उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / bharat

शारदीय नवरात्रि पर करें मां चंडी देवी के दर्शन, भक्तों की हर मुरादें करती हैं पूरी - Shardiya Navratri 2024

शारदीय नवरात्रि पर चंडी देवी मंदिर में उमड़ी भीड़, यहां चुनरी बांधने पर मुराद होती है पूरी, खंभ के रूप में विराजमान हैं मां

Chandi Devi on Navratri
चंडी देवी की महिमा (फोटो- ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 5, 2024, 7:13 AM IST

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार को सिद्धपीठ और शक्तिपीठ की भूमि भी कहा जाता है. यहां मां दुर्गा के कई मंदिर हैं. इन्हीं मंदिरों में से एक मां चंडी देवी का मंदिर है. ये हरिद्वार के नील पर्वत पर स्थित है. यहां मां चंडी देवी खंभ (खंब) के रूप में विराजमान हैं. पावन नवरात्रों के दौरान मंदिर की अलग ही छटा देखने को मिल रही है. नील पर्वत पर स्थित चंडी देवी मंदिर का पौराणिक इतिहास रहा है, जिसकी महिमा दूर-दूर तक है.

मां भगवती ने चंडी का रूप धारण कर राक्षसों का किया था वध: मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में शुंभ-निशुंभ और चंड-मुंड जैसे राक्षसों ने तीनों लोकों में प्रलय मचाया हुआ था. तब सिंहासन छिन जाने के बाद इंद्र आदि देवताओं ने मां भगवती का आह्वान किया और मां से सभी राक्षसों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. देवताओं की विनती पर मां भगवती ने चंडी का रूप धरकर सभी राक्षसों का वध कर दिया. देवताओं के आह्वान पर ही मां भगवती हरिद्वार के नील पर्वत पर खंभ के रूप में विराजमान हो गईं और चंडी देवी के रूप में पूजी जाने लगीं.

चंडी देवी मंदिर की महिमा (वीडियो- ETV Bharat)

मंदिर परिसर में चुनरी बांधने पर मुराद होती है पूरी: पौराणिक काल से मां चंडी देवी अपने भक्तों का कल्याण करती चली आ रही हैं. मान्यता है कि जो कोई भी भक्त सच्चे मन से कोई भी मुराद मानता है, तो मां चंडी उस मुराद को जरूर पूरा करती हैं. अपनी मुराद पूरी करने के लिए माता की चुनरी मंदिर परिसर में बांधने की मान्यता है. मुराद पूरी होने पर भक्त चुनरी खोलने के लिए फिर से चंडी देवी मंदिर आते हैं. यही कारण है कि नवरात्रों के दौरान यहां पर दूर-दूर से आने वाले भक्तों की लंबी-लंबी कतारें नजर आती हैं.

मां चंडी देवी के दर्शन (फोटो- ETV Bharat)

चंडी देवी मंदिर पहुंचने के लिए है रोप-वे की व्यवस्था: वहीं, हरिद्वार के नील पर्वत पर स्थित चंडी देवी मंदिर पहुंचने वाले भक्त 3 किलोमीटर पैदल चलकर कठिन चढ़ाई को पार करते हैं. जिसके बाद ही मां के दरबार तक पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा रोप-वे की व्यवस्था भी है. जिसके जरिए आसानी से पहुंचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें-

ABOUT THE AUTHOR

...view details