नई दिल्ली: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने पंजाब और हरियाणा में धान के भूसे को जलाने के कारण होने वाली बारहमासी प्रदूषण समस्या से लड़ने के लिए बायोमास ब्रिकेट (गट्ठर ) विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया है. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि एमएनआरई (MNRE) के बायोमास कार्यक्रम का उद्देश्य बायोमास ब्रिकेट और पेलेट (गोली आकार में अवशेष) विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना का समर्थन करना और देश में उद्योगों में बायोमास (गैर खोई) आधारित सह-उत्पादन परियोजनाओं का समर्थन करना है. ब्रिकेट और पेलेट कृषि अवशेषों को ईंधन में परिवर्तित करने की एक प्रक्रिया है.
अधिकारी ने कहा, 'योजना का व्यापक उद्देश्य कृषि अवशेषों का उपयोग करके पराली जलाने को कम करना, अधिशेष कृषि अवशेषों की बिक्री के माध्यम से किसानों को आय का अतिरिक्त स्रोत प्रदान करना और बेहतर पर्यावरणीय प्रथाओं को सक्षम करना और प्रदूषण को कम करना है.'
एमएनआरई उद्योगों में ब्रिकेट और पेलेट विनिर्माण संयंत्रों और बायोमास (गैर-खोई) सह-उत्पादन परियोजनाओं की स्थापना के संबंध में परियोजना डेवलपर्स को केंद्रीय वित्तीय सहायता और कार्यान्वयन एजेंसी और निरीक्षण एजेंसियों को सेवा शुल्क भी प्रदान करेगा. एक अनुमान के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में हर साल करीब 22 मिलियन टन धान की पराली जलाई जाती है.
अधिकारी ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र भारी प्रदूषण स्तर का सामना कर रहा है. कटाई के मौसम के बाद अक्टूबर-नवंबर के महीने में धुंध की चादर से यह क्षेत्र ढंक जाता है. खेतों में पराली जलाने से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में राख, कालिख, बिना जला हुआ कार्बन उत्सर्जित होता है जो वायु प्रदूषण का वास्तविक कारण है और वातावरण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 के स्तर को बढ़ाता है.
किसान पराली जलाते हैं क्योंकि कम समय उपलब्ध होने के कारण उन्हें अगली फसल के लिए जमीन तैयार करने का यह सबसे सस्ता, तेज और आसान साधन लगता है. खेतों में पराली जलाने से महत्वपूर्ण बैक्टीरिया और फंगल आबादी नष्ट होकर मिट्टी की उर्वरता भी कम हो जाती है. कृषि अवशेष एक अप्रयुक्त संसाधन है जो भारी मात्रा में उपलब्ध है. अनुमान के अनुसार सालाना लगभग 250 मिलियन मीट्रिक टन यह निकलता है.