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2019 में देश में सबसे ज्यादा नोटा बिहार में दबा, सवाल- क्या इसबार भी वोटरों को पसंद नहीं आएंगे उम्मीदवार? - Lok Sabha Elections 2024 - LOK SABHA ELECTIONS 2024

NOTA VOTES IN BIHAR : पिछले लोकसभा चुनाव 2019 में देश में सबसे ज्यादा नोटा बिहार में पड़े थे. कुल 8 लाख 16950 वोटर्स ने नोटा का बटन दबाया था. आखिर वोटर्स ऐसा क्यों करते हैं. इसका प्रावधन क्या? जानें पूरी जनकारी.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 29, 2024, 9:20 PM IST

Updated : Mar 29, 2024, 11:08 PM IST

लोकसभा चुनाव 2024

पटनाःलोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी तेज है. सभी मतदाता अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट करते हैं. हालांकि 2019 के चुनाव में बिहार में सबसे ज्यादा नोटा बटन दबाया गया था. बिहार के मतदाताओं ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तुलना में ज्यादा नोटा का बटन दबाया था.

बिहार में 2% नोटा का बटन दबाःदेश के 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक प्रतिशत से कम नोटा का बटन दबा लेकिन बिहार में 2% नोटा का बटन दबा था. बिहार के सभी 40 संसदीय सीट पर औसतन 20000 नोटा बटन दबाए गए. नोटा के बढ़ते प्रचलन से कई सीटों पर असर पड़ने लगा है. इसके कारण केवल राजनीतिक दलों के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है.

2019 में 0.38 प्रतिशत ज्यादा नोटाः 2014 लोकसभा चुनाव में देश में कुल नोटा 60 लाख 2942 वोट पड़े थे. बिहार में कुल 580964 नोटा का बटन दबा था जो कुल वोट का 1.62% है. 2019 में बिहार में देश के कुल 65 लाख 22772 नोटा में से 8 लाख 16950 यानी की 2% नोट दबाया गया. देश के सबसे बड़े राज्य में से एक उत्तर प्रदेश में भी नोटा बिहार से कम 7 लाख था. पूरे देश में औसत नोटा प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में 12000 था वहीं बिहार में यह 20000 से अधिक था. बिहार के बाद आंध्र प्रदेश में 18000 प्रत्येद संसदीय क्षेत्र में नोटा पड़े. तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ का स्थान था.

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सबसे अधिक गोपालगंज में नोटाः बिहार में 10 संसदीय क्षेत्र में अधिक नोटा के बटन दबाए गए. 2019 में सबसे अधिक गोपालगंज में डाला गया था. गोपालगंज में जदयू के आलोक कुमार सुमन को 568150 वोट मिले थे वहीं राजद के सुरेंद्र राम को 2 लाख 81716 वोट प्राप्त हुआ था. गोपालगंज में 51660 नोटा लोगों ने दबाया था. पश्चिम चंपारण नोटा बटन दबाने में दूसरे स्थान पर था. भाजपा के संजय जयसवाल को 637006 वोट मिले थे. आरएलएसपी के ब्रजेश कुमार कुशवाहा को तीन लाख 98000 वोट मिला था. बीएसपी के राकेश कुमार को 114027 वोट मिला था जबकि नोटा को 45699 वोट मिले थे.

"नोटा का बटन वही लोग दबाते हैं जिन्हें लोकतंत्र में मिले अधिकार का सही प्रयोग करना नहीं आता है. आखिर लोग यह तय कर नहीं पाते हैं कि वे किसके साथ हैं. कौन सी सरकार चाहते हैं? विकास वाली सरकार या भ्रष्टाचार वाली सरकार? ऐसे राजद नेताओं को भी विश्वास है कि इस बार नोटा का बटन लोग कम दबाएंगे."-अरविंद सिंह, भाजपा प्रवक्ता

जमुई को तीसरा स्थानःनोटा के मामले में जमुई को तीसरा स्थान मिला था. जमुई में लोजपा के चिराग पासवान को 529134 वोट मिले थे. जबकि राजद के भूदेव चौधरी को 288085 वोट मिले थे. यहां 39496 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. मधेपुरा नोटा बटन दबाने के मामले में चौथा स्थान पर था. जदयू के दिनेश चंद्र यादव को 624334 वोट, राजद से शरद यादव को 3 लाख 22807 और पप्पू यादव को 97631 वोट मिले थे. नोटा के रूप में 38450 वोट गिरे थे.

समस्तीपुर पांचवें स्थान पर :नोटा के मामले में समस्तीपुर पांचवें स्थान पर रहा. 35417 लोगों ने नोटा का बटन यहां दबाया था. समस्तीपुर में 2019 में रामचंद्र पासवान को 562443 वोट मिला था जबकि कांग्रेस के अशोक कुमार को 3 लाख 10800 वोट मिला था. नोटा के मामले में नवादा छठे स्थान पर रहा 35147 लोगों ने नोटा का बटन 2019 में दबाया था. यहां 2019 में लोजपा के चंदन सिंह को 495584 वोट मिले थे जबकि राजद से विभा देवी को 3 लाख 47612 वोट मिला थे.

वाल्मीकिनगर सातवें स्थान पर : वाल्मीकिनगर नोट के मामले में 7वें स्थान पर था. यहां 34338 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. जदयू के बैद्यनाथ प्रसाद महतो को 6 लाख 2660 वोट मिला था तो वहीं कांग्रेस के शाश्वत केदार को 248044 वोट मिला थे. भागलपुर नोटा के मामले में 8वें स्थान पर था यहां 31567 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. भागलपुर में जदयू के अजय कुमार मंडल को 6 लाख 18254 जबकि राजद के शैलेश कुमार को 340624 वोट मिले थे.

गया 9वें और सारण 10वें स्थान परः गया नोट मामले में 9वें स्थान पर रहा. 30030 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. गया में जदयू के विजय मांझी को चार लाख 677 वोट मिले था. 314581 वोट मिले थे. सारण नोटा के मामले में 10वें स्थान पर है. यहां 28286 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था. बीजेपी के राजीव प्रताप रूढ़ी को चार लाख 99342 वोट मिला था तो वही चंद्रिका राय को 360913 वोट मिले थे.

कुछ सीटों पर असरः नोटा के कारण जिन कुछ सीटों पर असर पड़ा उसमें जहानाबाद का सेट एक नंबर पर रहा. यहां जदयू के चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को 335584 वोट मिले थेय जबकि रजत के सुरेंद्र प्रसाद यादव को 333833 वोट मिले थे. चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी 1700 के करीब वोटो से जीते थे जबकि यहां 27000 के करीब नोटा का बटन लोगों ने दबाया था.

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इसबार कम नोटा का दावाः बिहार में 2019 में 161 निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के उम्मीदवारों को जो वोट मिला उससे अधिक नोटा बटन था. बिहार के राजनीतिक दलों के लिए नोटा एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. राजनीतिक दल के नेताओं का अपना-अपना तर्क है. जदयू के नेता और पूर्व विधान परिषद की उपसभापति सलीम ने कहा कि इसबार 50 प्रतिशत कम लोग नोटा बटन दबाएंगे क्योकिं इसबार एनडीए ने बेहतर उम्मीवदार उतारा है.

"इस बार 2019 के मुकाबले 50% नोटा का बटन काम लोग दबाएंगे. क्योंकि एनडीए ने इस बार बेहतर उम्मीदवार दिया है. नीतीश कुमार ऐसे उम्मीदवार को उतारा जो अपने क्षेत्र में अच्छे पहचान वाले हैं." -सलीम परवेज, पूर्व उप सभापति, विधान परिषद

क्या कहते हैं विशेषज्ञः राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है कि बिहार के लोग इसलिए अधिक नोटा का बटन दबा रहे हैं क्योंकि पॉलिटिकली ज्यादा जागरूक हैं. इसलिए ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि चुनाव आयोग ने जो अधिकार दिया है उस अधिक लोग प्रयोग कर रहे हैं.

"अधिक इसका इस्तेमाल होने लगेगा तो चिंता की बात जरूर होगी. तब संभवत चुनाव आयोग इस पर विचार करें. बांकी राज्यों की तुलना में बिहार में इसका प्रचलन बढ़ रहा है."-प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ

जहानाबाद में भी नोटा बटन दबा थाः बिहार में 2019 में नोट का असर जहानाबाद और कुछ दूसरे सीटों पर भी देखने को मिला था. जहानाबाद में 1500 से अधिक वोट से जदयू के उम्मीदवार चंदेश्वर सिंह चंद्रवंशी की जीत हुई थी जबकि जहानाबाद में 27683 नोटा का बंटन दवाए गए थे. यदि यह वोट किसी उम्मीदवार के पक्ष में डाला गया होता तो रिजल्ट कुछ और हो सकता था.

'राजनीतिक दलों के लिए चुनौती':किशनगंज सीट पर कांग्रेस के मोहम्मद जावेद को करीब 34000 से जीत मिली थी और यहां लगभग 20000 नोटा के बटन दबाए गए थे. बिहार की 13 सीटों पर नोटा तीसरे स्थान पर रहा था. इसलिए नोटा न केवल चुनाव आयोग के लिए बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी अब बड़ी चुनौती बनती जा रही है.

"यह राजनीतिक दलों के लिए भी एक चिंता की बात है क्योंकि जनता उनके द्वारा दिए गए कैंडिडेट को पसंद नहीं कर रही है. इसीलिए नोटा का बटन दबा रही है तो उनके लिए अलार्मिंग की स्थिति है. सभी राजनीतिक दल उम्मीदवार के चयन में सावधानी बरतें." -प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी

क्या होता है नोटा? नोटा का मतलब होता है नन ऑफ द एबव अर्थात इनमें से कोई नहीं. चुनाव आयोग की तरफ से दिए गए इस ऑप्शन का अब हर चुनाव में प्रयोग बढ़ रहा है. इसकी शुरुआत 2009 में छत्तीसगढ़ में किया गया था. 2013 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और दिल्ली में भी नोटा का प्रयोग किया गया था.

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Last Updated : Mar 29, 2024, 11:08 PM IST

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