श्रीनगर : कश्मीरी हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट ने प्रशासन को अतिक्रमण और भू-माफिया सेमंदिरों और तीर्थस्थलों की रक्षा करने का आदेश दिया है. इस निर्णय का उद्देश्य इन पवित्र स्थलों को संरक्षित करना है, जो 1990 के दशक में कश्मीरी पंडित समुदाय के पलायन के बाद से असुरक्षित हो गए हैं. न्यायालय में विरासत संरक्षण के लिए एक मार्मिक लड़ाई देखी गई, जिसमें जम्मू और कश्मीर के वरिष्ठ अतिरिक्त महाधिवक्ता मोहसिन कादरी ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया और वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एम. कौल ने वर्चुअल मोड के माध्यम से याचिकाकर्ताओं की वकालत की.
न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कश्मीरी पंडित समुदाय के सदस्यों की याचिका स्वीकार कर ली है. इसके साथ ही उत्तरी कश्मीर के गांदरबल के जिला मजिस्ट्रेट को जिले के नुनेर गांव में स्थित दो हिंदू धार्मिक स्थलों'अस्थापन देवराज भारव' और 'विधुशे' मंदिर को संरक्षित, सुरक्षित और रखरखाव करने तथा जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकट बिक्री पर रोक) अधिनियम 1997 के तहत आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया.
बता दें, याचिकाकर्ताओं ने स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए गंदेरबल जिले में एकमात्र श्मशान घाट पर अतिक्रमण को लेकर बेईमान तत्वों के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराई थी. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 1990 में गांदरबल जिले सहित घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद, प्रतिवादी संख्या 5 और 6, जो खुद भी घाटी से पलायन कर गए थे, उनका इन धार्मिक स्थलों के प्रबंधन से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि उन्होंने इन्हें प्रतिवादी संख्या 7 और 8 को पट्टे पर देकर इन पर कब्जा कर लिया था. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि प्रतिवादी 5 और 6 ने प्रतिवादी 7 और 8 के साथ मिलकर धार्मिक स्थलों की संपत्तियों को नष्ट कर दिया, उन पर अतिक्रमण कर लिया और उन पर कब्जा कर लिया.