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'गैर-प्रवासी से शादी करने पर भी महिलाओं का प्रवासी दर्जा बरकरार रहेगा', HC ने नियुक्ति पत्र जारी करने का दिया निर्देश

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने दो महिलाएं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उन्हें चार सप्ताह के भीतर नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया.

Jammu-Kashmir High Court Rules Migrant Status of Women Remains Intact Despite Marrying Non-Migrants
'गैर-प्रवासी से शादी करने पर भी महिलाओं का प्रवासी दर्जा बरकरार रहेगा', HC ने नियुक्ति पत्र जारी करने का दिया निर्देश (ETV Bharat)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 30, 2024, 5:47 PM IST

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि 1990 के दशक में सुरक्षा चिंताओं के कारण कश्मीर घाटी से पलायन करने वाली कश्मीरी पंडित महिलाएं, किसी गैर-प्रवासी से विवाह करने मात्र से अपना 'प्रवासी' का दर्जा नहीं खो देंगी.

11 नवंबर को, जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की खंडपीठ ने सीमा कौल और विशालनी कौल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी महिला के प्रवासी दर्जे को गैर-प्रवासी से शादी के आधार पर रद्द करना भेदभावपूर्ण और अन्यायपूर्ण होगा. पीठ ने माना कि ऐसा निर्णय न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ होगा.

न्यायाधीशों ने अपने फैसले में कहा, "ऐसी स्थिति में यह मान लेना कि महिला प्रवासी के रूप में अपना दर्जा केवल इसलिए खो देगी क्योंकि उसे परिवार बनाने की स्वाभाविक इच्छा के कारण मौजूदा परिस्थितियों के कारण गैर-प्रवासी से विवाह करना पड़ा, घोर भेदभावपूर्ण होगा तथा न्याय की मूल अवधारणा के विरुद्ध होगा."

याचिकाकर्ता 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीर से पलायन कर गई थीं, उन्होंने प्रवासी श्रेणी के तहत नौकरियों के लिए आवेदन किया था, लेकिन गैर-प्रवासी से विवाह करने के कारण उनकी उम्मीदवारी को चुनौती दी गई थी. उन्होंने यह दावा करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था कि गैर-प्रवासी से शादी करने से उनका प्रवासी दर्जा खत्म नहीं किया जा सकता है.

याचिकाकर्ताओं द्वारा गैर-प्रवासी से विवाह करने के कारण उनका प्रवासी दर्जा रद्द करने के मुद्दे को पीठ ने 'सार्वजनिक महत्व का विषय' माना. हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि इन महिलाओं को बिना किसी गलती के परिवार को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और यह उम्मीद करना ठीक नहीं है कि वे प्रवासी के रूप में अपना दर्जा बनाए रखने के लिए अविवाहित रहेंगी.

अदालत ने कहा, "ऐसा करना मानवता के खिलाफ होगा." साथ ही पीठ ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पुरुष प्रवासियों को गैर-प्रवासियों से विवाह करने पर इसी प्रकार दंडित नहीं किया जाता. इस प्रथा ने व्यवस्था की भेदभावपूर्ण प्रकृति को और उजागर कर दिया.

अदालत ने टिप्पणी की, "ऐसी स्थिति केवल समाज में व्याप्त पितृसत्ता के कारण उत्पन्न हुई है. हालांकि, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश क्षेत्र के तहत रोजगार से संबंधित मामलों में इस तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है." पीठ ने कहा कि रोजगार के मामलों में लैंगिक भेदभाव असंवैधानिक है.

'प्रवासी' की कानूनी परिभाषा में दोनों महिलाएं शामिल
हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं ने प्रवासी दर्जा नहीं खोया है, क्योंकि 'प्रवासी' की कानूनी परिभाषा में वे व्यक्ति शामिल हैं जिन्हें 1989 के बाद कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था. दोनों महिलाएं भी इसमें शामिल थी. अदालत ने सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं की वैवाहिक स्थिति प्रासंगिक थी, यह कहते हुए कि मूल नौकरी विज्ञापन में इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि गैर-प्रवासी से शादी करने से उम्मीदवार अयोग्य हो जाएंगे.

सरकार के दावे खारिज
इसके अलावा, अदालत ने सरकार के इस दावे को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा वैवाहिक स्थिति के बारे में खुलासा न करने से अन्याय हुआ है. अदालत ने निष्कर्ष निकाला, "अपीलकर्ता (सरकार) यह दिखाने में सक्षम नहीं हैं कि उन लोगों के साथ अन्याय कैसे हुआ है जो इस तरह के गैर-प्रकटीकरण के कारण अन्यथा चयनित नहीं हो सके. इसलिए, यह तर्क भी खारिज किया जाता है."

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के फैसले को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने राज्य प्राधिकारियों को चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति पत्र जारी करने का निर्देश दिया.

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