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ईटीवी भारत पर अरब की पहली उर्दू शायरा वला जमाल, शेर में बोसा लिखने पर हुआ बवाल

अरब की पहली उर्दू शायरा वला जमाल से ईटीवी भारत की ब्यूरो चीफ शिफाली पांडे ने की खास बातचीत.

WALA JAMAL BHOPAL VISIT
ईटीवी भारत पर अरब की पहली उर्दू शायरा वला जमाल (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 7 hours ago

भोपाल:घर में सबके सो जाने के बाद मैं रात में छिप कर लिखा करती थी. मेरे लिए शायरी करना इतना आसान नहीं था. कुछ लफ्ज़ ऐसे हैं जिन पर शेर कह दें तो समाज हैरत की नज़र से देखता है. औरत अगर इश्क पर शेर कहे तो समाज के साथ परिवार वाले ही सोच लेंगे कि किसके इश्क में की जा रही है ये शायरी. बोसे पर शेर कह देना बवाल की वजह बन जाता है.

अरब की पहली उर्दू शायर मिस्र की रहने वाली वला जमाल ईटीवी भारत से बात करते हुए बताती हैं कि उनके लिए अरबी से आगे बढ़कर ऊर्दू जुबान तक पहुंचना फिर शायरी करना कितना तवील यानि मुश्किल सफर रहा. वे बताती हैं कि मेरी शायरी की वजह हिंदुस्तान है. वे कहती हैं पहली बार हिंदुस्तान आई थी जिसके बाद शायरी का हौसला मिला और मैंने पहली नज़्म कही,जिसका नाम था जादू. बताती हैं ये नज्म मैंने भारत के जादू पर ही लिखी थी. जो मुझ पर सवार था.

अरब की पहली उर्दू शायरा वला जमाल से खास बातचीत (ETV Bharat)

रातों में छिपकर बोसे पर लिखा तो हुआ बवाल

वला के लिए उर्दू शायरी का सफर इतना आसान नहीं था. अरबी होकर उर्दू जुबान में लिखना. वो भी शायरी और शायरी भी इश्क वाली.

वला कहती हैं "मैं शादीशुदा हूं. मेरे शौहर से शुरू- शुरू में बहुत झगड़ा होता था. मैं शायरी को टाइम देती थी इस बात पर झगड़ा फिर मैं इश्क पर क्यों लिखती हूं इस बात पर भी दिक्कत होती थी. किसके तसव्वुर में इश्क पर लिख रही हो. ये सवाल होते थे. वे कहती हैं बोसे पर कोई शेर लिख दो तो बवाल हो जाता. औरत के अहसासात हमेशा सवालों के घेरे में आ जाते. एक औरत ऐसी हिम्मत कैसे कर सकती है. समाज को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आती. लेकिन धीरे धीरे मेरे शौहर इस बात को समझ गए कि मैं सिर्फ शायरी करती हूं. अब वो समझते हैं. लेकिन एक वक्त था कि मैंने छिप छिपकर रात में ऊर्दू की किताबें पढ़ी हैं और छिपकर लिखा है."

उर्दू शायरा वला जमाल का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू (ETV Bharat)

भारत में ऐसा क्या हुआ कि अरब की वला उर्दू शायरा बनी

वला जमाल को 5 साल गुजरे हैं शायरी करते हुए. लेकिन इन 5 सालों में ही उन्होंने शायरी की दुनिया में अच्छी खासी शोहरत कमा ली है. मिस्र की रहने वाली अरबी जुबान कहने वाली वला पहले उर्दू और फिर उर्दू शायरी तक कैसे आईं.

वला बताती हैं "मैं अरब की पहली उर्दू शायरा हूं. मिस्र में लोग अरबी में ही शायरी करते हैं. मुझे उर्दू से पहले से मोहब्बत थी. 4 साल मैंने ऊर्दू पढ़ाई फिर एनशम्स यूनिवर्सिटी में अब एसोसिएट प्रोफेसर के रुप में उर्दू पढ़ा रही हूं. लेकिन शायरी लिखने का शौक भारत आने के बाद ही हुआ. वला कहती हैं हिंदुस्तान आई थी मैं 2019 में उसके बाद मैंने पहली नज्म लिखी. पहली बार कोलकाता आई थी उस शहर का ऐसा जादू चढ़ा मुझ पर भारत का जादू कहूं कि मेरी पहली नज्म का नाम भी जादू ही था."

अरब की पहली उर्दू शायरा वला जमाल (ETV Bharat)

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सातवीं बार अकेले आई हूं भारत

वला हिजाब पहनती हैं और कहती हैं कि "हिजाब मेरा फर्ज है. मैं मुसलमान हूं इसे नहीं भूल सकती लेकिन मैं खुद मुख्तार औरत हूं. सातवीं बार अकेले भारत आई हूं. ये बड़ी बात नहीं है क्या. वला की शायरी का सब्जेक्ट औरत है फिर रुमानियत. एकतरफा मोहब्बत पर मैंने काफी लिखा है. शायरी की दो किताबें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं."

उनकी रुमानी शायरी के दो बेहद मकबूल शेर हैं "अपना धड़कता दिल भी उसे दे कर आ गए, इतने हुए करीब किसी हमसफर से हम. तुम आ रहे हो ख्वाब में देखा था रात को सज धज के खूब बैठ गए थे सहर से हम." वला को भारत से इस तरह मोहब्बत है कि कहती है मैं चाहती हूं कि यहीं बस जाऊं. हांलाकि ये मुमकिन नहीं. पर जब तक यहां आती नहीं मुझे चैन नहीं आता.

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