भोपाल: चीता परियोजना के तहत नामीबिया से लाए गए चीतों की मौत की एक वजह क्या उन्हें 110 बार ट्रैंक्यूलाइज यानि बेहोश किया जाना भी है. पर्यावरणविद अजय दुबे ने एमपी में चीता परियोजना में नामीबिया से आए चीतों की देखरेख को लेकर आरोप लगाते हुए सवाल उठाए हैं कि, ''जब ये चीते यहां लागे जाएंगे तो उनकी देखरेख का डॉक्टर भी वहीं से आएगा फिर क्या वजह थी कि एक साल बाद ही डॉक्टर इस्तीफा देकर चला गया और उसे रोका नहीं गया.'' दुबे ने इस पूरे मामले में पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र सिंह के साथ राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को पत्र भी लिखा है.
क्या ट्रैंक्यूलाइज किए जाने से हुई चीतों की मौत
पर्यावरणविद अजय दुबे ने वन विभाग की एक जानकारी सार्वजनिक करते हुए 'X' हैंडल पर ट्वीट कर सवाल उठाया है कि, ''कूनो में मुख्य वन्यजीव संरक्षक की अनुमति लिए बगैर ही 110 बार चीतों को बेहोश किया गया. इससे कई चीतों की मौत पर प्रश्न खड़ा हो गया है.'' उन्होने ईटीवी भारत से बातचीत में ये बताया कि ''जब नामीबिया से ये चीते लाए जा रहे थे तब एक शर्त ये भी थी कि चीते वहीं के डॉक्टर की निगरानी में रहेंगे. फिर क्या वजह थी कि अफ्रीकन डॉक्टर एडविन टॉडरिफ इस्तीफे देकर चले गए.''
किससे पूछकर किया गया ट्रेंक्यूलाइज
पर्यावरणविद अजय दुबे ने कहा कि, ''कूनो नेशनल पार्क से जुड़े दस्तावेज में ये स्पष्ट बताया गया है कि चीतों को 110 से अधिकर बार ट्रेंक्यूलाइज किया गया. यानि उन्हें बेहोश किया गया. ये किसकी अनुमति से हुआ और सबसे बड़ी बात कि इस तरह से बेहोश किये जाने ने क्या चीते की इम्यूनिटी पर असर नहीं डाला होगा. बेहोश किए जाने से सबसे पहले किडनी पर असर पड़ता है फिर बाकी इंटरनल पार्ट भी प्रभावित होते हैं.''