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बिहार के इस गांव में 1927 में ‘प्लेग महामारी’ से मचा था ‘त्राहिमाम’, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कैसे बचाया? जानें - Krishna Janmashtami 2024

Krishna Janmashtami 2024: जन्माष्टमी के मौके पर बिहार के एक गांव में मथुरा और वृंदावन जैसा विहंगम नजारा पूरे पांच दिन देखने को मिलता है. साल 1927 में जब प्लेग महामारी ने इस गांव में मौत का तांडव मचाया था तो प्रभु कृष्ण के चमत्कार से सभी की जान बची. आखिर क्या हुआ था 1927 को और कैसे लड्डू गोपाल ने सभी को जीवनदान दिया, विस्तार से इस खबर में पढ़ें.

बेगूसराय में भगवान कृष्ण ने बचायी थी लोगों की जान
बेगूसराय में भगवान कृष्ण ने बचायी थी लोगों की जान (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 27, 2024, 1:08 PM IST

Updated : Aug 27, 2024, 2:02 PM IST

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर बिहार में पांच दिवसीय मेला (Etv Bharat)

बेगूसराय:बिहार के बेगूसराय में कृष्ण जन्माष्टमीके मौके पर हर साल वृंदावन और मथुरा जैसा नजारा देखने को मिलता है. दरअसल तेघरा में साल 1927 में आई प्रलंयकारी महामारी में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी. वहीं हजारों लोग मौत की दहलीज पर खड़े थे. तब भगवान श्री कृष्ण के नाम के चमत्कार ने ना सिर्फ लोगों की जिंदगी बदल दी बल्कि इलाके में लौटी खुशहाली आज तक कायम है.

श्री कृष्ण ने महामारी का किया था नाश:यहां के लोगों के रोम रोम में श्री कृष्ण बसते हैं. श्री कृष्ण की भक्ति करने से लोगों को प्लेग महामारी से छुटकारा मिला. तब से श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर तेघरा में मेले का आयोजन होता है. पांच दिवसीय मेला बिहार ही नहीं देश भर में प्रसिद्ध है. हिंदू धर्म ग्रंथो में भगवान श्री कृष्ण की लीला और उनके उपदेश का प्रभाव सनातन धर्म में काफी महत्व रखता है.

तेघरा में पांच दिवसीय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेला (Etv Bharat)

हजारों लोगों की बची थी जान: तेघरा बिहार का एक ऐसा अनुमंडल है जिसकी पहचान व्यावसायिक दृष्टिकोण से दूर-दूर तक होती है. तेघरा में पांच दिनों तक चलने वाला श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मेला बिहार ही नहीं देश भर में प्रसिद्ध है. लगभग छह किलोमीटर परिक्षेत्र में कुल 15 मंडपों में होने वाली श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा में बिहार भर के लोग यहां आते हैं. इस मौके पर पूरे पांच दिनों तक यहां जय कन्हैया लाल की मदन गोपाल नाम के जयकारे से वातावरण गुंजायमान होता है.

घर बार छोड़कर पलायन कर रहे थे लोग: बताया जाता है कि साल 1927 में तेघड़ा इलाके में प्लेग ने महामारी का रूप ले लिया था जिससे यहां सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी. वहीं हजारों लोग इसकी चपेट में आ गए थे. इससे बचने के लिए लोगों ने यज्ञ अनुष्ठान के साथ हर तरह की कोशिश की, लेकिन इससे कोई फायदा होते न देखकर लोग हताश और निराश हो गए. तेघरा से लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया.

राधा-कृष्ण की प्रतिमा को अंतिम रूप देते मूर्तिकार (Etv Bharat)

कीर्तन मंडली ने दिखाया था ये रास्ता:ठीक उसी वक्त यात्रा विश्राम के दौरान चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली यहां पहुंची तो लोगों ने कीर्तन मंडली को अपनी आप बीती सुनाई. मंडली के सदस्यों ने यहां के लोगों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने का सुझाव दिया था. जिसके बाद साल 1928 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर यहां के कुछ लोगों ने सबसे पहले स्टेशन रोड में प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना शुरू की.

"इस बार मथुरा और वृंदावन की तर्ज पर मंदिर का निर्माण किया गया है. दिल्ली और मुंबई के कलाकार ने मूर्तियां बनायी हैं. इस बार भगवान श्री कृष्ण के विराट रूप का दर्शन लोग करेंगे."- शंभू कुमार,अध्यक्ष, पश्चिमी क्षेत्र

97 साल से निभायी जा रही परंपरा (Etv Bharat)

97 साल से धूमधाम से हो रहा उत्सव: बताया जाता है कि पूजा अर्चना के बाद से ही तेघरा से प्लेग जड़ से खत्म ही नहीं हुआ बल्कि फिर दोबारा कभी इस बीमारी से लोगों का सामना नहीं हुआ. इतना ही नहीं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना की शुरुआत के बाद से यह इलाका हर दृष्टिकोण से बड़ी तेजी से आगे बढ़ता गया और लोगों में खुशहाली लौट आई. बाद में यह परंपरा आगे बढ़ती चली गई. जिसका विस्तृत रूप आज पंद्रह मंडपो के साथ साज सज्जा और प्रसिद्धि के रूप में देखने को मिल रहा है.

"कुल छह किलोमीटर मेला परिक्षेत्र में पंद्रह मंडप बनाया गया है, जिसमें अलग-अलग झांकी निकलती है. 27 अगस्त की रात को कान्हा का जन्म होगा और 31 अगस्त तक मेला चलेगा. यहां प्रत्येक दिन पांच से छह लाख लोग आते हैं जिसमें दूसरे जिले के लोग भी आते हैं."- अरुण साह, मेला संयोजक

पांच दिवसीय मेले का आयोजन:आस्था के पीछे की यह रोचक कहानी अब तेघरा का इतिहास बन गया है. बेगूसराय के तेघरा मे इस बार यह मेला 27 अगस्त से लेकर 31 अगस्त तक चलेगा. पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के बीच पांच दिनों तक लाखों लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आएंगे.

"इस बार पूजा का 97 साल पूरा हो गया है. इतने वर्षो में अब तक किसी तरह का कोई गलत नहीं हुआ है. हमलोग धूमधाम से मेला मनाते हैं. जन्माष्टमी के इस मेले का इंतजार लोगों को सालों भर रहता है. बंगाल, झारखंड चंदन नगर आदि जगह से पंडाल और बिजली मिस्त्री बुलाए जाते हैं.। मेले में झूला,सर्कस और अन्य मनोरंजन के साधन रहते हैं. यह मेला सारे तेघरा वासियों की ओर से आयोजित होता है."- मीनू कलोठिया, संयोजक

दूसरे राज्यों से आते हैं मूर्ति कलाकार: यहां की आकर्षक मूर्तियां और झांकियां लोगों के आकर्षण का केंद्र होती है. मूर्ति और साज सज्जा के लिए यहां पश्चिम बंगाल ,मुंबई, दिल्ली, झारखंड उत्तराखंड सहित अन्य जगहों से मूर्ति कलाकार आते हैं. पिछले 97 साल से चली आ रही यह पूजा हर दृष्टिकोण से खास मायने रखती है. इस बार भव्य पंडाल और भगवान श्री कृष्ण की विशाल रूप का दर्शन श्रद्धालुओं को होगा.

"तेघरा का श्री कृष्ण जन्माष्टमी मेला एक ऐतिहासिक मेला है जो काशी,मथुरा और वृंदावन के बाद सबसे बड़ा मेला है. 1927 में तेघरा में प्लेग नामक बीमारी महामारी के रूप मे आया था. जिसकी चपेट में आकर गांव का गांव समाप्त हो गया था. हजारों लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे. उसी समय सभी ने श्री कृष्ण की पूजा की और महामारी का अंत हो गया."-सुबोध कुमार, स्थानीय

मथुरा और वृंदावन की तरह नजारा: कुल छह किलोमीटर परिक्षेत्र में बने पंद्रह पंडाल मे भगवान श्री कृष्ण की अलग-अलग झांकी निकलती है. इस बार लोगों को यहां मथुरा और वृंदावन की तर्ज पर मंडप निर्माण देखने को मिलेगा. बताया जाता है कि काशी, मथुरा और वृंदावन के बाद तेघरा में ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी मेला का भव्य आयोजन होता है.

"इस बार यहां श्री कृष्ण के बाल स्वरूप, कृष्ण राधा, सुदामा और बाल रूप मे मां यशोदा द्वारा श्री कृष्ण को बांधने की मूर्ति आकर्षण का केंद्र होगी. यहां की मूर्तियां काफी खूबसूरत और जीवंत लगती हैं."- विकास कुमार पंडित, मूर्ति कलाकार

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Last Updated : Aug 27, 2024, 2:02 PM IST

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