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' याद नहीं रोटी का स्वाद.. घर में न खटिया न दरवाजा..' पढ़ें बिहार के बिरहोर आदिवासियों का दर्द - BIHAR BIRHOR TRIBE

बिहार में बिरहोर जनजाति आज भी विकास से कोसों दूर हैं. ना अनाज मिलता है और ना सिर पर छत है. संवाददाता रत्नेश की रिपोर्ट..

Birhor tribals in Gaya
गया में रहते हैं बिरहोर आदिवासी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 3, 2025, 7:33 PM IST

गया:बिरहोरके दो शब्द बिर मतलब जंगल और होर मतलब आदमी यानी जंगल में रहने वाला आदमी, से बना है. बिरहोर का नाम जेहन में आते ही समय के साथ तेजी से विलुप्त होते जनजाति की तस्वीर सामने आती है. इनके उत्थान और विकास के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है, लेकिन आज भी इनकी किस्मत नहीं बदली. ईटीवी भारत आज आपको बिहार के गया के एक जंगल में निवास करने वाले ऐसे ही बिरहोर आदिवासियों की जिंदगी के बारे में बता रहा है.

गया में रहते हैं बिरहोर आदिवासी:बिहार के गया जिले के सुदूरवर्ती फतेहपुर प्रखंड अंतर्गत गुरपा में पहाड़ी की तलहटी के नीचे बिरहोर आदिवासी निवास करते हैं. तकरीबन ढाई सौ से अधिक इन बिरहोर आदिवासियों की संख्या है. आज भी यहां रहने वाले बिरहोर आदिवासियों का व्यवहार पुराने युग के आदिवासियों का एहसास करा देता है.

संवाददाता रत्नेश की रिपोर्ट (ETV Bharat)

दूसरे लोगों से दूरी बनाकर रखते हैं: दूसरे लोगों को देखकर उनमें एक डर जैसा पैदा हो जाता है और वो बात करना पसंद नहीं करते. हालांकि कुछ लोग अब धीरे-धीरे खुलना शुरू हुए हैं, लेकिन आज भी ज्यादातर आबादी किसी से बात करने से दूर रहना ही पसंद करती है. खासकर महिलाएं नए अनजान व्यक्ति को देखकर दूर होने का प्रयास करती हैं.

विलुप्त होती जनजाति है बिरहोर:आदिवासियों की विलुप्त होती जनजाति में से एक बिरहोर आदिवासियों का समुदाय है. बिरहोर आदिवासी काफी कम संख्या में रह गए हैं. ऐसे अब गिने-चुने ही स्थान होंगे, जहां इन बिरहोर की आबादी होगी. इसी में एक गया का गुरपा है, जहां बिरहोरों की अच्छी खासी आबादी है.

गया में रहते हैं बिरहोर आदिवासी (ETV Bharat)

बिरहोरों की भाषा को समझना होता है मुश्किल : पुराने व्यवहार के अनुसार आज भी कुछ बिरहोर ऐसे हैं, जो पेड़ों पर चढ़े रहते हैं और अपनी भाषा में आवाज निकालते हैं. पेड़ों की टहनियों को झुकाने और हिलाते हुए बोलते भी नजर आ जाते हैं. उनकी आदिवासी भाषा को समझना काफी मुश्किल है. हालांकि अब काफी संख्या में बिरहोर आदिवासियों ने पूरी तरह से हिंदी समझना और बोलना शुरू कर दिया है.

आवास हो चुके हैं जर्जर (ETV Bharat)

घरों में किवाड़, खटिया नहीं:इन बिरहोर आदिवासियों के घरों में किवाड़ लगे नहीं मिलेंगे. एक खटिया भी इनसे कोसों दूर है. पूरा बिरहोर आदिवासी जमीन में ही सोता है. निश्चित तौर पर आज के दौर में यह स्थिति प्रशासनिक संवेदनहीनता की पराकाष्ठा बताती है. यहां पुराने इंदिरा आवास कुछ संख्या में हैं, जो कि अब जीर्ण शीर्ण हालत में आ गए हैं.

"यहां कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है. यह जो स्कूल खुला है, उसमें भी दूसरे टोले के बच्चे ज्यादा संख्या में आकर पढ़ते हैं. इक्के-दुक्के आदिवासी के बच्चे पढ़ने को जाते हैं. आज भी बिरहोर आदिवासियों में से कई को राशन कार्ड नहीं है. आवास योजना का लाभ नहीं दिया गया है, तो कई के पास वोटर कार्ड और आधार कार्ड भी नहीं है."- कारू बिरहोर, गुरपा गांव

ताड़ के पत्तों की झोपड़ी : इसके कारण आदिवासियों ने ताड़ के पत्तों से घर बनाया है. सूअर के बखोर जैसे बनाए घर में भी अधिकांश आबादी अपनी रात गुजारते हैं. हालांकि कुछ को आवास योजना का लाभ हाल में दिया गया है, लेकिन ये बताते हैं, कि उन्हें पैसे नहीं दिए गए, जिसके कारण पूरा निर्माण नहीं हो सका.

असहाय बिरहोरों की हकमारी कर रहे बिचौलिए: सरकार आदिवासियों के संरक्षण और उत्थान के लाख दावे कर ले, लेकिन गुरपा के बिरहोर आदिवासियों की स्थिति बताती है, कि कहीं ना कहीं प्रशासनिक संवेदनहीनता है. वहीं, बिचौलिए इन गरीब असहायों की हकमारी कर रहे हैं. इन्हें जो हक मिलना चाहिए, वह उनके घरों तक नहीं पहुंच पाता. बीच में ही डकार लिया जाता है.

विलुप्त होती जनजाति है बिरहोर (ETV Bharat)

"हमें राशन कार्ड नहीं मिला है. खाए बिना कमजोर हो गई हूं. बीमार रहती हूं. जब शरीर में कुछ ताकत रहती है, तो दूसरे के घर में काम करते हैं और तब जाकर किसी तरह से भोजन नसीब हो पाता है. सरकार की योजना का लाभ हमें नहीं मिलता है, जबकि हम लोग में से कई लोग वोट भी देते हैं."-शामू बिरहोर,गुरपा गांव

अनाज नहीं तो ये खाते हैं: बिरहोर आदिवासियों के अनुसार उन्हें दो शाम का भोजन नसीब नहीं हो पाता है. यदि कमाई अच्छी नहीं हुई, तो भूखे भी रहना पड़ता है. भूख मिटाने के लिए ये जड़ी बूटी खाते हैं. जड़ी बूटी के रूप में टेना गेठी का उपयोग करते हैं, जो शकरकंद की तरह मीठा होता है. कई दिनों तक उनकी भूख से लड़ाई जो चलती है, उसे टेना गेठी ही शांत करती है.

भीख नहीं मांगते बिरहोर: बरसात के दिनों में उनकी स्थिति बद से बदतर हो जाती है. बिरहोर आदिवासी मेहनती होते हैं. ये भीख मांगना पसंद नहीं करते, लेकिन उनकी ताकत और साहस आज भिक्षावृत्ति के रूप में तब्दील हो गए हैं. कई बिरहोर आदिवासी ऐसे हैं, जो दूसरों के घरों से जाकर भीख मांगते हैं और तब जाकर उनके घर का गुजारा बमुश्किल हो पाता है.

महीनों नहीं मिलती रोटी (ETV Bharat)

महीनों तक नहीं मिलती रोटी: कुल मिलाकर इनके 2 शाम की रोटी का भोजन का जुगाड़ हो पाना काफी मुश्किल है. यहां के बिरहोर आदिवासी बताते हैं, कि उन्हें रोटियां खाए कई दिन हो जाते हैं. यहां के लोगों के बैंक अकाउंट तक नहीं है.

बीमारियों ने तोड़ा, बच्चे कुपोषण का शिकार: गुरपा में रह रहे इन आदिवासियों को बीमारियों ने तोड़ दिया है. विभिन्न तरह की बीमारियों से बिरहोर आदिवासी ग्रसित है. यहां के लोग बताते हैं कि बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं. यहां एक प्राथमिक विद्यालय खुला है, लेकिन यहां शिक्षा की बात करें, तो अब तक कोई भी शिक्षित नहीं है.

झारखंड के कोडरमा में बेचते हैं जड़ी बूटी:गुरपा में रहने वाले ये आदिवासी बताते हैं, कि जंगल में जड़ी बूटी चुनकर लाते हैं. उसे झारखंड के कोडरमा में बेचते हैं. जड़ी बूटी नहीं बिकी, तो भोजन का जुगाड़ नहीं हो पाता है.

हमारे पास कोई रोजगार नहीं है. जड़ी बूटी कोडरमा में नहीं बिकी तो भोजन का जुगाड़ कर पाना का भी मुश्किल होता है. ऐसी स्थिति में हम लोग जड़ी बूटी खाकर भूख को शांत करते हैं. जड़ी बूटी के रूप में टेना गेठी ठीक होती है, उसे ही हम लोग भोजन के रूप में उपयोग करते हैं.- कारू बिरहोर, गुरपा गांव

गांव में कोई नहीं शिक्षित.. किसी का बैंक में अकाउंट नहीं (ETV Bharat)

बरसात में बढ़ा जाती है समस्या: कारू बताते हैं कि महीने में कई दिन भूखे रह जाना पड़ता है. बरसात में स्थिति और भी मुश्किल वाली हो जाती है. बरसात के कारण घर के बाहर बनाए गए चूल्हे भींग जाते हैं, वहीं लकड़ियां भी नहीं मिलती है. ऐसे में टेना गेठी को उबालकर खाना मुश्किल हो जाता है. भूखे रहने की नौबत होती है. कारु बिरहोर बताते हैं, कि हम आदिवासियों के किसी घर में किवाड़ नहीं मिलेगी. खाटी चौकी भी नहीं है. सालों भर जमीन पर सोते हैं.

'रोजगार नहीं, कोई देखने वाला भी नहीं': वहीं बिरहोर आदिवासी महिला इतवारिया बताती है कि "हम लोग टेना गेठी ही खाते हैं. कई दिनों तक खाते हैं और भूख को शांत करते हैं. यहां कई बीमार हैं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं है. लोग आते हैं और चले जाते हैं, हमें लाभ नहीं देते हैं."

"झोपड़ी में रहता हूं. आवास नहीं मिला है. ताड़ का झोपड़ी बनाकर रहते हैं. राशन कार्ड से केवल चावल मिलता है. गेहूं नहीं मिलता. कई दिनों तक रोटी खाए हो जाता है. भोजन में चावल और टेना गेठी ही मिल पाता है."- बगधु बिरहोर, गुरपा गांव

आवास हो चुका है जर्जर: वहीं, मीना बिरहोर बताती हैं, कि जड़ी बूटी चुनकर हम लोग भोजन का जुगाड़ करते हैं. झोपड़ी में रहते हैं, क्योंकि आवास जो था, वह जर्जर हो गया है. काफी पहले हम लोगों को आवास मिला था.

"राशन में गेहूं नहीं मिलता है, जिसके कारण रोटी हम लोगों को नसीब जल्दी नहीं हो पाता है. सिर्फ चावल ही राशन में मिल पाता है. यहां कोई भी पढ़ा लिखा नहीं है. हम लोग मांग करते हैं कि हम लोगों को हमारा हक सरकार प्रशासन के लोग दें."- मीना बिरहोर,गुरपा गांव

रोजगार के साधन नहीं (ETV Bharat)

मदद के लिए आगे आई जातक संस्था:वहीं, जातक संस्था के द्वारा बिरहोर आदिवासियों के बीच जाकर कई तरह के कार्य किया जा रहे हैं. हेल्थ कैम्प भी लगाया जाता है. बिरहोर आदिवासी विलुप्ति के कगार पर है.जातक संस्था के निदेशक आदित्य वर्धन ने कहा कि इन आदिवासियों को सरकार द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए. वहीं, सरकार और प्रशासन के लोग इन्हें हर सुविधा दें, ताकि इनका भी विकास हो सके.

"यहां आदिवासी जनजाति के लोग रहते हैं. हमारी संस्था इनके उत्थान के लिए प्रयासरत है. हम इनके बीच तीन साल से काम कर रहे हैं. समय-समय पर राशन कपड़ा का व्यवस्था करते हैं."- आदित्य वर्धन, जातक संस्था के निदेशक

बीडीओ करेंगी दौरा: गुरपा में बिरहोर आदिवासी का निवास है. यहां क्या योजनाएं चल रही है और क्या लाभ यहां के लोगों को मिला है, प्रखंड विकास पदाधिकारी अलीशा कुमारी को पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, क्योंकि वह मुख्य रूप से टनकुप्पा प्रखंड की बीडीओ है. अभी अतिरिक्त प्रभार में फतेहपुर प्रखंड दिया गया है. फिलहाल इस संबंध में वह विशेष रूप से ज्यादा नहीं बता सकती हैं, क्योंकि उन्हें गुरपा के बिरहोर आदिवासियों के संबंध में विशेष जानकारी नहीं है. अभी अतिरिक्त प्रभार 15 दिन पहले मिला है, तो इस मामले को वह देखेंगी.

बदहाल झोपड़ी (ETV Bharat)

"इस तरह का मामला संज्ञान में आया है, तो गुरपा का निरीक्षण करेंगे और बिरहोर आदिवासियों को जो लाभ मिलना चाहिए, वह मिल रहा है या नहीं, इसका जायजा लेकर आवश्यक कार्रवाई होगी."- अलीशा कुमारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी, फतेहपुर (अतिरिक्त प्रभार में)

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