नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के पूर्व मंत्री वी सेंथिल बालाजी को कैश फॉर जॉब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की दो-जजों की पीठ ने कहा कि अदालत ने केए नजीब मामले में 2021 के फैसले की व्याख्या यह निर्धारित करने के लिए की है कि विशेष कानूनों में जमानत की उच्च सीमा और मुकदमे में देरी एक साथ नहीं हो सकती.
जस्टिस ओका ने पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा, “हमने जो कहा है वह यह है कि जमानत की सख्त और उच्च सीमा और अभियोजन में देरी एक साथ नहीं हो सकती…” विस्तृत फैसला बाद में अपलोड किया जाएगा.
मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप
अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री और विधायक सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. उन पर कथित नौकरी के लिए पैसे देने के मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अधिवक्ता जोहेब हुसैन ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का प्रतिनिधित्व किया और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बालाजी का प्रतिनिधित्व किया.
कोर्ट में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान मेहता ने तर्क दिया था कि केंद्रीय एजेंसी ने दिखाया है कि उनके अकाउंट में कैश जमा किया गया थी और वह गवाहों और पीड़ितों को अपने पक्ष में कर रहे हैं. बालाजी की जमानत का विरोध करते हुए मेहता ने जोर देकर कहा कि एक साल की कैद और मुकदमे में देरी का संभावित खतरा उन्हें रिहा करने के लिए अच्छा आधार नहीं हो सकता है.
रोहतगी ने दलील दी थी, "कृपया मुझे पहले जमानत दें और बाद में इस पर फैसला किया जा सकता है. मैं अब मंत्री नहीं हूं, हाल ही में मेरे दिल की सर्जरी हुई है." सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि बालाजी एक साल से हिरासत में हैं और ईडी से पूछा था कि जब संबंधित अपराध की सुनवाई शुरू नहीं हुई है तो पीएमएलए मामले की सुनवाई में प्रगति कैसे हो सकती है.
इस पर ईडी के वकील ने कहा कि ये दोनों एक साथ चल सकते हैं और बताया कि आरोपी ने 13 स्थगन लिए और आरोप तय किए गए. मनीष सिसोदिया को दी गई जमानत का हवाला देते हुए रोहतगी ने तर्क दिया था कि मुकदमे में देरी हो रही है और जमानत यहां प्राइमरी मुद्दा है.
मद्रास हाई कोर्ट ने खारिज की थी जमानत याचिका
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बालाजी द्वारा मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर आया है, जिसने पिछले साल अक्टूबर में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि अगर उन्हें जमानत पर रिहा किया जाता है तो वे गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं और बालाजी की स्वास्थ्य रिपोर्ट से भी ऐसा नहीं लगता कि उनकी कोई चिकित्सा स्थिति है जिसका इलाज केवल तभी किया जा सकता है, जब उन्हें जमानत पर रिहा किया जाए.
बता दें कि पिछले साल जून में ईडी ने बालाजी को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया था, जो कि AIADMK शासन के दौरान परिवहन मंत्री रहते हुए नकदी-के-लिए-नौकरी घोटाले से जुड़ा था.
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