नई दिल्ली :नगालैंड में विधानसभा की 60 सीटें हैं. पूरे राज्य को 16 जिलों में बांटा गया है. हालांकि, यहां पर लोकसभा की मात्र एक सीट हैं. लोकसभा चुनाव के पहले चरण में नगालैंड का चुनाव संपन्न हो गया. लेकिन सबसे आश्चर्य की बात ये रही कि 16 में से छह जिलों में किसी ने भी वोटिंग नहीं की.
ये जिले हैं किफिरे, लोंगलेंग, मोन, नोक्लाक, शमतोर और तुएनसांग. प्राथमिक तौर पर यह बताया गया है कि मतदाताओं ने ऑटोनोमस काउंसल के गठन की मांग की थी, जिसे भारत सरकार ने पूरा नहीं किया. ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेश (ENPO) ने फ्रंटियर नगालैंड टेरेटरी नाम से काउंसल के बनाए जाने की मांग की थी.
ईएनपीओ क्या है : नगालैंड के पूर्वी इलाकों में पड़ने वाले जिलों में रहने वाले लोगों का यह एक सिविल सोसाइटी ऑर्गेनाइजेशन है. इसे 1972 में बनाया गया था. इन इलाकों में रहने वाले नगा ट्राइब के हितों और अधिकारों को उठाने के लिए इसे बनाया गया था. इनमें मोन, तुएनसांग, किफिरे, लोंगलेंग, नोक्लाक और शामतोर जिले को शामिल किया गया था. यहां पर रहने वाली नगा जातियों को ईस्टर्न नगा बोला जाता है. इनकी भाषा, इनका पहनावा और सांस्कृति पहचान अलग है. इनका उत्थान किस तरह से हो सके, और उसे कैसे संरक्षित किया जा सके और उनका राजनीतिक प्रतिनिधित्व किस तरह से बढ़े, इसके लिए ईएनपीओ का गठन किया गया था. इस संगठन में कोन्याक संघ, संगतम संघ, खिआम्नियुंगन संघ, और चांग संघ और अन्य शामिल हैं. ये ट्राइब्स के अलग-अलग समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं. यानी ईएनपीओ इसका सामूहिक प्रतिनिधित्व करता है.
ईएनपीओ पूर्वी नगा जनजातियों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए काम करता है. यह अपनी परंपराओं, कलाओं और शिल्पों को प्रदर्शित करने और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और कार्यशालाओं का आयोजन करता है.
ईएनपीओ ने क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और साक्षरता को बढ़ावा देने में भी मदद की है. यह पूर्वी नगा समुदायों के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और आर्थिक अवसरों की भी वकालत करता है. जमीन के अधिकारों को लेकर भी यह संगठन मुखर रहा है.
जिन छह जिलों में ये रहते हैं, ये मुख्य रूप से म्यांमार के साथ सीमा साझा करते हैं. मुख्य नगालैंड से ये म्यांमार के ज्यादा करीब हैं, क्योंकि मुख्य नगालैंड और इन जिलों के बीच बड़ा पहाड़ी इलाका है.
एशियन कॉन्फ्लूएंस थिंक टैंक के के. योहोम ने ईटीवी भारत को बताया कि यह मुद्दा अब दशकों पुराना हो चला है. उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश को पहले नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था. इसी नेफा के अंतर्गत तुएनसांग डिवीजन था और इस डिवीजन में पूरा इलाका शामिल था. उसके बाद 1963 में जब नगालैंड का निर्माण हुआ, तो इन छह जिलों को भी इसका ही हिस्सा मान लिया गया. और वैसे भी इनकी मांग जायज है. इसके दो कारण हैं. पहला- भौगोलिक दूरी और दूसरा इनकी पहचान.
योहोम ने कहा कि प्रशासनिक रूप से भी देखें तो कोहिमा से इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इसलिए उनकी मांग है कि यदि स्वायत्त परिषद का गठन कर दिया जाए, तो वे अपने प्रशासनिक दायित्वों और जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभा सकते हैं, साथ ही म्यांमार से सटे होने की वजह से इसे अधिक सुरक्षित बनाने में भी मदद करेंगे.
आपको बता दें कि जब से म्यांमार में आंतरिक संघर्ष की शुरुआत हुई है, तब से भारत ने फ्री मूवमेंट रेजीम को रद्द कर रखा है, अन्यथा भारी मात्रा में शरणार्थी आ सकते थे.
मतदान से पहले क्या हुआ? :1 अप्रैल को चुनाव आयोग को लिखे एक पत्र में ईएनपीओ ने बताया था कि पूर्वी नगालैंड के लोग 2024 के लोकसभा चुनावों में भाग लेने से दूर रहेंगे. फिर, पूर्वी नगालैंड सार्वजनिक आपातकालीन नियंत्रण कक्ष (ईएनपीईसीआर) द्वारा बुलाए गए बंद के जवाब में नगालैंड में मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) कार्यालय ने 18 अप्रैल को ईएनपीओ के अध्यक्ष को एक नोटिस जारी किया. कहा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 171सी (1) चुनावों के दौरान अनुचित हस्तक्षेप को अपराध मानती है. ऐसे में कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए.
सीईओ के कार्यालय ने शटडाउन को चुनाव के महत्वपूर्ण चरण के दौरान अनुचित दबाव डालने के प्रयास के रूप में देखा. हालांकि ईएनपीईसीआर के परिपत्र ने कुछ श्रेणियों जैसे चुनाव अधिकारियों, सुरक्षा कर्मियों और आवश्यक सेवाओं को छूट दी. सीईओ कार्यालय ने चिंता जताई कि बंद से पूर्वी नगालैंड क्षेत्रों में मतदान अधिकारों के मुक्त अभ्यास में बाधा आ सकती है. नोटिस विशेष रूप से ईएनपीओ के अध्यक्ष को संबोधित करता है, क्योंकि संगठन ईएनपीईसीआर के कार्यों के लिए जिम्मेदार है.