कांशीराम लड़े थे जांजगीर चांपा से निर्दलीय चुनाव, हाई प्रोफाइल सीट से रहा कई नेताओं का किस्मत कनेक्शन - LOK SABHA ELECTION 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024
बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि जांजगीर चांपा सीट से बसपा के जनक कांशीराम ने चुनाव लड़ा था. बहुजन समाज पार्टी के जन्म का इतिहास भी जांजगीर चांपा से जुड़ा है.
जांजगीर चांपा:राजनीति और इतिहास के पन्नों को खंगालने पर पता चलता है कि बसपा का जन्म जांजगीर चांपा से हुआ था. बहुजन समाज पार्टी के बससे बड़े नेता और पार्टी के संस्थापक कांशीराम कभी इसी जांजगीर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं. ये अलग बात है कि कांशीराम तब निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. इस सीट से चुनाव लड़ने के बाद कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का शंखनाद किया.
दिग्गजों ने दिखाया यहां से दम: जांजगीर चांपा सीट दशकों से दिग्गजों के मैदान में उतरने से हाई प्रोफाइल सीटों में गिनी जाती रही है. गोंगपा सुप्रीमो और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरा सिंह मरकाम ने भी इस सीट से चुनाव लड़ा. कांग्रेस से अनुसूचित जाति वर्ग के गुरु मां मिनी माता, बीजेपी के दिग्गज नेता हिंदूवादी नेता रहे दिलीप सिंह जूदेव, अटल बिहारी वाजपेयी जी की भतीजी करुणा शुक्ला भी यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं. बसपा के वरिष्ठ नेता उदल किरण कभी कांशीराम के साथ प्रचार के मैदान में साथ होते थे. आज वो पार्टी को फिर से छत्तीसगढ़ में स्थापित करने के लिए जी जान से जुटे हैं.
जांजगीर चांपा से जुड़ी हैं कांशीराम और बसपा की यादें: बसपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता और कांशीराम के साथ काम कर चुके उदल किरण कहते हैं कि एक वक्त था जब पार्टी के लिए हम लोग साइकिल से प्रचार के लिए निकलते थे. धूप और बरसात में पार्टी का झंडा लेकर चलते रहते थे. पार्टी को घर घर तक पहुंचाने के लिए मेहनत करते थे.
सवाल: जांजगीर चाम्पा लोक सभा में कांशी राम कब आए और बसपा का उदय कैसे हुआ ?
जवाब: बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का जांजगीर चाम्पा प्रवास 1982 में राम नाम समाज के गुहा राम जी के निमंत्रण पर हुआ. कांशी राम ने दिल्ली में मीटिंग बुलाई थी. मीटिंग के दौरान एक ऐसे व्यक्ति को देखा जिसके पूरे शरीर मे राम नाम का गोदना लिखा हुआ था. कांशीराम ने उनके बारे में जानकारी मांगी. जब पता चला कि वो छत्तीसगढ़ से आए है तो उनको छत्तीसगढ़ आने की इच्छा जगी. गुहा राम जी के निमंत्रण पर पहली बार सारंगढ के पास छिंद गांव में आयोजित राम नामी मेला में वो शामिल हुए. इस दौरान कांशीराम छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में घूमे. लोगों से जन संपर्क किया. इसके बाद ही उन्होने ये ठाना कि जांजगीर चांपा में बहुजन समाज के लिए कुछ किया जाए. और साल 1984 में इस लोक सभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे चुनावी मैदान में उतरे. चुनाव में 32 हजार के करीब वोट भी हासिल किया. कांशीराम ने कहा कि आगे कितना वोट मिलेगा ये कहना जल्दबाजी होगी लेकिन लोगों का विश्वास हमपर बना है. जांजगीर चाम्पा लोक सभा सीट पर बसपा को अब तक 1 लाख 75 हजार मत तक मिल चुके हैं. इस आंकड़े को इस बार दो गुना नहीं बल्कि तीन गुना कर जांजगीर चाम्पा सीट को जीत कर कांशीराम जी को सच्ची श्रद्धांजलि देने की तैयारी है.
सवाल:1984 में कांशीराम जी लोक सभा चुनाव का प्रचार कैसे करते थे ? जवाब: 1984 में कांशीराम जी चुनाव मैदान में उतरे तो सीमित संसाधन थे, दीवाल में कार्यकर्ता ही पेंट कर पोस्टर लिखते थे. बबूल के दातुन से ब्रश बना कर वाल पेंटिंग की जाती थी. प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह के साथ नारा लिखा जाता था. नारे में लिखा जाता था बसपा आई है नई रोशनी लाई है. बीएसपी की क्या पहचान नीला झंडा हाथी निशान जैसे नारे लिखे जाते. पहली बार के चुनाव में 32 हजार वोट कांशीराम जी को प्राप्त हुए. कार्यकर्ता साइकल में चुनाव प्रचार किया करते थे. कांशीराम जी के लिए कार किराए पर लिया गया था. कार से कांशीराम जी जांजगीर चाम्पा लोक सभा का दौरा करते थे. जांजगीर चाम्पा लोक सभा में पहले कोरबा भी आता था वहीं मस्तूरी और सीपत भी शामिल थे. भारी संघर्ष किया लेकिन अब AC गाड़ी में चलने के बाद भी कोई परिणाम नहीं मिलता है. पहले नीला गमछा और साइकल वालों कि रैली देखने लोगों का हुजूम उमड़ता था. अजीब सी दीवानगी थी जिसके कारण बसपा को ये परिणाम मिला कि जांजगीर चाम्पा जिला के विधानसभा सीटों को इस बार को छोड़ कर पहले दो सीटों में जीत कर आते रहे.
सवाल:छत्तीसगढ़ के साथ उत्तरप्रदेश मे बसपा का ग्राफ बढ़ा और अब गिरने लगा है इसका क्या कारण है? जवाब:राजनीति में उतार चढ़ाव हार जीत लगी रहती है. युद्ध और मौत का क्या परिणाम होगा पहले से कोई नहीं बता सकता. उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड विभाजित नहीं हुआ था तो कांग्रेस 85 सीट में 83 सीट पर जीत हासिल करती थी. अब एक एक सीट के लिए तरस रही है. जनता को इसी लिए जनार्दन कहा गया है क्योंकि जो ऐतिहासिक रूप से जीतते आ रहे हैं उन्हें कब अलग कर दें भरोसा नहीं. कभी आसमान में तो कभी फर्श पर जनता पहुंचा देती है. अब राजनीति में पहले जैसा जोश और जूनून का आभाव होता जा रहा है. आज की युवा पीढ़ी समझदार है कांशीराम जी के निधन के बाद से ही बसपा को खत्म करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है. कांशीराम जी के शिष्य और चाहने वालों ने बसपा को आज भी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के रुप मे स्थापित रखा है.
सवाल:पहले एक विशेष समाज को लेकर बसपा की राजनीति शुरू हुई और सर्व समाज की राजनीति शुरू हो गई इस परिवर्तन का कारण क्या है? जवाब: मान्यवर कांशीराम ने शुरू से ही जाति की खिलाफत की. जाति का समर्थन नहीं किया. बहुजन समाज पार्टी बनाने का मूल मकसद दलित, पिछड़ा और गरीबों के अधिकार के सामने आने वाली पार्टी की स्थापना करना था.
प्रश्न:आरक्षण के मामले में क्या चाहते है ? जवाब:आरक्षण भी ख़त्म कर देना चाहिए, जहां जातिवाद ख़त्म होगा आरक्षण भी समाप्त कर देना चाहिए. पर पहले उस आरक्षण को समाप्त करना होगा जिसमें मंदिर में पूजा के लिए प्राचीन से कब्ज़ा जमाए लोगों को हटाकर सभी को उसका अधिकार मिले. नाली साफ करने वाला भी मंदिर में पूजा कर सके और मंदिर का पुजारी भी नाली की सफाई करें, जब ये समानता आ जाएगी तब आरक्षण भी समाप्त हो जायेगा.
सवाल:जांजगीर विधानसभा में इस बार बसपा का सफाया हो गया लोक सभा में क्या स्थिति रहेगी ? जवाब:कांग्रेस ने चुनाव से पहले जो कर्जा माफ़ की घोषणा की थी तब से हमारे लोगों के अंदर भी बदलाव आने लगा था. बसपा के वोटर भी कांग्रेस के कर्जा माफ़ के चक्कर में उनको वोट दे बैठे. चुनाव कांग्रेस हार गई न तो कर्जा माफ हुआ नहीं हमारा वोट काम आया. दूध भी गया और दोहनी भी चली गई.