रांची: संथाल परगना के जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से सबसे ज्यादा आदिवासी समाज की डेमोग्राफी प्रभावित हुई है. इसके खिलाफ दायर दानियल दानिश की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने केंद्रीय संस्थानों के प्रति नाराजगी जाहिर की है.
दरअसल, पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने इस मामले में बीएसएफ के डायरेक्टर जनरल, यूआईडीएआई के डायरेक्टर जनरल, मुख्य सूचना आयुक्त, आईबी के डायरेक्टर जनरल और एनआईए के डायरेक्टर को भी प्रतिवादी बनाते हुए अलग-अलग शपथ पत्र देने को कहा था. लेकिन आज सुनवाई के दौरान केंद्रीय संस्थानों की ओर से शपथ पत्र दायर करने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा गया. इस पर नाराजगी जताते हुए खंडपीठ ने आईए को खारिज करते हुए दो सप्ताह के भीतर शपथ पत्र दायर करने को कहा है.
मामले की अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी. राज्य सरकार की ओर से संथाल के सभी छह जिलों के डीसी और एसपी के स्तर पर शपथ पत्र दायर किया जा चुका है. सुनवाई के दौरान खंडपीड ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या कम होती जा रही है. फिर भी केंद्रीय संस्थानों की ओर से इतने संवेदनशील मसले पर जवाब दाखिल नहीं किया जा रहा है.
पिछली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट का आदेश
8 अगस्त को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि घुसपैठियों और अवैध अप्रवासियों की पहचान सुनिश्चित कराने में स्पेशल ब्रांच की मदद लें और कार्रवाई करें. कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायाधीश अरुण राय की खंडपीठ ने संथाल के सभी छह जिलों के उपायुक्तों को भी आदेश दिया था कि लैंड रिकॉर्ड से मिलान किए बिना आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, बीपीएल कार्ड को जारी नहीं करना है. साथ ही बन चुके पहचान पत्रों की जांच के लिए अभियान चलाना है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिन दस्तावेजों के आधार पर राशन कार्ड, वोटर कार्ड या आधार कार्ड बनाए गये हैं, वो जायज ही हों, ये नहीं कहा जा सकता. इसकी वजह से राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में भी हकमारी हो रही है.