मुंबई:महाराष्ट्र के अकोला के एक युवा नीलेश साबे के माता-पिता ने अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने अपने दो एकड़ खेत को गिरवी रख दिया. इसके बाद नीलेश इंजीनियर बने और कुछ दिन नौकरी भी. नौकरी छडोड़ने बाद वे एक उद्यमी बन गए. फिलहाल उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 60 करोड़ रुपये है और अब वे उसी कॉलेज से 100 ज्यादा युवाओं को रोजगार दे रहे हैं, जहां से उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में नीलेश साबे ने बताया कि उनके माता-पिता ने 2 एकड़ जमीन गिरवी रखी और लोन के पैसे से उनका दाखिला इंजीनियरिंग कॉलेज में कराया. नीलेश ने 2018 में अमरावती के राम मेघे कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट से इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम में इंजीनियर की डिग्री हासिल की और पुणे की एक कंपनी में 12000 रुपये सैलरी की नौकरी पा ली. माता-पिता को उम्मीद थी कि बेटा लोन चुकाकर गिरवी रखा खेत वापस पा लेगा.
इंडस्ट्री के प्रति जुनून
साबे ने बताया कि पुणे की कंपनी में नौकरी मिलने के बाद अगले तीन महीनों में ही उन्होंने तय कर लिया था कि नौकरी पर निर्भर रहने के बजाय उन्हें खुद का कारोबार करना चाहिए. साबे के पिता रामदास साबे और मां निर्मला साबे अपने बेटे के इस फैसले से थोड़े हैरान थे, लेकिन माता-पिता ने अपने बेटे पर भरोसा जताया और उसका साथ दिया. माता-पिता का आशीर्वाद नीलेश लिए एक ताकत बन गया और नौकरी छोड़कर नौकरी देने वाले बनने के बाद वह एक उद्यमी के रूप में उभरे.
बिजनेस मैगजीन ने किया कमाल
नौकरी छोड़ने के बाद नीलेश साबे ने देश के अग्रणी उद्यमियों की सफलता की कहानियों को उजागर करने के लिए 'स्विफ्टएनलिफ्ट' नाम से एक मैगजीन पब्लिश की. नीलेश ने अपनी बिजनेस मैगजीन में छपने के लिए उद्यमियों को शामिल किया और यह पत्रिका तुरंत सफल हो गई और उद्यमी पत्रिका के पन्नों पर जगह बनाने के लिए कतार में लग गए.
कोविड-19 लॉकडाउन ने प्रगति में बाधा डाली
नीलेश साबे के सामने एक बड़ी चुनौती यह थी कि 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ठप्प कर दिया और साबे की बिजनेस पत्रिका भी इससे अछूती नहीं रही. हालांकि, एक अच्छी बात यह रही कि नीलेश ने देखा कि वैश्विक लॉकडाउन के बावजूद, अमेरिका में कुछ इंडस्ट्रीज सुचारू रूप से चल रही थीं. नीलेश ने अपनी बिजनेस पत्रिका में उन्हें शामिल करने के लिए अमेरिका के उद्यमियों से संपर्क किया और सौभाग्य से, अमेरिका के उद्यमियों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. इस प्रकार, अमेरिका के उद्यमियों की सफलता की कहानियां नीलेश की पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं.