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उम्रकैद के सजायाफ्ता यासीन मलिक ने AIIMS में इलाज कराने की दिल्ली हाईकोर्ट से मांगी अनुमति, केंद्र ने किया विरोध

Life imprisonment convict Yasin Malik: टेरर फंडिंग के आरोप में उम्रकैद के सजायाफ्ता यासीन मलिक ने दिल्ली एम्स में इलाज कराने की गुहार लगाई है. दिल्ली हाईकोर्ट इस मामले में 14 फरवरी को अपना फैसला सुनाएगी.

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 2, 2024, 6:55 PM IST

उम्रकैद के सजायाफ्ता यासीन मलिक
उम्रकैद के सजायाफ्ता यासीन मलिक

नई दिल्ली:टेरर फंडिंग के मामले में जेल में बंद यासीन मलिक ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर एम्स में इलाज कराने की मांग की है. सुनवाई के दौरान जस्टिस अनूप मेंहदीरत्ता की बेंच ने यासीन मलिक के वकील को यासीन से यह पूछकर यह बताने को कहा कि क्या वो एम्स के मेडिकल बोर्ड से इलाज कराएंगे या वो अपनी पसंद के किसी डॉक्टर से. मामले की अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी.

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने मलिक की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील रजत नायर ने कहा कि यासीन मलिक को अस्पताल में भर्ती कराने की जररुत नहीं है बल्कि उन्हें ओपीडी में दिखाने की जरूरत है. नायर ने कहा कि एम्स ने यासीन मलिक का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चेकअप करने के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया था, लेकिन उसने डॉक्टरों से मिलने से मना कर दिया था.

नायर ने कहा कि यासीन उच्च श्रेणी के हाई रिस्क कैदी है. उन्हें जेल में सभी चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी. इसके बाद कोर्ट ने मलिक की ओर से पेश वकील को निर्देश दिया कि वो यासीन मलिक से पूछें कि वो एम्स के मेडिकल बोर्ड से इलाज कराना चाहते हैं या अपने किसी पसंद के डॉक्टर से.

25 मई 2022 को पटियाला हाउस कोर्ट ने हत्या और टेरर फंडिंग मामले में मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने मलिक पर यूएपीए की धारा 17 के तहत उम्रकैद और दस लाख रुपये का जुर्माना, धारा 18 के तहत दस साल की कैद और दस हजार का जुर्माना, धारा 20 के तहत दस वर्ष की सजा और 10 हजार का जुर्माना, धारा 38 और 39 के तहत पांच साल की सजा और पांच हजार का जुर्माना लगाया था. साथ ही कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी के तहत दस वर्ष की सजा और दस हजार का जुर्माना, धारा 121ए के तहत दस साल की सजा और दस हजार का जुर्माना लगाया था.

एनआईए के मुताबिक पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से लश्कर-ए-तोयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जेकेएलएफ, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में आम नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमले और हिंसा को अंजाम दिया. 1993 में अलगाववादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस की स्थापना की गई.

एनआईए के मुताबिक, हाफिद सईद ने हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं के साथ मिलकर हवाला और दूसरे चैनलों के जरिए आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन का लेन-देन किया था. इस धन का उपयोग वो घाटी में अशांति फैलाने, सुरक्षा बलों पर हमला करने, स्कूलों को जलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम किया. इसकी सूचना गृह मंत्रालय को मिलने के बाद एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121, 121ए और यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, 20, 38, 39 और 40 के तहत केस दर्ज किया था.

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