मुंबई:महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक कई उम्मीदवारों के बीच नाराजगी देखने को मिल रही है. पार्टी द्वारा इच्छुक उम्मीदवारों को टिकट न दिए जाने या नाम वापस लेने के कारण राज्य में कई उम्मीदवारों ने बगावत का रुख अपनाया है. इन बागियों ने पार्टी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार उतरने का फैसला किया है. इसलिए भले ही आवेदन वापस लेने की तिथि 4 नवंबर है, लेकिन अब तक सभी राजनीतिक दलों में बगावत की भावना व्याप्त है.
महायुति और महाविकास आघाड़ी के सामने दिवाली के दौरान इन बागियों को ठंडा करने की बड़ी चुनौती है. आवेदन वापस लेने के लिए केवल चार दिन बचे हैं. चूंकि दो दिन की छुट्टी बीत चुकी है, ऐसे में इन बागियों को पार्टी नेता दो दिन में कैसे मना पाते हैं? यह देखना महत्वपूर्ण होगा. हालांकि अभी दिवाली का त्योहार चल रहा है, लेकिन चुनाव का माहौल भी बना हुआ है.
बता दें कि 29 अक्टूबर को आवेदन जमा करने की आखिरी तारीख थी, जबकि 4 नवंबर को आवेदन वापस लेने की तारीख है. अगर बागी उम्मीदवार अपना आवेदन वापस लेते हैं या फिर निर्दलीय उम्मीदवार अपना आवेदन वापस लेते हैं, तो कौन किस उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा होगा, इसकी तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन फिलहाल सहयोगी दलों शिवसेना (शिंदे), भाजपा और एनसीपी (अजित पवार) और महागठबंधन में शिवसेना (ठाकरे), एनसीपी (शरद पवार) और कांग्रेस के बीच बड़ी बगावत देखने को मिल रही है.
इसके अलावा इन दलों के नेताओं के सामने यह भी एक बड़ा सवाल है कि विद्रोह को कैसे रोका जाए. दिवाली की छुट्टियों में कुछ राजनीतिक दलों के नेता छुट्टी मनाने निकल जाते हैं, लेकिन इस समय चुनाव का माहौल है और बागियों ने बगावत के हथियार उठा लिए हैं, ऐसे में नेताओं को उन्हें मनाकर शांत करना पड़ रहा है. नतीजतन, दिवाली पर नेताओं की सैर-सपाटा करने की योजना रद्द होती दिख रही है, क्योंकि छुट्टी के समय का इस्तेमाल इन बागियों की मनाने में किया जा रहा है.
1995 में 50 ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने हासिल की थी जीत
बता दें कि 1995 के विधानसभा चुनाव में बागियों ने अहम भूमिका निभाई थी. 50 से ज्यादा उम्मीदवार चुनाव लड़े और जीते. उसके बाद वे बागी शिवसेना और भाजपा में शामिल हो गए और सरकार में शामिल हो गए. उस समय बागियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी. क्या 1995 के विधानसभा चुनाव का असर 2024 के विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है? यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा.
क्या मानते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
इस समय महायुति और महाविकास अघाड़ी में कई उम्मीदवारों के बागी होने के कारण एक ही सीट के लिए महायुति और महाविकास अघाड़ी से दो-दो आवेदन दाखिल किए गए हैं. क्या इस चुनाव में पार्टी के शीर्ष नेता बागियों को दबाने में सफल होंगे? राजनीतिक विश्लेषक जयंत मेनकर से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, "देखिए, मुंबई के बोरीवली में गोपाल शेट्टी जैसे बड़े नेताओं ने बगावत कर दी है, लेकिन मूल रूप से शेट्टी संघ के सदस्य हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए जयंत मेनकर ने कहा कि उनको शांत करने के लिए संघ का कोई आदमी जरूर वहां जाएगा और उनको मनाएगा या फिर कोई और पद दिलवाएगा. यह प्रलोभन होगा. बीजेपी बागियों को शांत करने में कामयाब हो जाएगी, लेकिन शिवसेना (शिंदे) में जो बगावत हुई है, उससे बीजेपी को झटका लगेगा, क्योंकि ऐसा लगता है कि महागठबंधन में बगावत करने वाले शांत नहीं होंगे.
दूसरी ओर शिवसेना (उद्धव ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और कांग्रेस में बागी नेताओं की बात सुनने के मूड में नहीं हैं. महाविकास अघाड़ी को नुकसान हो सकता है, लेकिन यह भी देखा जा रहा है कि पार्टी के टॉप नेता बागियों को दूसरी जगह तैनात करके मना लेंगे. मेनकर ने यह भी कहा है कि उन्हें मनाने में कुछ हद तक सफलता भी मिल सकती है.