नई दिल्ली :गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर 7 मई को होने वाले मतदान से दो हफ्ते पहले भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किए जाने के बाद कांग्रेस ने सोमवार को हंगामा किया.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, सूरत में खेल हाल ही में शुरू हुआ जब कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभाणी का नामांकन रिटर्निंग अधिकारी ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि उनके तीन प्रस्तावकों द्वारा जमा किए गए कागजात सही नहीं थे. वैकल्पिक व्यवस्था वाले कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार सुरेश पडसाला का नामांकन भी इसी आधार पर खारिज कर दिया गया.
बाद में, तीन स्वतंत्र उम्मीदवार भी मुकाबले से हट गए और भाजपा के मुकेश दलाल एकमात्र प्रत्याशी रह गए. एआईसीसी के गुजरात प्रभारी सचिव राम किशन ओझा ने ईटीवी भारत से कहा, 'यह लोकतंत्र की हत्या है. भाजपा अनुचित तरीकों से जीतना चाहती है. हम जल्द ही सूरत मामले में कानूनी उपाय तलाशने जा रहे हैं.'
गुजरात कांग्रेस प्रमुख शक्ति सिंह गोहिल ने ईटीवी भारत से कहा कि 'भले ही नामांकन प्रक्रिया में केवल एक ही उम्मीदवार बचा हो, मतदाताओं के लिए 'नोटा' इनमें से कोई नहीं का विकल्प होता है. जैसे ही रिटर्निंग अफसर ने सोमवार को भाजपा उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया, नोटा विकल्प का मूल उद्देश्य विफल हो गया है. मतदाता इस विकल्प का उपयोग तभी कर पाते जब सात मई को मतदान हुआ होता. हम आदेश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.'
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस उम्मीदवार नीलेश कुंभाणी के तीन प्रस्तावकों की भूमिका की जांच की जा रही है क्योंकि प्रथम दृष्टया ऐसा लग रहा है कि वे विरोधी हो गए हैं.
'विश्वास करना मुश्किल' :एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, 'आमतौर पर प्रस्तावक उम्मीदवार का कोई करीबी ही होता है. यह विश्वास करना कठिन है कि वे फॉर्म ठीक से नहीं भरेंगे. संभावना यह है कि भाजपा के प्रभाव में आकर उन्होंने समझौता कर लिया. हम नहीं जानते कि इसमें पैसे की कोई भूमिका थी या किसी तरह का खतरा था. ऐसा लगता है कि भाजपा ने अन्य उम्मीदवारों के साथ भी इसी तरह की चालें चलीं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल उनका उम्मीदवार ही मैदान में बना रहे.'
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि भाजपा ने अन्य सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन खारिज कराने के लिए इसी तरह की चालें चलीं. एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि 'भावनगर, पंचमहल और अमरेली सीटों पर भी उन्होंने कागजात खारिज करने की कोशिश की गई, जहां हमारे उम्मीदवार मजबूत थे, लेकिन हमने कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की. वे प्रक्रिया को बाधित नहीं कर सके, लेकिन जहां उन्हें कुछ खामियां मिलीं, उन्होंने अपना खेल खेला.'