मसूरी (उत्तराखंड): रोलर स्केट्स...ये नाम आज के दौर में सभी ने सुना ही होगा. आजकल के बच्चे इस पर आपको कुलाचें भरते कहीं भी दिख जाएंगे. आजकल की उच्च तकनीक के साथ ही इसकी ट्रेनिंग उपलब्धता ने रोलर स्केट्स को सहज बना दिया है. इसके बाद भी इसे बिना ट्रेनिंग के चलाना आज भी कठिन काम है, तो सोचिये आज से पचास साल पहले की स्थिति क्या रही होगी. तब रोलर स्केट्स चलाना आम बात नहीं थी. उस दौर में भी उत्तराखंड के पांच दोस्तों के ग्रुप ने रोलर स्केट्स से 320 किलोमीटर की यात्रा की थी. ये यात्रा मसूरी से दिल्ली के बीच की गई थी. तब के दौर में की गई रोलर स्केट्स की 320 किमी लंबी ये यात्रा आज भी इतिहास में दर्ज है.
...ये उन दिनों की बात है:तो कहानी ऐसे शुरू होती है...साल था 1975, मसूरी के 25-26 साल के पांच दोस्तों ने तय किया कि क्यों न कुछ रोमांचक किया जाए. उस समय की जनरेशन के पास स्केट्स पहुंचे ही थे. नया-नया क्रेज था तो इन पांचों दोस्तों ने भी स्केट्स पहनकर मसूरी की सड़कों पर खुद को ट्रेन किया. जब अच्छे से स्केट्स में चलना आया तो सभी ने ये फैसला किया कि क्यों न मसूरी से निकलकर लंबी दूरी तय की जाए. बस फिर क्या था मसूरी से दिल्ली की यात्रा का प्लॉन बना, और पांच दिन में पांचों दोस्त स्केटिंग करते हुए दिल्ली पहुंचे.
70 के दशक का जुनूनी रोलर स्केटर्स ग्रुप (ETV BHARAT)
पांच दोस्त, 320 किलोमीटर का सफर, रोलर स्केट्स से यात्रा:इस ऐतिहासिक स्केट्स यात्रा में जो पांच दोस्त शामिल थे, उनमें ये आज केवल दो ही जीवित हैं. ये गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह हैं. दोनों ही जीवन के 75वें वसंत देख चुके हैं. गोपाल भारद्वाज राष्ट्रीय स्केटर्स होने के साथ ही प्रसिद्ध इतिहासकार भी हैं. मसूरी के गढ़वाल टैरेस पहुंचे गोपाल भारद्वाज ने अपनी उस यात्रा को याद किया. इस दौरान उनके साथ 'स्केटर' मित्र सिंघाड़ा सिंह भी मौजूद थे. यहां उन्होंने उन्हीं पुराने पलों और उनके साथ गए अन्य तीन दोस्तों आनंद मिश्रा, गुरदर्शन सिंह जायसवाल और गुरुचरण सिंह होरा को भी याद किया.
1975 में करीब 320 किलोमीटर की यात्रा (फोटो सोर्स: गोपाल भारद्वाज)
दिल्ली में हुआ भव्य स्वागत, 50रु मिले इनाम:गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह ने बताया 1975 में जब उन्होंने यह यात्रा की थी, तब वो जीवन में पहली बार दिल्ली में दाखिल हुए थे. दिल्ली में दाखिल होने पर उनका और उनके साथियों का दिल्ली की जनता, पुलिस और रोलर स्केटिंग फेडरेशन की ओर से भव्य स्वागत किया गया. कोका कोला कंपनी की ओर से उन्हें 50-50 रुपये का इनाम भी दिया गया. दूरदर्शन पर उनका साक्षात्कार भी हुआ था, जो उनके लिए काफी बड़ी बात थी.
वर्तमान में आधुनिक स्केट्स उपलब्ध हैं, लेकिन 70 के दशक के अंत में ऐसे उपकरण उपलब्ध नहीं थे. तब खिलाड़ी लोहे के पहिये वाले स्केट्स का इस्तेमाल करते थे. उनके साथ मसूरी के सिंघाड़ा सिंह, आनंद मिश्रा, गुरदर्शन सिंह जैसवाल और गुरचरण सिंह होरा भी थे. वो फिगर स्केटिंग में तीन बार के राष्ट्रीय चौंपियन अशोक पाल सिंह के मार्गदर्शन में 14 फरवरी 1975 को मसूरी से रोलर स्केटिंग की यात्रा पर निकले. यह यात्रा देहरादून, रुड़की, मुजफ्फरनगर और मेरठ होते हुए दिल्ली पहुंचकर 18 फरवरी 1975 को पूरी हुई. - गोपाल भारद्वाज, राष्ट्रीय स्केटर -
मसूरी से दिल्ली तक स्केटर्स ने की यात्रा (फोटो सोर्स: गोपाल भारद्वाज)
गोपाल भारद्वाज याद करते हैं कि उस समय ऐसे आयोजन सिर्फ यूरोपीय देशों में ही होते थे. इतनी लंबी दूरी की यह एशिया की पहली रोड स्केटिंग यात्रा की गई थी.
दिल्ली पहुंचने पर तत्कालीन उपराज्यपाल डॉ. कृष्ण चंद्र पांचों स्केटर्स का स्वागत करने के लिए मौजूद थे. स्केट्स में लोहे के पहिये लगे थे, इसलिए उन्हें बार-बार बदलना पड़ता था. कई बार वो और उनके साथी तीन पहियों पर कई किलोमीटर तक यात्रा करते रहे. जब वो देहरादून से गुजर रहे थे, तो राजपुर रोड पर विजय लक्ष्मी पंडित खड़ी थीं. उन्होंने उनका हौसला बढ़ाया. उनका पहला पड़ाव देहरादून, दूसरा रुड़की, तीसरा मुजफ्फरनगर और चौथा मेरठ में था. पांचवें दिन दिल्ली पहुंचने पर उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. - गोपाल भारद्वाज, राष्ट्रीय स्केटर -
स्केटर्स का हुआ स्वागत (फोटो सोर्स: गोपाल भारद्वाज)
मसूरी से अमृतसर तक भी की यात्रा:
इस अभियान से उत्साहित होकर टीम के सदस्यों ने मसूरी से अमृतसर तक की 490 किलोमीटर की दूरी को भी रोलर स्केट्स पर तय करने का फैसला किया.
मसूरी से 10 स्केटर्स का दल 9 दिसंबर, 1975 को सड़क मार्ग से अमृतसर के लिए रवाना हुआ.
17 दिसंबर, 1975 को अमृतसर पहुंचे. टीम में आनंद मिश्रा, जसकिरन सिंह, सूरत सिंह रावत, अजय मार्क, सिंघाड़ा सिंह, गुरदर्शन सिंह, गुरचरण सिंह होरा, लखबीर सिंह, जसविंदर सिंह और भारद्वाज शामिल थे.
सिंघाड़ा सिंह (ETV BHARAT)
मसूरी में रोलर स्केटिंग/रोलर हॉकी का स्वर्णिम इतिहास:
रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी में मसूरी का स्वर्णिम इतिहास रहा है.
1880 से 1970 तक मसूरी के स्केटिंग रिंक हॉल को एशिया का सबसे पुराना और बड़ा स्केटिंग रिंक होने का गौरव प्राप्त था.
20वीं सदी में 1981 से 1990 के बीच रोलर स्केटिंग-रोलर हॉकी और मसूरी एक दूसरे के पूरक रहे.
इस दौरान अक्टूबर का महीना मसूरी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हुआ करता था.
यहां हर साल आयोजित होने वाली ऑल इंडिया रोलर स्केटिंग प्रतियोगिता में देशभर से नामी स्केटर्स जुटते थे.
इस दौरान लगभग सभी खिलाड़ी अपनी कला और स्पीड स्केटिंग का प्रदर्शन करने के साथ ही रोलर हॉकी भी खेलते थे.
सरकारों पर लगाया उपेक्षा का आरोप:इस दौरान गोपाल भारद्वाज और सिंघाड़ा सिंह ने तत्कालीन और वर्तमान सरकारों पर उनकी उपेक्षा करने का आरोप लगाया. इन राष्ट्रीय स्केटर्स का कहना है कि, आज तक इनमें से किसी भी स्केटर को सरकार की ओर से कोई सम्मान नहीं मिला है. इसका नतीजा यह हुआ है कि मसूरी में रोलर स्केटिंग और रोलर हॉकी खत्म होती जा रही है.
1975 में सीमित संसाधनों के बावजूद मसूरी से दिल्ली तक की यात्रा स्केट्स के माध्यम से की गई. पूरे विश्व में उस समय उत्तर प्रदेश का नाम रोशन हुआ. इसके बाद भी दोनों की सुध लेने वाला आजतक कोई नहीं है. उन्होंने मसूरी के स्थानीय प्रशासन और मसूरी नगर पालिका प्रशासन से मसूरी में स्केटिंग रिंक हॉल बनाये जाने की मांग की. उन्होंने मसूरी के टाउन हॉल में स्केटिंग करने के लिये अनुमति भी मांगी. - सिंघाड़ा सिंह, राष्ट्रीय स्केटर -
सिंघाड़ा सिंह (ETV BHARAT)
गोपाल भारद्वाज ने कहा, वर्तमान बच्चे खेलों से दूर हो रहे हैं, ये आज के समय में काफी रिलेवेंट है. आजकल बच्चे ज्यादातर टेक्नोलॉजी और डिजिटल डिवाइसेस में ही अपना समय गुजार रहे हैं. ये उन्हें आउटडोर एक्टिविटीज और फिजिकल गेम्स से दूर ले जा रहा है. ये एक चिंता का विषय है.