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रुस्तम-ए-हिंद गामा पहलवान का बिहार से नाता, गया अखाड़े में गदा से लेकर उनकी कई निशानियां मौजूद - THE GREAT GAMA

द ग्रेट गामा और रुस्तम-ए-हिंद से अपनी पहचान बनाने वाले गामा पहलवान का बिहार से खास नाता है. गया से रत्नेश की रिपोर्ट पढ़ें.

the great gama bihar connection
गामा पहलवान का बिहार से नाता (Social media)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

Updated : 3 hours ago

गया:विश्व भर में कुश्ती के बादशाह द ग्रेट गामा इतिहास के पन्नों में अमर हैं. गुलाम मोहम्मद उर्फ गामा की कहानी कई राजा-रजवाड़ा से जुड़ी है. इसमें बिहार का गया जिला द ग्रेट गामा की लंबी यादों को संजोए है. विस्तार से जानें विश्व चैंपियन द ग्रेट गामा का गया से कनेक्शन और विश्व चैंपियन बनने में गया अखाड़े की क्या भूमिका रही थी.

गामा पहलवान कभी नहीं हारे: 10 वर्ष की उम्र से पहलवानी शुरू करने वाले गुलाम मोहम्मद बख्श का जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में हुआ और 1960 में पाकिस्तान के लाहौर में उनकी मृत्यु हुई. तकरीबन 5 दशक के पहलवानी में गामा अजेय रहे और कोई मुकाबला नहीं हारे.

देखें यह रिपोर्ट. (ETV Bharat)

रुस्तम-ए-हिंद गामा पहलवान का बिहार कनेक्शन: भारत के पंजाब के अमृतसर में गामा का जन्म हुआ था, लेकिन उनकी कुश्ती के किस्से कई राजा रजवाड़ों से जुड़े हैं. गामा किस कदर राजाओं को प्रिय थे, इसका जिक्र इतिहास के पन्नों से मिलता है. गया के अखाड़े से जुड़ी द ग्रेट गामा की कहानी रोमांचित करने वाली है.

गया के अखाड़े का गामा के लिए विशेष महत्व:बिहार के गया से द ग्रेट गामा का लंबा कनेक्शन रहा है. विश्व चैंपियन बनने की बात करें, तो गया के अखाड़े की भूमिका रही. कहा तो यह जाता है, कि गया के अखाड़े में लगातार 6 महीने तक द ग्रेट गामा रहे थे और कई नाम- गिरामी पहलवान के साथ दांव-पेंच आजमाते हुए पटखनी दी थी.

इस विशाल पत्थर को उठा लेते थे गामा पहलवान (ETV Bharat)

गया के अखाड़े में प्रैक्टिस करते थे गामा पहलवान: गया के अखाड़े में गामा पहलवान ने जमकर प्रैक्टिस की और इंग्लैंड में पहुंचकर उन्होंने विश्व चैंपियन रहे अमेरिका के जैविशको को चंद मिनट में ही पटखनी दी थी. द ग्रेट गामा अपने पूरे जीवन काल में कभी नहीं हारे, सिर्फ एक बार 7 फीट के रहीम बक्स गुजरांवाला से बराबरी पर लड़ाई छूटी थी. इसमें न कोई हारा और न कोई जीता था.

गया के सिजुआर स्टेट में गामा से जुड़ा अखाड़ा: भारत और विश्व के कुश्ती इतिहास के अजेय पहलवान गुलाम मोहम्मद उर्फ गामा की बड़ी कहानी गया से जुड़ी है. गया में गामा न सिर्फ कई महीने के लिए आते थे, सिजुआर स्टेट के अखाड़े में उनकी गया के नामी गिरामी पहलवान के साथ कुश्ती हुआ करती थी.

गया आते रहते थे गामा पहलवान:गामा के भाई-मामा से जुड़ा मकान भी सिजुआर स्टेट के समीप था, जो कि जीर्ण-शीर्ण हालत में चला गया है. इस तरह गया में गामा और उसके परिवार का आना-जाना स्थाई और लंबे समय थी तक की थी. हालांकि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद जब गामा पाकिस्तान को चले गए, तो उनका और उनके परिवारों का आना-जाना कम हो गया. हालांकि इसके बीच द ग्रेट गामा गया को आते रहे थे.

गया के सिजुआर स्टेट में गामा से जुड़े अखाड़े में गदा मौजूद (ETV Bharat)

गामा का 200 किलो का गदा मौजूद:गया के सिजुआर स्टेट ने आज भी द ग्रेट गामा की कई यादों को संजोए रखा है. यहां गामा से जुड़े अखाड़े को आज भी सुरक्षित रखा गया है. सिजुआर स्टेट में भी तकरीबन कई हिस्सों में नव निर्माण का कार्य शुरू हुआ है, लेकिन अखाड़े को अब तक नुकसान नहीं पहुंचाया गया.

गामा पहलवान से जड़ी कई यादें मौजूद: इस अखाड़े को इतिहास के पन्नों की तरह संजोकर रखा गया है. वहीं गामा का गदा यहां मौजूद है. कहते हैं, कि 200 किलोग्राम वजनी गदे को गामा अपने सिर के ऊपर से घुमाया करते थे, यानी कि गदे की तरह लहराया करते थे. आज भी वह गदा यहां रखा हुआ है. इसके अलावा गामा से जुड़ी कई यादों को संजो कर रखा गया है.

गामा पहलवान के रिश्तेदार का गया में घर (ETV Bharat)

राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के वंशज ने साझा की यादें: गामा और सिजुआर स्टेट की कहानी राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के जमाने से जुड़ी हुई है. राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर खुद अच्छे पहलवान थे. उन्हें पहलवानी का काफी शौक था. सिजुआर स्टेट में बड़े-बड़े अच्छे-अच्छे नामी पहलवान रहा करते थे. उनके जमाने में गामा पहलवान की प्रसिद्धी थी. इस संबंध में सिजुआर स्टेट के राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि हमारे यहां ग्रेट ग्रैंडफादर राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर अच्छे पहलवान थे.

"मेरे ग्रेट ग्रैंड फादर राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के जमाने में गामा पहलवान काफी प्रसिद्ध थे. गामा पहलवान और उनके भाई सिजुआर स्टेट में आकर छह-छह महीने रहा करते थे. यह अखाड़ा अभी भी है. गामा का और राय बहादुर साहब का जब कुश्ती हुआ करता था, तो पर्दा लगा दिया जाता था. काफी देर तक कुश्ती चलती थी."- राजेंद्र सिजुआर, राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के वंशज

राजेंद्र सिजुआर, राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के वंशज (ETV Bharat)

अमेरिकी पहलवान को किया चित:राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि वर्ष 1910 में अमेरिकी पहलवान जैविशको को द ग्रेट गामा ने हराया था. इंग्लैंड में द ग्रेट गामा ने वर्ल्ड चैंपियन अमेरिकी पहलवान जैविशको को चंद मिनट में धूल चटा दी थी. राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि तब 1910 मैं इंग्लैंड में हुई अमेरिकी पहलवान के साथ गामा की कुश्ती के ठीक पूर्व गामा गया में ही थे. कई महीने गया में भी रहे थे. यहां से सिजुआर स्टेट के अखाड़े में जमकर कुश्ती करते थे.

"अमेरिकी पहलवान जैविशको से भिड़ने गए थे. वहां गामा को यह कहकर अलाउड नहीं किया जा रहा था, कि वह 5 फुट 7 इंच के ही है. इसके बीच गामा ने चैलेंज किया, कि वह किसी भी पहलवान को हरा देगा. तब कई पहलवान गामा से भिड़ाए गए. सभी को गामा ने पलक झपकते ही मात दे दी. इसके बाद वर्ल्ड चैंपियन अमेरिकी पहलवान जैविशको के साथ गामा की भिड़ंत हुई. गामा ने महज 1 मिनट 40 सेकेंड में जैविशको को धूल चटा दी थी."- राजेंद्र सिजुआर, राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के वंशज

रुस्तम-ए-हिंद गामा पहलवान का बिहार से नाता (ETV Bharat)
गामा की खुराक: राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि द ग्रेट गामा की कई यादें आज भी हमने संजोकर रखी है. पांच मन वजनी यानि 200 किलोग्राम के द ग्रेट गामा की खुराक हैरान करने वाली थी. हालांकि राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर ने उस जमाने में गामा के लिए लाखों खर्च किए. गामा जब गया के सिजुआर स्टेट के अखाड़ी में कुश्ती आजमाया करते थे, तो उनके एक बार के भोजन के रूप में सैंकड़ों रोटियां, 10 किलो दूध, 1 किलो बादाम का पहला पिसान, एक बकरे की चारों गोड़ियों का सूरमा आदि होता था.

ब्रह्मयोनि पहाड़ पर 10 बार चढ़ता था गामा: गामा कितना बलिष्ठ थे. इसका पता इससे भी लगता है, कि वे ब्रह्मयोनि पहाड़ पर दौड़ कर चढ़ जाया करते थे. वह ब्रह्मयोनि पहाड़ पर एक बार नहीं चढ़ते थे, बल्कि कम से कम 10 बार चढ़ते थे और 10 बार उतरते थे. यह असंभव के समान है, लेकिन उनकी दिनचर्या में ब्रह्मयोनि पहाड़ प्रतिदिन चढ़ना और प्रतिदिन उतरना शामिल हुआ करता था.

ब्रह्मयोनि पहाड़ में 440 सीढ़ियां: ब्रह्मयोनी पहाड़ पर एक-एक फीट की 440 सीढ़ियां हैं. इन 440 सीढ़ियों को 10 बार चढ़ना और 10 बार उतरना बेहद असंभव है, लेकिन गामा के लिए यह असंभव नहीं था. 200 किलो वजनी पत्थर का गदा सर के ऊपर से घूमाना भी गामा के लिए ही संभव था. 5 मन वजनी द ग्रेट गामा बलिष्ठ थे.

5000 बैठक और 5000 दंड रोजाना: राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि गामा पहलवान गया में जब आते थे, तो 5000 बैठक और 5000 दंड किया करते थे. सिजुआर स्टेट के अखाड़े में प्रतिदिन कई पहलवानों से उनकी कुश्ती होती थी. राजेंद्र सिजुआर बताते हैं, कि राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर के अलावे पटियाला नरेश और जोधपुर नरेश ने भी गामा को काफी प्रश्रय दिया.

कैसे मिला रुस्तम-ए-हिंद का खिताब ?: बता दें कि तब पहलवानी का अपना क्रेज हुआ करता था. आज जिम का जमाना है, लेकिन पहले हर घर में कुश्ती और संगीत की धमक हुआ करती थी. राजेंद्र सिजुआर बताते हैं कि गामा को रुस्तम-ए-हिंद का खिताब मिला था. उसका भी कनेक्शन गया से रहा है. इसकी कहानी अंग्रेजी अफसर से जुड़ी है, जिसने राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर को चैलेंज किया था.

खाने में होता था इतना खर्च:तब राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर ने अपने अखाड़े में कुश्ती आजमाने वाले गामा पहलवान को आगे लाया था और अंग्रेज के उस पहलवान को हरा दिया था. इसके बाद कोलकाता में हुई कुश्ती प्रतियोगिता में कई पहलवानों को हराकर रुस्तम में हिंद का खिताब गामा ने जीता था. राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर की देखरेख में गामा को दक्ष किया गया था और उनकी इस महान पहलवान के पोषण संबंधी जरूरत को पूरा करने के लिए लाखों खर्च हुए थे.

1947 में भारत-पाक बंटवारे में भारत का साथ छोड़ा:वर्ष 1947 में इंडिया-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तब गामा पाकिस्तान को चले गए. हालांकि उन्हें भारत में रहने के लिए कई राजा महाराजा ने उन्हें रुकने के लिए कहा. उनके लिए सारी जरूरत को पूरा करने की भी बात कही. सैकड़ों एकड़ जमीन देने की बात पटियाला महाराज ने कही थी.

पाकिस्तान चले गए गामा पहलवान:वहीं, राय बहादुर गोविंद लाल सिजुआर ने भी उन्हें जरूरत के मुताबिक सब कुछ देने को कहा था. लेकिन गामा नहीं रुके और पाकिस्तान को चले गए थे. भारत में जैसा सम्मान और प्यार गामा को मिला, वह पाकिस्तान में कभी नहीं नसीब हुआ. जीवन के अंतिम क्षणों में गामा की स्थिति बदतर हुई. आर्थिक तंगी के बीच उनका अंतिम जीवन गुजरा.

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