देहरादूनःभारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले कई बड़े मुद्दों पर दांव खेल रही है. सीएए (CAA) और एनआरसी (NRC) के विफल होने के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को उत्तराखंड में लागू करके भाजपा इसे बड़ा मुद्दा बनाने की तरफ बढ़ रही है. पीएम मोदी भी यूसीसी को देशभर में लागू करने के संकेत जून 2023 में भोपाल में कार्यक्रम के दौरान पहले ही दे चुके हैं. ऐसे में यूसीसी से भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा या नुकसान, इस पर जानकारों ने अपनी राय रखी है.
उत्तराखंड में भाजपा करेगी फार्मूले को टेस्ट:भाजपा हमेशा से समान नागरिक संहिता के पक्ष में रही है. भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी और शिवसेना भी यूसीसी की पक्षधर है. लेकिन यूसीसी को देश में लागू करना इतना आसान भी नहीं है. राजनीतिक हिसाब से भी भाजपा को नुकसान का डर है. ऐसे में भाजपा छोटे राज्य उत्तराखंड में यूसीसी को लागू करके परीक्षा लेना चाहती है. परीक्षा के परिणाम पर आगे फैसला लिया जाएगा.
क्या कहते हैं सीएम धामी:उत्तराखंड कीधामी सरकार यूसीसी को लागू करने के लिए पिछले 1 साल से कार्य कर रही है. मुख्यमंत्री बनने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने सबसे पहला फैसला राज्य में यूसीसी लागू करने का लिया. सीएम धामी इस बयान के बाद काफी सुर्खियों में रहे. अब सीएम धामी का कहना है कि सरकार ने पांच सदस्यों की टीम बनाई और उसके बाद इस पर लोगों की राय लेकर तमाम पहलू पर काम शुरू किया. अब इस काम को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. सीएम धामी ने कहा उत्तराखंड, देश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जहां पर समान नागरिक संहिता के साथ लागू होने जा रहा है.
उन्होंने आगे कहा, यह किसी भी तरह से किसी समुदाय विशेष के खिलाफ नहीं है. हम राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड के अंतर्गत तलाक और लिव इन रिलेशनशिप के साथ-साथ विवाह पंजीकरण, बच्चों को गोद लेना, माता-पिता का अनुसरण, पति की संपत्ति पर महिला के अधिकार, सास और ससुर जैसे रिश्तों की देखभाल और अन्य मामले इसमें शामिल किए गए हैं.
क्या कहते हैं जानकार:लोगों के जेहन में अब सवाल है कि क्या 7 फरवरी को विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद 8 फरवरी से ही यूसीसी राज्य में लागू हो जाएगा ? इसको लेकर ईटीवी भारत ने संविधान के जानकारों से बातचीत की. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और संविधान की जानकारी रखने वाले जय सिंह रावत कहना है कि राज्य सरकार ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया है.
अगर हम संविधान को पढ़ें और देखें तो हमें मालूम होता है कि हिंदू कोड बिल 1955 और 1956 में ही बना दिए गए थे. लेकिन अब उनमें संशोधन होना है. मुस्लिम पर्सनल लॉ और क्रिश्चियन पर्सनल 1967 और 1968 में बनाए गए थे. इनमें भी फिलहाल संशोधन होना है. उधर उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी विधेयक पास होने के बाद अब विधेयक राज्यपाल और फिर भारत सरकार और राष्ट्रपति के पास पहुंचेगा. इसके बाद राष्ट्रपति का अधिकार है कि वह इसको कितने दिनों में लागू करते हैं.
जय सिंह रावत कहते हैं कि संविधान 254 (2) के हिसाब से भारत सरकार से राज्य सरकार ने पहले अनुमति ली होगी. अब यहां से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति भवन पूरा अध्ययन करेगा. उसमें अभी समय लग सकता है. हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद विधेयक पर कुछ निर्णय लिए जाए. जय सिंह रावत कहते हैं कि मुझे फिलहाल ऐसा लग रहा है कि यह राजनीति के हिसाब से लिया गया फैसला है, जो लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदे का सौदा लग रहा है. यह काफी पेचीदा मामला है.
क्या कहता है अनुच्छेद 44:वहीं, पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर और पूर्व में SM JAIN डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल रहे डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल बताते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निदेशक तत्व में साफ है कि राज्य नागरिक संहिता को लेकर राज्य सरकारें काम कर सकती हैं और उसे लागू कर सकती हैं. लेकिन ये बात भी ध्यान में रखनी होगी कि कोई भी कानून केंद्र के किसी कानून या फैसले के विपरीत ना हो क्योंकि ऐसा करने का अधिकार राज्य को नहीं है. विधेयक को विधानसभा में पास करवाने के बाद राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और एक सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भी भेजा जाएगा. अगर इसमें कोई खामियां नहीं हुईं तो आसानी से राष्ट्रपति की भी सहमति मिल जाएगी.
उदारहण के तौर पर लोकपाल बिल:डॉ. अवनीत कुमार घिल्डियाल इसको लेकर बीसी खंडूड़ी कार्यकाल का उदाहरण भी देते हैं. वो कहते हैं कि जब राज्य में बीसी खंडूड़ी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने लोकपाल बिल पास करवाया था. विधानसभा से पास करवाने के बाद उसे राज्यपाल के पास भेजा गया और उसके बाद राष्ट्रपति की सहमति ली गई थी. उसके बाद विजय बहुगुणा सरकार ने उसे विधानसभा में लाकर लोकपाल की जगह लोकायुक्त में तब्दील कर दिया था. इसी तरह से अगर आने वाले समय में किसी और राजनीतिक पार्टी की सरकार आती है तो वो भी विधानसभा में इसको लाकर पलट सकती है. अगर ये बिल केंद्र लागू करता तो ऐसा संभव नहीं हो सकता. हालांकि, कोई भी सरकार इस जोखिम को नहीं उठाना चाहिए.