वाराणसी: बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है. पीएम मोदी का धुर विरोधी कांग्रेस कही जाती है. ऐसे में उनकी इस सीट पर कांग्रेस अपना असर दिखाना चाहेगी. साल 2019 में भी कांग्रेस ने यही कोशिश की थी. तब राहुल और प्रियंका दोनों बनारस में थे. मगर इस बार राहुल गांधी अकेले पड़ गए हैं.
प्रियंका ने तबीयत खराब होने का हवाला देकर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से दूरी बना ली है. ऐसे में इसे राजनीतिक फैसला भी कहा जा रहा है कि बनारस से प्रियंका दूर रहना चाहती हैं. बता दें कि वाराणसी इस समय धर्म का ही नहीं बल्कि राजनीति का भी केंद्र बना हुआ है.
80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के इस शहर में राजनीतिक ऊर्जा बसती है. वजह है कि बनारस से पूर्वांचल को साधना काफी आसान माना जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा अगर किसी के लिए देखने को मिलता है तो वो है भारतीय जनता पार्टी.
बनारस की सभी विधानसभाओं, मेयर और सांसद की कुर्सी भाजपा के ही पास है. ऐसे ही आस-पास के सटे हुए जिलों में लगभग 18-20 का ही अंतर है. इस बार जब 2024 का लोकसभा चुनाव आ रहा है. तब फिर कांग्रेस अपनी पूरी ताकत से बनारस में अपना असर दिखाना चाहेगी.
राहुल के कंधों पर इसकी जिम्मेदारी है. मगर वे अपनी बहन के साथ इस बार नहीं पहुंचे हैं. बनारस के राजनीतिक विश्लेषकों की प्रियंका के न आने पर अपनी अलग राय है. राजनीतिक विश्लेषक एके लारी कहते हैं कि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब वे बनारस आई थीं तो उनका कार्यक्रम बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन का बना था. उनके इस कार्यक्रम के बनते ही मंदिर में जाने का विरोध शुरू हो गया था.
संत समाज ने भी काफी नाराजगी जताई थी. ऐसे में वे इस बार इन सभी बातों से बचना चाहती होंगी. दूसरी बात ये है कि बनारस में इस समय ज्ञानवापी को लेकर माहौल गर्म बना हुआ है. जहां एक ओर भारतीय जनता पार्टी इसे खुले मंच से मंदिर बोल रही है.