छतरपुर। एमपी में नदी-नाले लबालब होने से कई गांव परेशाननियों का सामना कर रहे हैं. कई गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क कट गया है. छतरपुर जिले के ललार गांव की बात करें तो यहां के ग्रामीण जान जोखिम में डालकर रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करते हैं. यहां तक की बच्चे भी अपनी जान का जोखिम उठाकर केन नदी को नाव से पार कर स्कूल जाते हैं. जिससे वह शिक्षा ग्रहण कर सकें.
ग्रामीणों को मुश्किल सफर
दरअसल, ललार गांव पन्ना और छतरपुर जिले को जोड़ता है. यह पन्ना जिले का अंतिम गांव है. जो छतरपुर की सीमा से लगा हुआ है. गांव की आबादी लगभग 1700 के आसपास है. जिसमें 1200 से वोटर हैं. गांव के एक तरफ केन नदी है तो दूसरी तरफ पन्ना टाइगर रिजर्व का जंगल है. बरसात के मौसम में केन नदी में पानी आ जाने के कारण गांव को छतरपुर से जोड़ने वाली पुलिया डूब जाती है. गांव में रहने वाले लोगों का आवागमन पूरी तरह से बंद हो जाता है. दूसरा रास्ता पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल का होता है. जहां से वन विभाग इन ग्रामीणों को निकलने की अनुमति नहीं देता है.
एक तरफ नदी दूसरी तरफ खूंखार जानवर-मगरमच्छ
ललार गांव के एक छोटे से पुरवा टपरियन में रहने वाले ग्रामीण अमर सिंह बताते है की 'केन नदी से नाव के सहारे हम लोग छतरपुर पहुंचते हैं. यह सफर बेहद जोखिम भरा रहता है, क्योंकि आसपास घना जंगल होने के चलते कई बार खूंखार जानवरों से सामना भी हो जाता है. इसके बाद केन नदी में नाव के सहारे आगे बढ़ना, ये किसी खतरे से खाली नहीं है. केन नदी में पानी के तेज बहाव के साथ जब नाव चलती है, तो मानो कुछ भी घट सकता है. नदी में आसपास बड़े-बड़े मगरमच्छ भी दिखाई देते हैं. बावजूद इन सब की परवाह किए बिना हमें रोज छतरपुर जाना होता है. किसी को घर के काम के लिए तो किसी को दवा लेने या मरीज को दिखाने के लिए और बच्चों को पढ़ाई के लिए.'
गांव छोड़ देती हैं गर्भवती महिलाएं
गांव के सरपंच धरम लाल अहिरवार बताते हैं कि 'बरसात के दिनों में गांव पूरी तरह से टापू में तब्दील हो जाता है. ऐसे में अगर कोई बीमार होता है, तो यह किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होता. बड़ी मुश्किलों का सामना करके हम छतरपुर पहुंचते हैं. रास्ता नहीं होने के चलते गांव में एंबुलेंस भी नहीं पहुंच पाती है. गर्भवती महिलाओं को डिलेवरी के कुछ महीने पहले ही गांव छोड़ना पड़ता है. वह छतरपुर जिले के किसी गांव या पन्ना शहर के आसपास के गांव में किराए से रहती है.