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हाशिए पर खड़े दिव्यांगों और ट्रांसजेंडर्स को समाज से जोड़ता नुक्कड़ कैफे, रोजी रोटी के साथ मिल रहा सम्मान - RAIPUR NUKKAD CAFE

नुक्कड़ कैफे के संचालक कहते हैं "मेरा उद्देश्य ऐसी जगह बनाने का था जहां पर यूथ आए और मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटी से कनेक्ट हो."

RAIPUR NUKKAD CAFE
हाशिए पर आए लोगों को सम्मान देता नुक्कड़ कैफे (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 25, 2025, 7:07 AM IST

Updated : Feb 25, 2025, 8:47 AM IST

रायपुर: मनीष खूंटे की उम्र 25 साल है, लेकिन हाइट सिर्फ 4 फीट. मनीष कहते हैं, ''छोटा कद होने की वजह से काफी मुश्किल होती है. लोग हंसी भी उड़ाते हैं. रोजगार के लिए भी भटकना पड़ा. फिर रायपुर के एक कैफे ने काम दिया. अब सात-आठ साल से इस कैफे में काम कर रहा हूं.''

बिलासपुर जिले के बोहारडीह के रहने वाले छोटे कद के मनीष की तरह ही धमतरी निवासी दिव्यांग वीणा खरे की कहानी है. वीणा बोल नहीं सकती हैं. एक ट्रांसलेटर के जरिए ईटीवी भारत की टीम ने वीणा से बात की. वीणा ने बताया, "पहले घर में सिलाई का काम किया करती थी. फिर कैफे में काम मिला. ढाई साल से यहां काम कर रही हूं.''

रायपुर नुक्कड़ कैफे (ETV Bharat Chhattisgarh)

कहां है ऐसा कैफे?: अब आपके मन में यह ख्याल आ रहा होगा कि आखिर यह कैफे कहां है, जिसमें मूक बधिर और बौना शख्स काम कर रहे हैं. दिव्यांगों को काम पर रखने का क्या उद्देश्य है. इन तमाम सवालों के जवाब खोजने के लिए ईटीवी भारत की टीम कैफे पहुंची.

Journey of Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे की जर्नी (ETV BHARAT)

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नुक्कड़ कैफे: देश की राजधानी दिल्ली से 1223 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और स्टील सिटी दुर्ग में ऐसे 4 नुक्कड़ कैफे हैं, जिसमें मूक बधिर के साथ ही ट्रांसजेंडर और बौने लोगों को रोजगार दिया गया है. यह नुक्कड़ कैफे समाज को नई दिशा देने का काम कर रहे हैं. हमारी सोसाइटी के उपेक्षित लोग, जिनमें दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, मानव तस्करी के शिकार शख्स हैं, उन्हें यह कैफे सशक्त बना रहा है.

इन 4 नुक्कड़ कैफे में स्टाफ की संख्या लगभग 70 के आसपास है. इस कैफे के स्टाफ में 50 फीसदी कर्मचारी दिव्यांग हैं. इनमें मूक बधिर और ट्रांसजेंडर के साथ ही बौने भी शामिल हैं. खास बात यह है कि कैफे में आने वाले कस्टमर इन्हें देखकर खुद को असहज महसूस नहीं करते बल्कि इनसे घुल मिलकर रहते हैं.

Journey of Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे की जर्नी (ETV BHARAT)

दिव्यांग लोगों को समाज से कनेक्ट करता कैफे: यह कैफे दिव्यांग लोगों को न सिर्फ जिंदगी की बुनियाद दे रहा है, बल्कि यह हाशिए पर खड़े लोगों को समाज से कनेक्ट करने का काम करता है. यहां आने वाला हर शख्स दिव्यांग कर्मचारियों से इंट्रैक्ट करता है. उनसे डायरेक्ट बात कर अपनी मनपसंद डिसेज ऑर्डर करता है.अपनी काबिलियत के बल पर यहां काम करने वाले दिव्यांग, उन ऑर्डर को पूरा करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया से सबसे ज्यादा दिव्यांग वर्ग के लोगों को फक्र महसूस होता है, कि जो समाज उन्हें उपेक्षित महसूस करता था, आज उसी समाज में वह कंट्रीब्यूट कर रहे हैं. अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

दिव्यांगों को मिल रहा संबल: साल 2013 में इस कैफे की शुरुआत रायपुर के समता कॉलोनी से हुई. यहां नुक्कड़ के एक आउटलेट से अब रायपुर में और दुर्ग में तीन से ज्यादा आउटलेट हैं. दुर्ग में नुक्कड़ का एक ऐसा आउटलेट है, जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग काम करते हैं. इस तरह ट्रांसजेंडर और दिव्यांग समुदाय के लोग यहां न सिर्फ आम लोगों से लगातार डील करते हैं बल्कि एक प्रतिष्ठित रूप में काम कर अच्छी खासी आय कमाते हैं. इस तरह हाशिए पर खड़े समाज के दिव्यांग और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों को यहां आकर संबल मिल रहा है.

Nukkad Cafe connects Divyang
दिव्यांग महिला कर्मचारी (ETV BHARAT)

छोटे कद के कर्मचारी मनीष खूंटे कहते हैं कि ''मुझे यहां काफी अच्छा लगता है, काफी कुछ सीखने को मिलता है. कैफे में जॉब से पहले पढ़ाई लिखाई किया करता था. परिवार की रोजी-रोटी भी इसी से चलती है. कैफे में कस्टमर से ऑर्डर लेने की जवाबदारी मेरी होती है. सारी भूमिका मैं अच्छे से निभाता हूं.''

Nukkad Cafe employee Manish
नुक्कड़ कैफे के कर्मचारी मनीष (ETV BHARAT)

"दिव्यांगों के प्रति इस कैफे ने बदली सोच": कैफे में काम करने वाले दिव्यांग कर्मचारियों का कहना है कि यह कैफे समाज के लोगों की दिव्यांगों के प्रति सोच बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है. रायपुर निवासी निलेश इस कैफे में बीते 12 सालों से काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि "साल 2013 से इस कैफे में मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं. लोगों से मिलजुल कर उन्हें काफी अच्छा लगता है.''

Raipur Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में आते लोग (ETV BHARAT)

ऑर्डर लेने का तरीका भी दिलचस्प: नुक्कड़ कैफे में जब पचास फीसदी कर्मचारी हैं, तो वहां ऑर्डर लेने और सर्व करने की प्रक्रिया कैसी है? यह सवाल भी आपके मन में आ रहा होगा. यह प्रक्रिया भी काफी दिलचस्प है.

कैफे के मूक बधिर कर्मचारी नीलेश बताते हैं कि ''मेरा दिल कैफे में लगा हुआ है और आगे भी मैं यही काम करना चाहता हूं. जब यहां ग्राहक आते हैं तो मैं उनसे ऑर्डर लेता हूं. ऑर्डर साइन लैंग्वेज में या पेपर पर लिख कर ग्राहक हमें देते हैं. उसके बाद इस ऑर्डर को किचन तक पहुंचाया जाता है. यहां कस्टमर के रूप में आए लोग हमसे कम्युनिकेट करते हैं. उसके बाद वे हमें थैंक्यू बोलते हैं.''

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ट्रांसजेंडर समुदाय, वरिष्ठ नागरिक आयुष्मान भारत योजना के तहत आएंगे: पीएम मोदी - BJP Manifesto Launch

धमतरी की रहने वाली और इस कैफे की दिव्यांग कर्मचारी वीणा खरे बताती हैं कि सबके साथ में अच्छी बातचीत होती है. कम्युनिकेशन की दिक्कत नहीं होती है. इसी कैफे में जॉब कंटिन्यू करना चाहती हूं."

दिव्यांग लोगों की काबलियत से कस्टमर भी खुश: इस कैफे में आने वाले ग्राहक यहां काम करने वाले दिव्यांग लोगों की काबलियत और सर्विस से खुश रहते हैं. एक ऐसी ही ग्राहक पायल ने बताया कि ''मैं यहां रेगुलर आती हूं. यहां काम करने वाले स्टाफ अच्छे से ऑर्डर प्लेस करते हैं. हमें कोई दिक्कत नहीं होती है. कैफे में साइन लैंग्वेज के जरिए ऑर्डर टेकिंग का काम किया जाता है.''

Sign Language At Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में साइन लैंग्वेज (ETV BHARAT)

इस कैफे में मेरा आना होता रहता है और मीटिंग वगैरह भी होते रहती है. दिव्यांग समुदाय के लोग यहां पर काम करते हैं. कैफे के माध्यम से इन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है. ऐसे लोग दूसरी जगह पर काम करते हैं तो असहज महसूस करते हैं. ऐसे लोग भी नॉर्मल लोगों के साथ उठना बैठना चाहते हैं-अनिरुद्ध अवधिया , कस्टमर, नुक्कड़ कैफे

कस्टमर अब्दुल अजीज ने बताया कि "कैफे में सर्विस बढ़िया होने के साथ ही स्टाफ भी बहुत अच्छा है. कस्टमर को देखकर मुस्कुराते हैं. काफी अच्छा लगता है. मूक बधिर और दिव्यांग लोगों के साथ मिलकर भी काफी अच्छा अनुभव रहता है. ऐसे समुदाय इस कैफे में काम करते हैं, जो समाज को भी एक सीख दे रहे हैं, कि वह कितने काबिल हैं."

Divyang Working In Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में काम करता मूक बधिर दिव्यांग (ETV BHARAT)

नुक्कड़ का आइडिया कैसे आया ?: नुक्कड़ कैफे के संचालक प्रियंक पटेल ने बताया कि "कैफे की शुरुआत साल 2013 में समता कॉलोनी से हुई थी. मैं पेशे से इंजीनियर था लेकिन मैं अपने प्रोफेशन से संतुष्ट नहीं था. एक फैलोशिप का हिस्सा बना उसके बाद गुजरात राजस्थान ओडिशा के अलग-अलग गांव में जाकर काम किया. वहीं से मेरी समझ बनी की जो भी निर्धन और गरीब परिवार हैं उसमें कोई दिव्यांग बच्चा पैदा होता है तो उनके लिए एक जिम्मेदारी बन जाती है. उनके भविष्य की चिंता माता-पिता को परेशान करती है. शहरों में रहने वाले युवाओं को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. ऐसे में मेरे जहन में एक कॉमन प्लेटफार्म बनाने का विचार आया.

NUKKAD CAFE
नुक्कड़ कैफे का मकसद जानिए (ETV BHARAT)

मेरा उद्देश्य था कि ऐसी जगह बनाऊं जहां पर यूथ आए और समाज के इस वर्ग के बारे में भी जानकारी हासिल कर सके. ऐसे में मेरे अंदर कोई ज्ञान देने वाली जगह न बनाकर कैफे बनाने का आइडिया आया. यहां लोग खुद की खुशी से आते हैं और एक नई सीख लेकर जाते हैं.- प्रियंक पटेल, फाउंडर और संचालक, नुक्कड़ कैफे

नुक्कड़ कैफे का क्या है उद्देश्य?: प्रियंक पटेल ने बताया कि साल 2013 से लेकर अब तक 4 कैफे शुरू कर चुके हैं. कैफे का मुख्य उद्देश्य रहा है कि समाज का ऐसा वर्ग जो वंचित रहा है या पीछे रह गया है. उसको समाज की मुख्य धारा से जोड़ना. मेरा यह प्रयास इस कैफे के जरिए उन लोगों से समाज के साथ कनेक्ट कराने का है. उन्हें आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता का एक अवसर देने का है.

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रायपुर: मनीष खूंटे की उम्र 25 साल है, लेकिन हाइट सिर्फ 4 फीट. मनीष कहते हैं, ''छोटा कद होने की वजह से काफी मुश्किल होती है. लोग हंसी भी उड़ाते हैं. रोजगार के लिए भी भटकना पड़ा. फिर रायपुर के एक कैफे ने काम दिया. अब सात-आठ साल से इस कैफे में काम कर रहा हूं.''

बिलासपुर जिले के बोहारडीह के रहने वाले छोटे कद के मनीष की तरह ही धमतरी निवासी दिव्यांग वीणा खरे की कहानी है. वीणा बोल नहीं सकती हैं. एक ट्रांसलेटर के जरिए ईटीवी भारत की टीम ने वीणा से बात की. वीणा ने बताया, "पहले घर में सिलाई का काम किया करती थी. फिर कैफे में काम मिला. ढाई साल से यहां काम कर रही हूं.''

रायपुर नुक्कड़ कैफे (ETV Bharat Chhattisgarh)

कहां है ऐसा कैफे?: अब आपके मन में यह ख्याल आ रहा होगा कि आखिर यह कैफे कहां है, जिसमें मूक बधिर और बौना शख्स काम कर रहे हैं. दिव्यांगों को काम पर रखने का क्या उद्देश्य है. इन तमाम सवालों के जवाब खोजने के लिए ईटीवी भारत की टीम कैफे पहुंची.

Journey of Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे की जर्नी (ETV BHARAT)

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नुक्कड़ कैफे: देश की राजधानी दिल्ली से 1223 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और स्टील सिटी दुर्ग में ऐसे 4 नुक्कड़ कैफे हैं, जिसमें मूक बधिर के साथ ही ट्रांसजेंडर और बौने लोगों को रोजगार दिया गया है. यह नुक्कड़ कैफे समाज को नई दिशा देने का काम कर रहे हैं. हमारी सोसाइटी के उपेक्षित लोग, जिनमें दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, मानव तस्करी के शिकार शख्स हैं, उन्हें यह कैफे सशक्त बना रहा है.

इन 4 नुक्कड़ कैफे में स्टाफ की संख्या लगभग 70 के आसपास है. इस कैफे के स्टाफ में 50 फीसदी कर्मचारी दिव्यांग हैं. इनमें मूक बधिर और ट्रांसजेंडर के साथ ही बौने भी शामिल हैं. खास बात यह है कि कैफे में आने वाले कस्टमर इन्हें देखकर खुद को असहज महसूस नहीं करते बल्कि इनसे घुल मिलकर रहते हैं.

Journey of Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे की जर्नी (ETV BHARAT)

दिव्यांग लोगों को समाज से कनेक्ट करता कैफे: यह कैफे दिव्यांग लोगों को न सिर्फ जिंदगी की बुनियाद दे रहा है, बल्कि यह हाशिए पर खड़े लोगों को समाज से कनेक्ट करने का काम करता है. यहां आने वाला हर शख्स दिव्यांग कर्मचारियों से इंट्रैक्ट करता है. उनसे डायरेक्ट बात कर अपनी मनपसंद डिसेज ऑर्डर करता है.अपनी काबिलियत के बल पर यहां काम करने वाले दिव्यांग, उन ऑर्डर को पूरा करते हैं. इस पूरी प्रक्रिया से सबसे ज्यादा दिव्यांग वर्ग के लोगों को फक्र महसूस होता है, कि जो समाज उन्हें उपेक्षित महसूस करता था, आज उसी समाज में वह कंट्रीब्यूट कर रहे हैं. अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

दिव्यांगों को मिल रहा संबल: साल 2013 में इस कैफे की शुरुआत रायपुर के समता कॉलोनी से हुई. यहां नुक्कड़ के एक आउटलेट से अब रायपुर में और दुर्ग में तीन से ज्यादा आउटलेट हैं. दुर्ग में नुक्कड़ का एक ऐसा आउटलेट है, जहां ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग काम करते हैं. इस तरह ट्रांसजेंडर और दिव्यांग समुदाय के लोग यहां न सिर्फ आम लोगों से लगातार डील करते हैं बल्कि एक प्रतिष्ठित रूप में काम कर अच्छी खासी आय कमाते हैं. इस तरह हाशिए पर खड़े समाज के दिव्यांग और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लोगों को यहां आकर संबल मिल रहा है.

Nukkad Cafe connects Divyang
दिव्यांग महिला कर्मचारी (ETV BHARAT)

छोटे कद के कर्मचारी मनीष खूंटे कहते हैं कि ''मुझे यहां काफी अच्छा लगता है, काफी कुछ सीखने को मिलता है. कैफे में जॉब से पहले पढ़ाई लिखाई किया करता था. परिवार की रोजी-रोटी भी इसी से चलती है. कैफे में कस्टमर से ऑर्डर लेने की जवाबदारी मेरी होती है. सारी भूमिका मैं अच्छे से निभाता हूं.''

Nukkad Cafe employee Manish
नुक्कड़ कैफे के कर्मचारी मनीष (ETV BHARAT)

"दिव्यांगों के प्रति इस कैफे ने बदली सोच": कैफे में काम करने वाले दिव्यांग कर्मचारियों का कहना है कि यह कैफे समाज के लोगों की दिव्यांगों के प्रति सोच बदलने में अहम भूमिका निभा रहा है. रायपुर निवासी निलेश इस कैफे में बीते 12 सालों से काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि "साल 2013 से इस कैफे में मैनेजर के रूप में काम कर रहे हैं. लोगों से मिलजुल कर उन्हें काफी अच्छा लगता है.''

Raipur Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में आते लोग (ETV BHARAT)

ऑर्डर लेने का तरीका भी दिलचस्प: नुक्कड़ कैफे में जब पचास फीसदी कर्मचारी हैं, तो वहां ऑर्डर लेने और सर्व करने की प्रक्रिया कैसी है? यह सवाल भी आपके मन में आ रहा होगा. यह प्रक्रिया भी काफी दिलचस्प है.

कैफे के मूक बधिर कर्मचारी नीलेश बताते हैं कि ''मेरा दिल कैफे में लगा हुआ है और आगे भी मैं यही काम करना चाहता हूं. जब यहां ग्राहक आते हैं तो मैं उनसे ऑर्डर लेता हूं. ऑर्डर साइन लैंग्वेज में या पेपर पर लिख कर ग्राहक हमें देते हैं. उसके बाद इस ऑर्डर को किचन तक पहुंचाया जाता है. यहां कस्टमर के रूप में आए लोग हमसे कम्युनिकेट करते हैं. उसके बाद वे हमें थैंक्यू बोलते हैं.''

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ट्रांसजेंडर समुदाय, वरिष्ठ नागरिक आयुष्मान भारत योजना के तहत आएंगे: पीएम मोदी - BJP Manifesto Launch

धमतरी की रहने वाली और इस कैफे की दिव्यांग कर्मचारी वीणा खरे बताती हैं कि सबके साथ में अच्छी बातचीत होती है. कम्युनिकेशन की दिक्कत नहीं होती है. इसी कैफे में जॉब कंटिन्यू करना चाहती हूं."

दिव्यांग लोगों की काबलियत से कस्टमर भी खुश: इस कैफे में आने वाले ग्राहक यहां काम करने वाले दिव्यांग लोगों की काबलियत और सर्विस से खुश रहते हैं. एक ऐसी ही ग्राहक पायल ने बताया कि ''मैं यहां रेगुलर आती हूं. यहां काम करने वाले स्टाफ अच्छे से ऑर्डर प्लेस करते हैं. हमें कोई दिक्कत नहीं होती है. कैफे में साइन लैंग्वेज के जरिए ऑर्डर टेकिंग का काम किया जाता है.''

Sign Language At Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में साइन लैंग्वेज (ETV BHARAT)

इस कैफे में मेरा आना होता रहता है और मीटिंग वगैरह भी होते रहती है. दिव्यांग समुदाय के लोग यहां पर काम करते हैं. कैफे के माध्यम से इन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है. ऐसे लोग दूसरी जगह पर काम करते हैं तो असहज महसूस करते हैं. ऐसे लोग भी नॉर्मल लोगों के साथ उठना बैठना चाहते हैं-अनिरुद्ध अवधिया , कस्टमर, नुक्कड़ कैफे

कस्टमर अब्दुल अजीज ने बताया कि "कैफे में सर्विस बढ़िया होने के साथ ही स्टाफ भी बहुत अच्छा है. कस्टमर को देखकर मुस्कुराते हैं. काफी अच्छा लगता है. मूक बधिर और दिव्यांग लोगों के साथ मिलकर भी काफी अच्छा अनुभव रहता है. ऐसे समुदाय इस कैफे में काम करते हैं, जो समाज को भी एक सीख दे रहे हैं, कि वह कितने काबिल हैं."

Divyang Working In Nukkad Cafe
नुक्कड़ कैफे में काम करता मूक बधिर दिव्यांग (ETV BHARAT)

नुक्कड़ का आइडिया कैसे आया ?: नुक्कड़ कैफे के संचालक प्रियंक पटेल ने बताया कि "कैफे की शुरुआत साल 2013 में समता कॉलोनी से हुई थी. मैं पेशे से इंजीनियर था लेकिन मैं अपने प्रोफेशन से संतुष्ट नहीं था. एक फैलोशिप का हिस्सा बना उसके बाद गुजरात राजस्थान ओडिशा के अलग-अलग गांव में जाकर काम किया. वहीं से मेरी समझ बनी की जो भी निर्धन और गरीब परिवार हैं उसमें कोई दिव्यांग बच्चा पैदा होता है तो उनके लिए एक जिम्मेदारी बन जाती है. उनके भविष्य की चिंता माता-पिता को परेशान करती है. शहरों में रहने वाले युवाओं को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. ऐसे में मेरे जहन में एक कॉमन प्लेटफार्म बनाने का विचार आया.

NUKKAD CAFE
नुक्कड़ कैफे का मकसद जानिए (ETV BHARAT)

मेरा उद्देश्य था कि ऐसी जगह बनाऊं जहां पर यूथ आए और समाज के इस वर्ग के बारे में भी जानकारी हासिल कर सके. ऐसे में मेरे अंदर कोई ज्ञान देने वाली जगह न बनाकर कैफे बनाने का आइडिया आया. यहां लोग खुद की खुशी से आते हैं और एक नई सीख लेकर जाते हैं.- प्रियंक पटेल, फाउंडर और संचालक, नुक्कड़ कैफे

नुक्कड़ कैफे का क्या है उद्देश्य?: प्रियंक पटेल ने बताया कि साल 2013 से लेकर अब तक 4 कैफे शुरू कर चुके हैं. कैफे का मुख्य उद्देश्य रहा है कि समाज का ऐसा वर्ग जो वंचित रहा है या पीछे रह गया है. उसको समाज की मुख्य धारा से जोड़ना. मेरा यह प्रयास इस कैफे के जरिए उन लोगों से समाज के साथ कनेक्ट कराने का है. उन्हें आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता का एक अवसर देने का है.

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Last Updated : Feb 25, 2025, 8:47 AM IST
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