वाराणसी : दीपावली का त्योहार माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का पर्व होता है. दीपावली से पहले धनतेरस पड़ता है. इस दिन से ही 5 दिवसीय पर्व की शुरुआत हो जाती है. आज धनतेरस पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाएगी. इसी के साथ आज ही भगवान धन्वंतरि की जयंती भी मनाई जाएगी. भगवान धन्वंतरि देवताओं के वैध और आयुर्वेद के प्रणेता के रूप में पूजे जाते हैं. काशी के एक खास कुएं में धन्वंतरि की 8 औषधियां मिली हैं. इस कुएं का पानी अमृत माना जाता है. दूर-दूर से लोग आते हैं. वे रोजाना हजारों लीटर पानी पी जाते हैं.
वाराणसी में मंदिरों का अपना महत्व है. वाराणसी में मृत्यु पर विजय पाने वाले महामृत्युंजय मंदिर परिसर में स्थित धन्वंतरि का यह कुआं धनतेरस के मौके पर और भी खास हो जाता है. यहां पर जबरदस्त भीड़ लगती है. भगवान धन्वंतरि के इस अमृत कुएं का जल पीने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं. दूर-दूर से वैद्य भी अपनी औषधियों में मिलाने के लिए जल लेने के लिए पहुंचते हैं. यहां आने वाले आयुर्वेदाचार्य सुभाष श्रीवास्तव का कहना है कि भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रणेता और प्रभु हैं. उन्हीं की प्रेरणा से आयुर्वेद आज घर-घर तक पहुंचा है. आज अंग्रेजी दवाओं से ज्यादा लोग आयुर्वेद को तवज्जो दे रहे हैं. इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता.
अष्टकोणीय है यह खास कुआं :आयुर्वेदाचार्य वैद्य सुभाष श्रीवास्तव ने बताया कि जब काशीराज देवोदास धन्वंतरि काशी के राजा थे. उन्होंने इस काशी को पुनः स्थापित किया था. उन्हीं के द्वारा स्थापित इस धन्वंतरेश्वर महादेव जी का मंदिर है. उस वक्त स्वर्ग जाने से पहले उन्होंने अपनी अष्टवद की औषधियां जो आयुर्वेद में अमृत तुल्य है, इसी कुएं में डाल दिया था. यह कुआं आज भी महत्वपूर्ण है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह कुआं अष्टकोणीय है. यानी इसके आठ कोण है, आठ घाट हैं. 8 घाट होने की वजह से यह आयुर्वेद के अष्टधातु का प्रतीक माना जाता है. आयुर्वेद में रस, रक्त, ममसा, मेदा, अस्थि, मज्जा और सुखरा का महत्व हैं इन आठ औषधीय से आयुर्वेद को माना जाता है. यह आठ धातु होते हैं आयुर्वेद के आठ अंग होते हैं. इसलिए इन्हें अष्टांग आयुर्वेद कहा जाता है.