जबलपुर (विश्वजीत सिंह राजपूत):जबलपुर के ग्वारीघाट पर श्रद्धालु पहुंचते हैं तो उनकी नजर एक नाविक पर टिक जाती है. ये नाविक एक युवती है. नाम है नीतू बर्मन. पिता का एक्सीडेंट होने के बाद वह नाव चलाने में असमर्थ हैं. भाई विकलांग है. मजबूरन घर का पालन-पोषण करने के लिए नीतू ने नाव खुद चलाने का फैसला किया. नर्मदा नदी के ग्वारीघाट पर ज्यादातर नाविक पुरुष हैं. इसलिए ये लोग नीतू को नाव चलाने में लगातार बाधाएं पैदा कर रहे हैं. इसके बाद भी नीतू अपने काम में लगी है.
घर में विकलांग भाई व असहाय पिता का सहारा
ग्वारीघाट में लगभग 100 पुरुष नाविकों के बीच नीतू बर्मन अकेली लड़की जिसने नाव का चप्पू थामा है. उसने पुरुष नाविकों के एकाधिकार को चुनौती दी है. इसलिए ग्वारीघाट के नाविक उसे परेशान कर रहे हैं. नीतू की पीड़ा यह है कि उसके परिवार में विकलांग पिता व विकलांग भाई का वही एकमात्र सहारा है. इसलिए वह निडर होकर इस काम को अंजाम दे रही है. एक समय नीतू बर्मन के पिता जबलपुर के ग्वारी घाट में नर्मदा नदी में नाव चलाते थे. नीतू बर्मन का परिवार पिता की कमाई से ही चलता था. उसकी मां हाउसवाइफ है. नीतू का एक छोटा भाई भी है, लेकिन कमाई का एकमात्र जरिया एक नाव है, जो ग्वारी घाट में स्थानीय पर्यटकों की भरोसे चलती है.
नीतू की कहानी में कैसे आया टर्निंग प्वाइंट
नीतू के पिता ने नाव चलाकर जो पैसा इकट्ठा किया, उसी से नीतू की शादी कर दी. नीतू का भाई भी शहर के एक आरा मशीन कारखाने में काम करने लगा था. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक किस्मत ने पलटी मारी. नीतू की शादी को कुछ दिन ही हुए थे कि पति की मौत हो गई. नीतू दोबारा अपने घर लौट आई. परिवार पर आए संकट अभी खत्म नहीं हुए थे कि अचानक एक दिन नीतू के पिता का एक्सीडेंट हो गया और उनके हाथ में गंभीर चोट आई. डॉक्टरों ने कहा कि अब वे इस हाथ से नाव का चप्पू नहीं चला पाएंगे. अब सबकी नज़रें नीतू के भाई पर टिकी थी कि अचानक भाई का हाथ भी आरा मशीन में चला गया और उसकी तीन उंगलियां कट गईं.