देहरादून: उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहे हैं. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश की स्थितियां खराब हो जाती हैं, क्योंकि प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि प्रदेश में हो रही वनाग्नि की घटनाएं भी आपदा को न्यौता दे रही हैं. दरअसल वनाग्नि की घटनाओं से न सिर्फ इकोसिस्टम और ग्लेशियर पर असर पड़ता है, बल्कि इसका असर मिट्टी पर भी पड़ता है, जिससे मिट्टी की धारण क्षमता कम हो जाती है और मानसून सीजन के दौरान भूस्खलन की आशंकाएं बढ़ जाती हैं.
वनाग्नि से भूस्खलन की आशंका:प्रदेश में पहले से ही भूस्खलन एक गंभीर समस्या बना हुआ है. मानसून सीजन के दौरान भूस्खलन होने से जानमाल को काफी नुकसान पहुंचता है. ऐसे में हर साल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली वनाग्नि की घटनाओं से भी भूस्खलन की आशंका बढ़ती जा रही है, जो भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है. भूस्खलन होने से आपदा के कई अन्य कारण भी पैदा हो जाते हैं. भूस्खलन होने से लैंडस्लाइड रिलेटेड लेक पैदा हो जाती हैं और फिर ये लेक बाद में आउटबर्स्ट फ्लड की स्थिति भी पैदा करती हैं.
सूरज की गर्मी को सोखती है राख:प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि की घटना होने से पूरा क्षेत्र जलकर ख़ाक हो जाता है. ऐसे में उस क्षेत्र में चारों ओर राख फैल जाती है, जो सूरज की गर्मी को सोख लेती है. जिसके चलते आसपास का क्षेत्र और हवा भी गर्म हो जाती है. हवा का तापमान बढ़ने से तपिश बढ़ती है. ऐसे में ग्लेशियर और बर्फ पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यानी ग्लेशियर और बर्फ के पिघलने की रफ्तार बढ़ जाती है. इसके अलावा, वनाग्नि की घटना से तमाम पार्टिकल हवा में मिल जाते हैं, जिससे सांस संबंधित बीमारियां भी बढ़ जाती हैं.