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बनारस के इस कुएं के पानी में मिला है 'अमृत', पीने से दूर हो जाती हैं कई बीमारियां, दूर-दूर से पहुंचते हैं लोग

DHANVANTARI JAYANTI 2024 : मान्यता है कि स्वर्ग जाते समय भगवान धन्वंतरि कुएं में डाल गए थे गुणकारी औषधियों की पोटली.

कुएं से जुड़ी है पौराणिक कहानी.
कुएं से जुड़ी है पौराणिक कहानी. (Photo Credit; ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 29, 2024, 9:08 AM IST

वाराणसी : दीपावली का त्योहार माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का पर्व होता है. दीपावली से पहले धनतेरस पड़ता है. इस दिन से ही 5 दिवसीय पर्व की शुरुआत हो जाती है. आज धनतेरस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाएगी. इसी के साथ आज ही भगवान धन्वंतरि की जयंती भी मनाई जाएगी. भगवान धन्वंतरि देवताओं के वैध और आयुर्वेद के प्रणेता के रूप में पूजे जाते हैं. काशी के एक खास कुएं में धन्वंतरि की 8 औषधियां मिली हैं. इस कुएं का पानी अमृत माना जाता है. दूर-दूर से लोग आते हैं. वे रोजाना हजारों लीटर पानी पी जाते हैं.

बनारस के इस खास कुएं को धन्वंतरि कूप के नाम से भी जाना जाता है. (Video Credit; ETV Bharat)

वाराणसी में मंदिरों का अपना महत्व है. वाराणसी में मृत्यु पर विजय पाने वाले महामृत्युंजय मंदिर परिसर में स्थित धन्वंतरि का यह कुआं धनतेरस के मौके पर और भी खास हो जाता है. यहां पर जबरदस्त भीड़ लगती है. भगवान धन्वंतरि के इस अमृत कुएं का जल पीने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं. दूर-दूर से वैद्य भी अपनी औषधियों में मिलाने के लिए जल लेने के लिए पहुंचते हैं. यहां आने वाले आयुर्वेदाचार्य सुभाष श्रीवास्तव का कहना है कि भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रणेता और प्रभु हैं. उन्हीं की प्रेरणा से आयुर्वेद आज घर-घर तक पहुंचा है. आज अंग्रेजी दवाओं से ज्यादा लोग आयुर्वेद को तवज्जो दे रहे हैं. इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता.

अष्टकोणीय है यह कुआं. (Photo Credit; ETV Bharat)

अष्टकोणीय है यह खास कुआं :आयुर्वेदाचार्य वैद्य सुभाष श्रीवास्तव ने बताया कि जब काशीराज देवोदास धन्वंतरि काशी के राजा थे. उन्होंने इस काशी को पुनः स्थापित किया था. उन्हीं के द्वारा स्थापित इस धन्वंतरेश्वर महादेव जी का मंदिर है. उस वक्त स्वर्ग जाने से पहले उन्होंने अपनी अष्टवद की औषधियां जो आयुर्वेद में अमृत तुल्य है, इसी कुएं में डाल दिया था. यह कुआं आज भी महत्वपूर्ण है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह कुआं अष्टकोणीय है. यानी इसके आठ कोण है, आठ घाट हैं. 8 घाट होने की वजह से यह आयुर्वेद के अष्टधातु का प्रतीक माना जाता है. आयुर्वेद में रस, रक्त, ममसा, मेदा, अस्थि, मज्जा और सुखरा का महत्व हैं इन आठ औषधीय से आयुर्वेद को माना जाता है. यह आठ धातु होते हैं आयुर्वेद के आठ अंग होते हैं. इसलिए इन्हें अष्टांग आयुर्वेद कहा जाता है.

रोजाना हजारों लीटर पानी की होती है खपत. (Photo Credit; ETV Bharat)

कुएं में पड़ी हैं 8 तरह की औषधियां :आयुर्वेदाचार्य ने बताया कि आयुर्वेद सर्वव्यापी, विश्व व्यापी है. इसलिए वैज्ञानिक रूप से भी इसकी प्रामाणिकता आज भी सिद्ध होती है. जल चिकित्सा विज्ञान में सबसे महत्वपूर्ण होता है और इसे अमृत स्वरूप माना जाता है पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि यह पांच तत्व है, इसमें जल भी एक तत्व है. इन पांच तत्वों में एक महत्वपूर्ण माना जाता है और आयुर्वेद के लिए अति महत्वपूर्ण होता है. मान्यता है कि जितनी भी बीमारियां पित्त के कारण होती हैं, वह जल से दूर की जा सकती है, क्योंकि इसमें आठ तरह की औषधियां पड़ी हुई है, यह अमृत तुल्य मानी जाती हैं.

दूर-दूर से पानी पीने के लिए पहुंचते हैं लोग. (Photo Credit; ETV Bharat)

पानी से बढ़ती है शरीर की प्रतिरोधक क्षमता :भक्त रामेश्वर कपूरिया ने बताया कि इस कुएं में ऐसी औषधियां भी मिली हुई है जो अब नहीं मिलती. इसलिए यह आज भी सूक्ष्म रूप से आयुर्वेदिक कुआं कहा जा सकता है. इसलिए उदर यानि पेट के रोगों या फिर पेट के रोगों से लड़ने की शक्ति इस कुएं का पानी देता है और यह कुआं आज भी अति महत्वपूर्ण है. वहीं इस कुएं का जल पीने आने वाले लोगों का भी मानना है कि उन्हें इससे फायदा मिलता है. औषधियों से युक्त यह बनारस का इकलौत कुआं है. इसका पानी पीने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. शरीर भी निरोगी रहता है.

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