कोटा.कोटा के आर्यन सिंह को उनके इनोवेशन के लिए साइंस एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें यह पुरस्कार देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रदान किया. साथ ही केंद्र सरकार ने आर्यन को बाल वैज्ञानिक की संज्ञा दी है. आर्यन एक मिनी रोबोट बनाया है, जिसे उन्होंने एग्रोबोट नाम दिया है. ये एग्रोबोट किसानों के लिए काफी उपयोगी बताया जा रहा है. इसका कॉन्सेप्ट इस तरह का है कि एक अकेला एग्रोबोट पांच तरह की एग्रीकल्चर मशीनरी का काम करता है. इसके अलावा ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए खेत की रखवाली, पौधों के पोषण और वाटरिंग को भी मैनेज करता है.
आइडिया पर रूस की मुहर :वहीं, आर्यन के इस आइडिया को रूस की एजेंसी ने नोबेल बताते हुए उन्हें डिप्लोमा प्रदान कर सम्मानित किया. इसको बनाने के लिए आर्यन ने करीब 4 साल तक मेहनत की है. साल 2019 से वो इसमें जुटे हुए थे. इसमें शुरुआती फंडिंग एसआरपीएस पब्लिक स्कूल ने की. वहां के टीचर आर्यन के मेंटर बने. शुरुआत में आर्यन ने छोटे प्रोजेक्ट साइंस एंड टेक एग्जीबिशन और साइंस फेयर के लिए तैयार किए, लेकिन आगे उनका इंटरेस्ट बढ़ता गया और अब वो एक बाल वैज्ञानिक के रूप में खुद को स्थापित कर चुके हैं. साथ ही अब वो इसका एक बड़ा मॉडल तैयार कर रहे हैं. यह करीब 4 फीट का है. वर्तमान मॉडल डेढ़ फीट के आसपास का है. वहीं, बड़े मॉडल को तैयार होने में करीब 50 हजार की लागत आएगी, जिसे एसआरपीएस स्कूल और आर्यन को मिली फंडिंग के जरिए तैयार किया जा रहा है.
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पिता से कहा था एक दिन प्रधानमंत्री से मिलाऊंगा :आर्यन सिंह की इस कामयाबी पर उनका पूरा परिवार खुश है. घर पहुंच कर उनके रिश्तेदार बधाई देने आ रहे हैं. साथ ही उसकी तारीफ करते नहीं थकते हैं. उसके पिता जितेंद्र सिंह ई-मित्र संचालक हैं. मां मनसा देवी ग्रहणी और बहन राशि सिंह अभी स्कूलिंग कर रही है. पिता जितेंद्र सिंह कहते हैं कि आर्यन का इंटरेस्ट छोटे-छोटे इनोवेशन करने और प्रोजेक्ट बनाने में बचपन से ही था. मुझे कक्षा 9 में ही कहता था कि एक दिन प्रधानमंत्री से मिलने चलना है और यह सपना उसने पूरा कर दिखाया है. वो पढ़ाई के साथ लगातार टेक व इंजीनियरिंग के कांसेप्ट को लेकर काम करता था. साइंस के फॉर्मूलों के साथ वो अलग-अलग काम करने में जुटा रहता था. मुझे उम्मीद थी कि वो कुछ कर सकता है. नए-नए इनोवेशन व घर पर साइंस के नियमों के आधार पर कुछ न कुछ बनाता रहता था. वहीं, उसे स्कूल व फैकल्टी से भी लगातार मदद मिलती रही. एटीएल लैब में भी उसने काफी मेहनत की. इसके लिए उसने दिन-रात एक कर दिया था.
मेकर्स स्पेस के कॉन्सेप्ट को अटल टिंकरिंग लैब ने किया पूरा :एसआरपीएस स्कूल के निदेशक व आईआईटियन अंकित राठी का कहना है कि हमारा सपना था कि मेकर्स स्पेस की तरह कुछ तैयार किया जाए, ताकि बच्चे अपने कई कॉन्सेप्ट लेकर आए. उन पर लैब में बैठकर काम करें व कुछ नया इजाद करें. फिर कुछ ऐसा बनाएं जो कि अनूठा या अलग हो. शुरुआत में हमें लगा कि इसको एस्टेब्लिश करने में काफी पैसा लगाना होगा, लेकिन बाद में नीति आयोग की अटल टिंकरिंग लैब की घोषणा हो गई. इसके बाद हमें कुछ फंडिंग मिली. हमने 12 लाख में लैब एस्टेब्लिश की. स्टूडेंट्स लगातार मेहनत करते रहे व हमारी फैकल्टी ने काफी मदद की. लैब में स्टूडेंट्स को इंटरेस्ट आने लगा. सभी नए प्रोजेक्ट बनाने में लगेरहे, बच्चे यहां पर आकर क्रिएट करने में लगे. उन्होंने कहा कि कोई कॉपी पेस्ट न करें. नए कॉन्सेप्ट व एप्लीकेशन, आइडिया पर काम करें. जब स्टूडेंट प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड में आते हैं तब उसका दिमाग अच्छे से उस प्रोजेक्ट के बारे में खुलेता है.