रांची: चुनावी मौसम में झारखंड की राजनीति में जाति का मुद्दा गरमाने लगा है. ओबीसी से लेकर सवर्ण राजनीति की बिसात बिछायी जा रही है, तो राजनीतिक पार्टियां भी आमने सामने हैं. NDA ने लोकसभा की सामान्य कोटि के 08 सीटों से 06 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतार कर कांग्रेस के ओबीसी के चुनावी एजेंडे की हवा निकालने की कोशिश की है, तो भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को ओबीसी के बीच जाकर लोगों में पीएम मोदी के संदेश पहुंचाने का टास्क दिया है.
अब झामुमो और कांग्रेस भाजपा को जातीय राजनीति करने वाली पार्टी बताते हुए उसकी आलोचना कर रही है, तो भाजपा खुद को सर्व स्पर्शी और सर्व समावेशी बता कर विपक्ष के आरोपों का जवाब दे रही है.
जाति आधारित बैठक का निर्देश देकर क्या संदेश दे रही है भाजपा- झामुमो
भारतीय जनता पार्टी को घोर जातिवादी पार्टी बताते हुए झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता ने कहा कि जब उनकी बैठकों में यह निर्देश दिया जाता है कि हर लोकसभा क्षेत्र में पार्टी जाति आधारित बैठक करेगी तो इसके पीछे की मंशा समझने की जरूरत है. झामुमो नेता कहते हैं कि भाजपा का काम ही कभी जाति तो कभी धर्म के नाम पर लोगों की भावनाएं भड़का कर चुनावी फायदा उठाने की रही है.
भाजपा को नहीं होगा ओबीसी उम्मीदवार उतारने का फायदा- मनोज पांडेय
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य और केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि भाजपा और एनडीए को राज्य के सामान्य 08 लोकसभा सीट में से 06 पर ओबीसी उम्मीदवार उतारने का कोई चुनावी फायदा नहीं मिलेगा. झामुमो नेता ने कहा कि यहां के ओबीसी युवा यह जानते हैं कि किसके मुख्यमंत्री रहते ओबीसी का आरक्षण 27% से घटाकर 14% किया गया. भाजपा ने जिन्हें टिकट दिया है उसमें से कितने पिछड़े हैं और कितने सेठ? यह राज्य की जनता जानती है. झामुमो नेता ने कहा कि जब वोट देने का मौका आएगा तो एक एक ओबीसी भाजपा के खिलाफ वोट करेगा.
राहुल गांधी की इच्छा वोट की नहीं ओबीसी को हक़ देने की-झारखंड कांग्रेस
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं झारखंड में लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी द्वारा ओबीसी कार्ड खेल दिए जाने से झारखंड कांग्रेस के नेताओं को यह लगता तो है कि जिस ओबीसी को हक और अधिकार की बात उनके नेता राहुल गांधी उठाते रहे हैं, उस मुद्दे को भाजपा ने पहले ही 08 में से 06 ओबीसी को टिकट देकर कमजोर करने की कोशिश की है, लेकिन कांग्रेस के नेता कहते हैं कि भाजपा के इस चाल में ओबीसी समाज नहीं फंसेगा क्योंकि वह जानता है कि राज्य में ओबीसी के साथ हकमारी किसने की है.