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आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्यों महत्वपूर्ण है पंचशूल! जानें, बाबा बैद्यनाथ धाम के त्रिशूल की क्या है कथा - Shravani Mela 2024

Significance of Baba Baidyanath Dham Panchshula. द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम की महिमा भी अपरंपार है. इस पावन धरती के कण-कण में भगवान शिव का वास है. मंदिर प्रांगण के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग से लेकर मंदिर की गुंबद पर सजा त्रिशूल का भी अपना महत्व है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से जानें, बाबा बैद्यनाथ धाम के त्रिशूल को क्यों कहा जाता है पंचशूल.

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ग्राफिक्स इमेज (Etv Bharat)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 23, 2024, 6:10 PM IST

देवघर: ऐसा माना जाता है कि इंसान का शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है. मान्यताओं के अनुसार अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश के मिश्रण से किसी भी मानव के शरीर का निर्माण होता है. इन्हीं पंच तत्वों के आदिगुरु भगवान भोलेनाथ को माना जाता है. इसीलिए भगवान भोलेनाथ को संसार में रहने वाले सभी जीवों का गुरु माना गया है.

बाबा बैद्यनाथ धाम के पंचशूल का महत्व (ETV Bharat)

सिर्फ देवघर के मंदिर में ही है पंचशूल

आज हम बात करेंगे भगवान भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से बाबा बैद्यनाथ धाम के ज्योतिर्लिंग की. अमूमन हम देखते हैं कि भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में त्रिशूल होता है. लेकिन झारखंड के देवघर के बाबा मंदिर में पंचशूल लगा हुआ है. जो भक्त ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करते हैं. वह हाथ उठाकर पंचशूल के सामने प्रार्थना कर अपनी मुरादों को पूरा करने की कामना जरूर करते हैं. क्योंकि मंदिर में लगे पंचशूल के आध्यत्म में एक विशेष महत्व है.

वायू, आकाश, अग्नि, थल और जल के मिश्रण का प्रतीक है पंचशूल

अध्यात्म में इसके कई कारण बताए गए हैं लेकिन पंचशूल होने का मुख्य कारण यही है कि यह पांचों शूल यह बताते हैं कि भगवान भोलेनाथ सिर्फ दुश्मनों का विनाश नहीं करते हैं बल्कि मानव मात्र की भी रक्षा करते हैं. इसीलिए पंचशूल के माध्यम से यह दर्शाया जाता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिव उनके अंदर रहते हैं. देवघर मंदिर के मुख्य पंडा रमेश परिहस्त कहते हैं कि पंचशूल का मुख्य कारण यही है कि मंदिर में आने वाले भक्तों को यह बताया जा सके कि शिव ही इस जगत के पालनकर्ता हैं. पांच तत्वों से बने शरीर में शिव का वास होता है, पंचशूल इसका प्रमाण है.

पंचशूल के स्पर्श से भक्तों को मिलती है पॉजिटिव एनर्जी

आध्यात्म से जुड़े लोग बताते हैं कि पंचशूल का स्पर्श करने से व्यक्ति के जीवन से काम, क्रोध, लालच, मोह, ईर्ष्या की भावना खत्म हो जाती है. मंदिर के प्रांगण में वर्षों से भक्ति में लगे भक्त बताते हैं कि रावण ने भगवान भोलेनाथ के मंदिर की रक्षा के लिए इस पंचशूल को लगवाया था. इसलिए इस पंचशूल को मंदिर का रक्षा कवच भी कहा जाता है. श्रावण मास की पूजा शुरू होने से पहले सभी पंचशूल को उतार कर साफ सफाई की जाती है. साफ सफाई के दौरान ही हजारों की संख्या में भक्ति इसका स्पर्श करते हैं.

वरिष्ठ पुजारी बाबा झलक बताते हैं कि यदि कोई भक्त पंचशूल का स्पर्श कर लेता है तो उसके जीवन की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. वरिष्ठ पुजारी बताते हैं कि पंचशूल की वजह से ही आज तक मंदिर में कभी भी वज्रपात या कोई आपदा जैसी हादसा नहीं हुआ है. मंदिर में आने वाले भक्त बताते हैं कि पंचशूल का दर्शन करने से उनके जीवन के कई कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें भगवान भोले का सीधा आशीर्वाद प्राप्त होता है.

पंचशूल और त्रिशूल में अंतर

अध्यात्म और सनातन धर्म के अनुसार पंचशूल ब्रह्मांड के पांच तत्वों का प्रतीक है. जबकि त्रिशूल भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बोधक होते हैं.

पंचशूल के कई वैज्ञानिक महत्व भी हैं

वहीं मंदिर भवन पर लगे पंचशूल को लेकर आपदा प्रबंधन विभाग के पूर्व संयुक्त सचिव सह वर्तमान वन अधिकारी मनीष कुमार बताते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पंचशूल वज्रपात की घटना को रोकने में कारगर साबित होता है. इसलिए भी मंदिर पर पंचशूल लगाए जाते हैं. भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. सभी अपने-अपने हिसाब से पंचशूल की महत्व को समझते हैं. लेकिन पुरोहितों और पौराणिक कथाओं से पंचशूल की महत्व को जानने के बाद श्रद्धालुओं की आस्था बाबा मंदिर पर लगे पंचशूल पर उमड़ पड़ती है.

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