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दरगाह में शिव मंदिर के दावे की याचिका पर बोले दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी, कहा- यह विषैली मानसिकता - Petition on Ajmer Dargah

अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे की एक याचिका पर दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने याचिका को विषैली मानसिकता से प्रेरित बताया.

PETITION ON AJMER DARGAH
दरगाह में शिव मंदिर के दावे की याचिका (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 25, 2024, 6:39 PM IST

अजमेर : हिंदू सेना की ओर से अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे की याचिका दायर करने के मामले में दरगाह दीवान जैनुअल आबेद्दीन के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान सामने आया है. चिश्ती ने हिंदू सेना की ओर से कोर्ट में लगाई गई याचिका को विषैली मानसिकता से प्रेरित बताया.

दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि हिंदू सेना की ओर से कोर्ट में सिविल वाद दायर किया गया है. याचिका में दरगाह में शिव मंदिर और अन्य दावे किए गए हैं. याचिकाकर्ता हिंदू सेना के अध्यक्ष के दावों को "मैं सिरे से खारिज करता हूं. यह एक विषैली मानसिकता है. पूरे देश को इसके बारे में सोचना होगा. राजनीति और धार्मिक कट्टरपंथी चरम सीमा तक पहुंच चुकी है."

दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती (ETV Bharat Ajmer)

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चिश्ती ने कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में हिंदुस्तान के ही नहीं बल्कि विश्व में अलग-अलग देश में रहने वाले मुसलमान की भी गहरी आस्था है. दरगाह में हर धर्म के लोग आते हैं और सम्मान करते हैं. दरगाह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उर्स के मौके पर हर वर्ष चादर भेजते हैं. राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों की धार्मिक आस्था दरगाह से जुड़ी हुई है. हिंदू सेना की ओर से कोर्ट में जो वाद दायर किया गया है, यह उनकी विषैली मानसिकता को दर्शाता है. इस दावे को हम सिरे से खारिज करते हैं. हिंदुस्तान का इतिहास देखेंगे तो ऐसी कोई तारीख नहीं है, जब दरगाह पर किसी ने उंगली उठाई हो.

दरगाह को सभी ने श्रद्धा और सम्मान की नजर से देखा :नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि सन् 1192 में ख्वाजा गरीब नवाज हिंदुस्तान आए थे. 1236 में ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का निधन हुआ. उसके बाद से ही देश के कई राज्य राजवाड़े और बादशाह (तुगलक, मुगल) और मराठाओ ने भी यहां हाजरी दी है. सभी ने दरगाह को श्रद्धा और मान सम्मान की नजर से देखा है. इनके बाद अंग्रेज हुकूमत में भी दरगाह को मान-सम्मान की नजर से देखा गया. किसी भी ऐतिहासिक पुस्तक में दरगाह में मंदिर होने का जिक्र नहीं है. दरगाह परिसर 13 बीघा भूमि पर बना हुआ है.

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हर बिलास शारदा की लिखी पुस्तक अधिकृत नहीं :उन्होंने कहा किहिंदू सेना की ओर से एक पुस्तक का हवाला दिया जा रहा है. हर विलास शारदा की लिखी पुस्तक अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव अधिकृत नहीं है. इसके अलावा किसी पुस्तक में कोई जिक्र नही है. इस दरमियान कई इतिहासकार हुए हैं, उन्होंने कहीं भी किसी पुस्तक में इस बात का जिक्र नहीं किया. गंगा-जमुनी तहजीब और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगड़ने की यह कोशिश की गई है.

हिंदू सेना पर लगाया जाए प्रतिबंध :चिश्ती ने कहा कि"दरगाह दीवान जैनुअल आबेद्दीन और उनका उत्तराधिकारी होने के नाते मैं हिंदू सेना के दावे का खंडन करता हूं. साथ ही हुकूमत से मांग करता हूं कि धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली ऐसी संस्थाओं पर रोक लगनी चाहिए और इन संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. हर धर्म के लोग आते हैं यहां से भाईचारा और मोहब्बत का पैगाम हमेशा से दिया गया है. दरगाह में किसी से धर्म नहीं पूछा जाता. ऐसी पवित्र जगह पर उंगली उठाई जा रही है यह दुर्भाग्यपूर्ण है."

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