पटना: प्रसिद्ध लोक संगीत गायिका पद्म भूषण शारदा सिन्हा(1अक्टूबर 1952 - 05 नवंबर 2024)हमारे बीच नहीं रही. दिल्ली एम्स में इलाज के दौरान आज उनका निधन हो गया. अचानक ज्यादा तबीयत खराब होने के कारण कल से उनको दिल्ली एम्स में वेंटिलेटर पर रखा गया था. 72 साल की अवस्था में उनका आज निधन हो गया
मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित थीं : साल 2017 से ही मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित थीं. एम्स के कैंसर संस्थान इंस्टिट्यूट रोटरी कैंसर हॉस्टिपतल के आईसीयू में इलाज चल रहा था. एम्स में उनका साल 2017 से मल्टीपल मायलोमा का इलाज चल रहा था.
22 अक्टूबर से थीं बीमार : बिहार की स्वर कोकिला लोक गायिका पद्मभूषण शारदा सिन्हा पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं. पिछले 22 अक्टूबर से उनका दिल्ली स्थित एम्स में इलाज चल रहा था. एम्स के आईसीयू में डॉक्टरों की विशेष निगरानी में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन पिछले 30 अक्टूबर को उनके पुत्र अंशुमान सिन्हा ने शारदा सिन्हा के नए गीत का ऑडियो रिलीज जारी करके छठ प्रेमियों को खुशखबरी दी थी. इसके बाद उनके पुत्र अंशुमन सिन्हा ने शारदा सिन्हा के छठ पूजा का नया वीडियो जारी कर बिहार के लोगों को छठ का नया तोहफा दिया था.
बिहार के सुपौल जिला में जन्म : बिहार के सुपौल जिला के हुलास गांव में 1 अक्टूबर 1952 को उनका जन्म हुआ था. उनके पिताजी का नाम सुखदेव ठाकुर था जो शिक्षा विभाग में काम करते थे. शारदा सिन्हा के परिवार में उनके जन्म से पहले 40 सालों से घर में बेटी पैदा नहीं हो रही थी. आठ भाई-बहन में शारदा सिन्हा इकलौती बहन थीं. इसीलिए उनका बचपन बहुत ही प्यार से पला. बचपन से ही शारदा सिन्हा को गाने का शौक था. यही कारण था कि उनके पिताजी ने उनका दाखिला बाद में भारतीय नृत्य कला केंद्र में करवाया. वहां उन्होंने संगीत की शिक्षा प्राप्त की. संगीत की शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. संगीत की शिक्षा लेते समय ही हुआ मैथिली गीतों को मंच पर प्रस्तुत करने लगीं थीं.
ब्रजकिशोर सिन्हा से हुई शादी: मैथिली गीतों में अपनी पहचान बनाने वाली शारदा जी की शादी 1970 ई में बेगूसराय के सिमहा गांव के रहने वाले बिहार शिक्षा सेवा के अधिकारी ब्रज किशोर सिन्हा के साथ हुई थी. शारदा सिन्हा को 1 बेटी वंदना और 1 बेटा अंशुमान सिन्हा हैं. शारदा सिन्हा ने कई इंटरव्यू में अपने शादी के बाद की बात साझा की थी. शारदा सिन्हा ने कहा था कि उनकी सासू मां उनकी गाने के खिलाफ थीं. वह नहीं चाहती थीं कि उनकी बहू कहीं पर गाने जाएं. अपने गांव की ठाकुरबाड़ी में भी वह उन्हें नहीं गाने देती थीं. हालांकि कुछ वक्त बाद उनकी सास मान गई थीं और वर्ष 1971 में उनके संगीतमय जीवन में बड़ा बदलाव आया. उन्हें कई बड़ी कंपनियों से गाने का ऑफर मिला. पीएचडी करने के बाद शारदा सिन्हा समस्तीपुर कॉलेज में लेक्चर में ज्वाइन की बाद में वह प्रोफेसर भी बनीं.
भोजपुरी गानों को दी नई ऊंचाई : शारदा सिन्हा का जन्म मिथिला के सुपौल में हुआ था इसलिए उन्होंने शुरू में मैथिली में गाना शुरू किया था. 1970 उनकी शादी बेगूसराय कोई वहां भी मैथिली में ही गाना गाती थीं. बाद में उन्होंने मैथिली के अलावे भोजपुरी, बज्जिका एवं हिंदी गाना भी गया. भोजपुरी गाना को उन्होंने आम लोगों के पटल तक पहुंचाने का काम किया. पहले भोजपुरी गाना भोजपुरी के इलाकों में प्रसिद्ध था लेकिन शारदा सिन्हा ने भोजपुरी गाना को बिहार के गांव गांव तक पहुंचा दिया. यूं कहा जाए की भोजपुरी गाना को नन भोजपुरी के बीच में यदि किसी ने प्रसिद्धि दिलाई तो उसमें एक नाम शारदा सिन्हा का भी है.