गया:कुत्ते वफादार होते हैं और इनकी वफादारी के सबूत आमतौर पर मिलते रहते हैं. हम इनकी वफादारी का आभार भी चुकाते हैं, लेकिन अक्सर यह सम्मान उनके मरने के बाद समाप्त हो जाता है. मरने के बाद वो सड़क नदी नाले में फेंक दिए जाते है, लेकिन गया में एक ऐसी जगह है जहां कुत्तों को मरने के बाद भी सम्मान दिया जाता है.
गया में कुत्तों का कब्रिस्तान: यहां मंत्रोच्चार के साथ भगवान बुद्ध को चढ़ाए गए चीवर से ढक कर मिट्टी में कुत्तों के शव को दफन किया जाता है. इससे पहले शव को कंधे पर लेकर कैंपस में बने बौद्ध स्तूप की परिक्रमा लगाई जाती है, हालांकि ये सिर्फ कुत्तों के साथ नहीं होता बल्कि यहां कैंपस में मरने वाले सभी पशुओं को इसी तरह सम्मान के साथ दफनाया जाता है.
देखें वीडियो (ETV Bharat) लगाया जाता है नेमप्लेट और फोटो भी: असल में गया के बोधगया में कुत्तों और पशुओं का एक कब्रिस्तान है, जहां न सिर्फ कुत्ते दफनाये जाते हैं बल्कि उनकी पहचान के लिए नेमप्लेट भी लगाई जाती है. भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में इंसानों की सेवा के लिए कई तरह के कार्य देश विदेश के सामाजिक कार्यकर्ता करते रहे हैं. कई संस्थाएं हैं जिनके माध्यम से विभिन्न सामाजिक कार्य किए जा रहे हैं.
कुत्तों का नेमप्लेट (ETV Bharat) एड्रिआना फेरेंटी ने पेश की अनोखी मिसाल:उन्हीं में इटली मूल की 75 वर्षीय महिला एड्रिआना फेरेंटी भी हैं, लेकिन इनका कार्य इंसानों के साथ जानवरों के लिए भी है. जानवरों से वो प्रेम की अनोखी मिसाल पेश कर रही हैं. पिछले लगभग 40 सालों से वो बोधगया में हैं और अब यहीं की हो कर रह गई हैं. उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया है. बताया जाता है कि वो 1985 में बोधगया आई थीं. यहां उन्होंने बाद में एक आश्रम की भी स्थापना की, जिसका नाम मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट है.
सम्मान के साथ सुपुर्द-ए-खाक: इसके माध्यम से कुष्ठ रोग, टीबी रोग, एनीमिया रोग से बचाव और चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए कार्य होते हैं. साथ ही गर्भवती महिलाओं से संबंधित कार्य, जिले के पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा और गरीबों को राशन देने का भी कार्य होता है. एड्रिआना के एनिमल्स प्यार, उनकी देखभाल सम्मान के कार्य पर चर्चा खूब होती है. इसका करण यह भी है की कुत्तों के मृत्यु के बाद उन्हें सम्मान देकर दफन करवाती हैं.
समतल की गई कब्रिस्तान की जमीन (ETV Bharat) "जानवरों की देखभाल तो वो करती हूं लेकिन मेरी संस्था का पहले प्रोजेक्ट के तहत कुष्ठ रोग नियंत्रण और उसके प्रभावित मरीजों को अच्छी चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है. संस्था इन कामों को करती है. कुत्तों और दूसरे जानवरों की देखभाल करने में मेरी व्यक्तिगत रुचि है."- एड्रिआना फेरेंटी, संचालक, मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट
हजारों कुत्तों को किया जा चुका है दफन:एड्रिआना फेरेंटी हजारों मृत जानवरों कुत्तों को कब्रिस्तान में दफन करा चुकी हैं. बोधगया के धंधवा गांव में स्थित उनके मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट का कैंपस लगभग 6 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है. इसी कैंपस के पीछे के हिस्से में कुत्ते और जानवरों का कब्रिस्तान है.
100 से अधिक स्ट्रीट डॉग (ETV Bharat) जमीन की मिट्टी समतल:कैंपस में कार्य कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि कब्रिस्तान की मिट्टी को बरसात से पहले ही समतल की गई थी, जिसके कारण यह देखने में कब्रिस्तान नहीं लग रही है. मिट्टी समतल करने की वजह यह भी है कि कुत्ते यहां बांध कर नहीं रखे जाते हैं. वो कब्र पर जा कर मिट्टी निकाल देते थे.
"अभी वहां लोहे के तार से घेर दिया गया है. इसकी साफ सफाई करके नए सिरे से नेमप्लेट लगवाए जाएंगे. नजदीक जाकर देखने से कब्रिस्तान नजर आता है."-कर्मचारी,मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट
लावारिस जानवरों की देखभाल:यहां के एक कर्मचारी आशीष ने बताया कि एड्रिआना फेरेंटी सड़कों के किनारे पड़े लावारिस एवं घायल कुत्तों, बकरियों, मुर्गो घोड़े और दूसरे जानवरों को लेकर आती हैं या फिर उन जानवरों के मालिक यहां लाकर पहुंचाते हैं. उनका इलाज करवाया जाता है. कुत्तों को पहले टीका लगवाया जाता है ताकि वो किसी को काटें तो नुकसान नहीं हो.
कुत्तों का अस्पताल (ETV Bharat) "उनकी (एड्रिआना फेरेंटी) सोच यही होती है और वो कहती भी हैं कि अगर ये इंसान होते तो अपनी परेशानियां और दुखों को बता सकते थे, लेकिन वह तो बेजुबान है इसलिए अपनी तकलीफ और परेशानी को नहीं बता सकते. हमें उनके करीब जाकर समझने की जरूरत होती है. अगर हम उनसे लगाव रखें तो उनके दर्द का एहसास होगा. एड्रिआना उन सारे जानवरों की देखभाल करती हैं और मरने के बाद उनको मिट्टी में दफन करा दिया जाता है."- आशीष, कर्मचारी
निशान हैं बाकी: कुत्तों की कब्रिस्तान कैंपस के बैक साइड वाले एरिया पर स्थित है. पहले वहां बाहरी लोगों को जाने की अनुमति दी जाती थी लेकिन अब सिर्फ वहां के कर्मचारी ही जाते हैं. इसके पीछे कारण पूछे जाने पर पहले तो किसी कर्मचारी और ना ही एड्रिआना फेरेंटी ने वजह बताई, लेकिन बाद में यहां के मैनेजर कंचन सिन्हा कहते हैं कि असल में माता जी ' एड्रिआना ' इसको प्रचार प्रसार से दूर रखना चाहती हैं. क्योंकि जो यहां आते हैं वो कुष्ट रोग से संबंधित कार्य या दूसरे कार्यों के बारे में नहीं पूछते या जानना चाहते ,वो सभी बस कुत्तों का कब्रिस्तान देखना चाहते थे.
"माता जी (एड्रिआना) इससे नाराज होकर उस क्षेत्र में अब किसी को जाने की अनुमति नहीं देती हैं. हालांकि दूर से भी देखे जाने पर पता चलता है कि कब्र के निशान हैं. 2 दिन पहले भी एक कुत्ते की मौत हुई थी, जिसको कपड़े में लपेट कर दफन किया गया और उसकी कब्र पर फूल माला चढ़ाए गए. हालांकि अब दफन के बाद कब्र बनाने का तरीका भी बदल दिया गया है. पहले दफन करने के बाद कब्र पर मिट्टी इतनी डाली जाती थी कि वो थोड़ी ऊंची लगे लेकिन अब दफन करने के बाद कब्र की मिट्टी जमीन बराबर कर दी जाती है, नेम प्लेट भी हटा दिए गए हैं."- कंचन प्रताप सिन्हा, मैनेजर,मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट
तीनों टाइम दिया जाता है भोजन:कर्मचारी आशीष कुमार बताते हैं कि यहां कई तरह के जानवर हैं, जिनकी देखभाल इंसानों की तरह की जाती है. सभी जानवरों को तीन वक्त का भोजन दिया जाता है. इसके अलावा अब लावारिस जानवरों को यहां लाया जाता है तो उनका इलाज भी होता है. आश्रम में जानवरों के इलाज के लिए चिकित्सक भी बहस हैं. बाहर के भी लोग अपने जानवरों के इलाज के लिए यहां पहुंचते हैं.
100 से अधिक कुत्ते:कंचन प्रताप सिन्हा एडमिन कॉर्डिनेटर मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट ने बताया कि अभी वर्तमान में 80 कुत्ते , 5 गाय, 5 घोड़े, 25 बकरी हैं. यहां अधिकतर स्ट्रीट डॉग हैं जो रेस्क्यू करके जख्मी हालत में लाए गए थे. उनका इलाज किया जा रहा है. यहां जानवर के एक डॉक्टर और चार कर्मचारी हैं, जो इनकी देखभाल करते हैं. इसके अतिरिक्त और कार्यों के लिए कर्मचारी हैं, जख्मी हालत में पाए जाने वाले जानवरों का इलाज होता है. जरूरत पड़ने पर ऑपरेशन तक किया जाता है.
'ये मेरा कर्तव्य है':एड्रिआन फेरेंटी कहती है कि वो पहली बार जब यहां आई थी तो उन्होंने भगवान बुद्ध के मैसेज को समझने का प्रयास किया. अपने दायित्व को समझते हुए यहां कार्य शुरू किया. वह कहती हैं कि जब यहां उन्होंने सड़कों पर लावारिस हालत में जानवर और कुत्तों को देखा तो उन्हें बड़ी तकलीफ हुई. इसके लिए उन्होंने पहले स्टडी किया कि स्ट्रीट डॉग की देखभाल कैसे की जाती है. उन्हें खाना कैसे खिलाया जाता है.
"फिर हमने स्टडी किया कि उनका इलाज करने का तरीका क्या होता है जो बीमार पड़ते हैं ,उन्हें कैसे बचाया जा सकता है. पूरी स्टडी करने के बाद ही हमने कुत्ते और दूसरे जानवरों की देखभाल के लिए काम शुरू किया. हम उन जानवरों को जीवित रहते हुए देखभाल करते हैं और मरने के बाद कैंपस के आउटर साइड में दफन कर देते हैं."-एड्रिआना फेरेंटी, संचालक, मैत्री चैरिटेबल ट्रस्ट
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