बजाय आस्था का प्रसाद माना जाता है.

बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक पूरा गांव इसमें भाग लेता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बीम समय पर बनकर तैयार हो जाएं. तैयार होने के बाद, बीम को विशाल संरचनाओं को पत्थर के पहियों वाली गाड़ियों पर चढ़ाया जाता है. उन्हें सुरक्षित गाड़ियों पर रखने के लिए क्रेन का उपयोग किया जाता है. पहाड़ी पर अपनी यात्रा शुरू करने से पहले, गांव के लोग स्थानीय उत्सव मनाते हैं, और प्रभा के लौटने के बाद, उत्सव का एक और दौर शुरू होता है.

सदियों की परंपरा में निहित एक त्योहार
कोटप्पाकोंडा थिरुनाल्ला सैकड़ों वर्षों से मनाया जाता रहा है, जिसमें विशाल बिजली की बीम इसका सबसे प्रतिष्ठित प्रतीक बन गई है. चिलकलुरिपेट मंडल के पुरुषोत्तमपट्टनम, कावुर, मद्दिराला, यादवल्ली, कोमातिनेनी वरिपालेम, अमीन साहेब पालेम, कम्मावरिपालेम, अविषापालेम, केसानुपल्ले और अब्बापुरम जैसे गांव हर साल अपनी प्रभा का योगदान देते हैं.

इनमें से सबसे उल्लेखनीय है कावुरू प्रभा, जो इस उत्सव के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है. पिछले 79 सालों से, कावुरू एक इलेक्ट्रिक प्रभा का निर्माण कर रहा है. एक परंपरा जो एक सदी से भी पहले लकड़ी के ढांचे से शुरू हुई थी. एक बार इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजाओं ने इस प्रभा के लिए पहाड़ी पर एक विशेष स्थान भी निर्धारित किया और इसके 50वें वर्ष के उपलक्ष्य में एक पत्थर का शिलालेख भी स्थापित किया.

कावुरू प्रभा के निर्माण की जिम्मेदारी छह गांव समूहों, केथिनेनी, मद्दाली, कोडे, रामलिंगम, मेंडरू और नायडू की होती है जो सामूहिक रूप से इस परियोजना को फंडिंग करते हैं.

विश्वास और समर्पण के साथ चुनौतियों पर विजय पाना
इन विशाल प्रभास का निर्माण और उसे आगे बढ़ाना कोई आसान काम नहीं है. यहां दुर्घटना होने की भी संभावना बनी रहती है. धुरी टूट जाती है, बीम गिर जाते हैं, लेकिन ग्रामीणों का हौसला अडिग रहता है. हाथ में रस्सियां लेकर, वे ऊंची संरचनाओं को सावधानी से ऊपर की ओर ले जाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे सुरक्षित रूप से अपने जगह तक पहुंचें.

शिवरात्रि की रात: रोशनी, भक्ति और जागरण
जैसे-जैसे शिवरात्रि नजदीक आती है, चिलकलुरिपेट और नरसारावपेट मंडलों में उत्साह का माहौल होता है. तैयारियों के चरम पर पहुंचने के साथ ही गांवों में चहल-पहल बढ़ जाती है. त्योहार की रात, हजारों भक्त त्रिकुटाद्री पहाड़ी की तलहटी में इकट्ठा होते हैं. उनकी निगाहें ऊंची-ऊंची किरणों पर टिकी होती हैं.

सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत और रात भर चलने वाले जागरण से वातावरण में ऊर्जा भर जाती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि जगमग रोशनी से भगवान कोटय्या पहाड़ी से उतरकर गांवों और उनके परिवारों को आशीर्वाद देंगे. यह विश्वास परंपरा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को बढ़ावा देता है.

प्रकाश और आस्था की एक जीवंत परंपरा
कोटप्पाकोंडा थिरुनाल्ला एक उत्सव से कहीं अधिक है, यह भक्ति, कड़ी मेहनत और सामुदायिक भावना की विरासत है. यह एक ऐसा समय है जब गांव एकजुट होते हैं, परिवार फिर से जुड़ते हैं. वहीं आस्था स्वर्ग की ओर पहुंचने वाली चमकदार रोशनी का रूप ले लेती है. जैसे ही बिजली की किरणें रात के आकाश को रोशन करती हैं और पहाड़ियों में "कोटय्या, कोटय्या" के नारे गूंजते हैं, यह त्योहार परंपरा की स्थायी शक्ति और भक्ति और समुदाय के बीच अटूट बंधन का प्रमाण बन जाता है.

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Last Updated : Feb 24, 2025, 7:58 PM IST

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