रांचीः हेमंत सोरेन, जो महज एक नाम नहीं बल्कि झारखंड के लिए एक बड़ी शख्सियत है. महाजनी प्रथा और झारखंड आंदोलन के अग्रणी शिबू सोरेन की दूसरी संतान हेमंत सोरेन को सिसायत विरासत में मिली है. अपनी उच्च शिक्षा बीच में ही छोड़ छात्र जीवन से राजनीति में उतर आए. अपने बड़े भाई दुर्गा सोरेन की अकाल मृत्यु के बाद हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा और प्रदेश की सियासी की धूरी बन गये.
4 जुलाई 2024 गुरुवार को हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने. राजभवन में एक सादे समारोह राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. झारखंड के सियासी अध्यय में 4 जुलाई 2024 का एक और दिन जुड़ गया. हेमंत सोरेन तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इससे पहले 2019 विधानसभा में झामुमो द्वारा विशाल जीत हासिल करने के बाद महागठबंधन के साथ मिलकर हेमंत सोरेन ने झारखंड की सत्ता संभाली. कोरोना काल में अपने कार्यों से पूरे देश को प्रभावित करने और नाम कमाने के बाद उनका कद और बढ़ा. साल 2022 में कांग्रेस के तीन विधायकों के पास पैसा मिलना और सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों के दौरान. हेमंत सोरेन मजबूती के साथ खड़े रहे. इसके 2023 में जमीन घोटाले में उनका नाम आने के बाद प्रदेश की सियासी और झामुमो परिवार में जैसे भूचाल आ गया. इस कारण उन्हें 31 जनवरी 2024 को ईडी द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया, अपनी गिरफ्तारी से पहले उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस बीच झामुमो परिवार के करीबी चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया.
इन तमाम झंझावातों और तमाम कानूनी लड़ाई के बाद 28 जून 2024 को आखिरकार उन्हें जमानत मिली और वे जेल से बाहर आए. जेल से बाहर आने के एक हफ्ते के अंदर एक बार फिर से हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री पद पर वापसी हो रही है. तीसरी बार हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं. हेमंत सोरेन को राजनीति विरासत में मिली है. शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन की मौत के बाद हेमंत जेएमएम की राजनीति की धुरी बन गए हैं. राज्यसभा सदस्य और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी से होते हुए उन्हें झारखंड की कमान मिल रही है.
शिबू सोरेन के मंझले बेटे हेमंत सोरेन बीआईटी मेसरा के छात्र रहे हैं लेकिन उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. राजनीतिक महत्वकांक्षा ने उन्हें सियासी मैदान में उतार दिया. हेमंत पहली बार विधानसभा चुनाव 2005 में दुमका सीट से लड़े लेकिन जेएमएम के बागी स्टीफन मरांडी से हार गए. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2009 में उन्होंने जीत दर्ज की. विधानसभा चुनाव 2009 के बाद बीजेपी-जेएमएम के बनते बिगड़ते रिश्तों से राज्य में दो बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.
इसी दौरान 2010 में गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार में वे उपमुख्यमंत्री बनाए गए, हालांकि बाद में उन्होंने समर्थन वापस ले लिया और अर्जुन मुंडा को इस्तीफा देना पड़ा. गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेकर राज्य में संवैधानिक संकट खड़ा करने को लेकर मीडिया में हेमंत सोरेन की खूब किरकिरी हुई. हालांकि हेमंत सरकार बनाने की कोशिश करते रहे और आखिरकार कांग्रेस को समर्थन के लिए राजी कर लिया.
38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन
हेमंत सोरेन 38 साल की उम्र में 2013 में प्रदेश की कमान संभाली थी. राज्य के संथाल परगना इलाके के बरहेट विधानसभा से दूसरी बार विधायक बने सोरेन पूर्ववर्ती भाजपा-झामुमो गठबंधन में उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. साथ ही थोड़े समय के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं. सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो और झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन की दूसरी संतान हैं.
13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन ने झारखंड के नौवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हेमंत को कांग्रेस, आरजेडी, अन्य छोटे दलों के तीन और चार निर्दलीय विधायकों समेत कुल 43 विधायकों का समर्थन मिला. कांग्रेस ने इससे पहले भी जेएमएम का समर्थन किया था लेकिन कभी खुद सरकार में शामिल नहीं हुई. इस बार हेमंत कांग्रेस को मंत्रिमंडल में शामिल करने में कामयाब हुए. इतना ही नहीं, उन्होंने आरजेडी को भी सरकार में शामिल कर लिया. साल 2009 में कांग्रेस और आरजेडी के अलग होने के बाद ये पहला मौका था, जब दोनों ने हेमंत सरकार की मदद के लिए हाथ मिलाया. हेमंत ने 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक राज्य में शासन किया.
नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन
2014 विधानसभा चुनाव में जेएमएम दूसरे नंबर की पार्टी बनी और हेमंत सोरेन नेता प्रतिपक्ष बनाए गए. विकसित झारखंड का सपना देखने वाले हेमंत सोरेन पर फिलहाल भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा है. युवा होने की वजह से ऊर्जा से भरपूर हेमंत की युवाओं में अच्छी लोकप्रियता हासिल की. इन दिनों वे जेएमएम में अंदरुनी कलह से दो-चार होते रहे. चुनाव में विधायकों के दलबदल को रोकना भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती सामने.
पूर्ववर्ती बीजेपी शासन काल में सोरेन नेता प्रतिपक्ष के रूप में चुने गए. उस दौरान तत्कालीन सरकार पर उनके हमले और आंदोलन ने उनके राजनीतिक कद को काफी बढ़ाया. बीजेपी शासन काल में छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में बदलाव के सरकार की पहल का उनके नेतृत्व में पुरजोर विरोध किया गया. इतना ही नहीं बेरोजगारी के मुद्दे पर भी विपक्ष ने उनके नेतृत्व में आवाज उठाई. 2014 से 2019 तक हुए अलग-अलग आंदोलनों के बाद उनके राजनीतिक कद में इजाफा हुआ.
2003 में छात्र राजनीति से की शुरुआत
हेमंत सोरेन ने 2003 में छात्र राजनीति में कदम रखा था. वहीं, 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन दुमका विधानसभा सीट से जेएमएम के अधिकृत प्रत्याशी के रूप में उतरे, लेकिन उन्हें शिबू सोरेन के पुराने साथी स्टीफन मरांडी ने हरा दिया. दुमका विधानसभा सीट से स्टीफन मरांडी जेएमएम के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते और जीतते रहे. 2005 में पार्टी ने मरांडी के जगह हेमंत को उतारा. इसी वजह से स्टीफन मरांडी बागी होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतर गए और उनकी जीत हुई.