बेगूसराय:कोई बच्चा अगर रोबोट की तरह व्यवहार करे तो उसे आप क्या कहेंगे. ऐसा वह मस्ती या शौक में नहीं करता बल्कि उसकी मजबूरी है. बिहार के बेगूसराय के 10 साल के आदर्श पाठक की कहानी सुन हर कोई मार्मिक हो उठता है. आदर्श को बर्थ एक्सफेसिया नामक बीमारी है. जन्म के बाद अगर एक मिनट के अंदर शिशु ना रोए तो इस बीमारी से ग्रसित हो जाता है.
ब्रेन पर लगे चिप ने दी आदर्श को पहचान: आदर्श को बचपन से ही कुछ सुनायी नहीं देता था और नाही वह कुछ बोल पाता था. ऐसे में उसके ब्रेन में एक चिप लगायी गई, जिसके कारण ही वह रोबोट की तरह बोलता है. अगर उसकी चार्जिंग खत्म हो जाती है तो वह काठ की पुतली बन जाता है.
अमेरिका के डॉक्टरों ने किया था आदर्श का इलाज: परिजनों ने उसे कई डॉक्टरों से दिखाया लेकिन सभी ने कहा कि इसका इलाज सिर्फ अमेरिका में हो सकता है. डॉक्टरों ने कहा कि आदर्श आम इंसान की तरह नहीं, बल्कि रोबोट की तरह सुनेगा और बोलेगा.उसके बाद आदर्श के पिता ने अपनी जमीन बेचकर पैसे इकट्ठा किए और अमेरिका गए. वहां डाक्टरों ने आदर्श के सिर के अंदर और बाहर चिप्स लगा दिया. इसके कारण आदर्श को सुनाई देने लगा और वह बोलने भी लगा.
क्या कहना है डॉक्टर का?: इस संबंध में सदर अस्पताल के चिकित्सा पदाधिकारी संजय कुमार ने बताया कि बच्चो में इस तरह की समस्या जन्म से ही शुरू होती है. इस बीमारी को साइंस की भाषा में बर्थ एक्सपेसिया के नाम से जाना जाता है. बच्चे में इस तरह की बीमारी जन्म के बाद बहुत सारे बात पर निर्भर करती है.
"सबसे बड़ी बात यह है कि जब बच्चे का जन्म होता है और बच्चा जन्म के 1 मिनट के अंदर जिसे गोल्डन पीरियड कहते है, अगर नहीं रोता है तो ब्रेन का डेवलपमेंट अच्छे से नहीं होता है. इसका कारण ब्रेन में अच्छे से ऑक्सीजन का नहीं जाना ऑर ब्रेन एटरॉपी हो सकता है. ऐसे में कान और गला का पार्ट इफेक्टेड हो जाता है. विज्ञान के इस युग में इसका इलाज प्रोग्रामिंग के माध्यम से किया जा रहा है."-डाक्टर संजय कुमार, चिकित्सा पदाधिकारी, सदर अस्पताल, बेगूसराय
पीएम मोदी से मदद की गुहार:पिता प्रदीप पाठक बताते हैं कि आदर्श खेल और पढ़ाई में भी अव्वल है. विज्ञान की इस तरक्की से परिवार के लोग खुश हैं पर उन्हें दुख भी है कि उनका बच्चा आम इंसान नहीं बन सका. महंगी तकनीक से करोड़ों खर्च करने वाला परिवार अब आर्थिक रूप से टूट चुका है. लॉकडाउन के समय आदर्श के घर की स्थिति काफी दयनीय हो गई. किसी तरह से उसके मस्तिष्क में रोबोटिक मशीन तो लगवा दिया गया, लेकिन उसके मेनटेनेंस में भी काफी खर्चा आता है. परिजनों ने अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद की गुहार लगायी है.
"देश भर के बड़े से बड़े डॉक्टरों से मिले पर हर किसी ने बच्चें को अमेरिका ले जाने की सलाह दी. जिसके बाद जगह जमीन बेच कर और लोगों से कर्ज लेकर आदर्श को इलाज के लिए अमेरिका ले गए, जहां लगभग दो करोड़ रुपये खर्च करने के बाद बच्चे के सर के अंदर और बाहर चिप लगाया गया. चिप लगने के बाद वह बोल और सुन तो सका, पर उसकी जुवान एक रोबोट की तरह हो गयी है."- प्रदीप पाठक, आदर्श के पिता
मां और दादी की भर आईं आंखें: वहीं आदर्श की मां और दादी ने भी अपना दर्द बयां किया. आदर्श की तकलीफ बताते हुए दादी रो पड़ी. वहीं मां स्वीटी पाठक के आंसू भी थमने का नाम नहीं ले रहे थे. मां ने बताया कि बच्चे के मस्तिष्क के अंदर और बाहर के चिप्स को एक दूसरे से केबल के माध्यम से जोड़ा जाता है. जिसके बाद ही बच्चा सामान्य बच्चे की तरह रह पाता है, नहीं तो बुत बन जाता है.
"आदर्श बचपन से ही बोल और सुन पाने में असमर्थ था. इसकी जानकारी एक साल बाद मुझे लगी.जिसके बाद से ही बच्चे का इलाज कराने के लिए दर दर की ठोकर खाते रहे. बाद में डाक्टरों की सलाह पर अमेरिकी ले जाकर बच्चे का इलाज कराया. इलाज में दो करोड़ रुपया लग गया है. अपनी जगह जमीन सब कुछ बेच दिया."-स्वीटी पाठक, आदर्श की मां
परिवार ने पूरी संपति बेचकर कराया इलाज:दरअसल कृत्रिम संरचना के कारण आदर्श रोबोट की तरह काम करता है. जानकारी के अनुसार आदर्श तीन भाई हैं, जिसमें एक भाई की करंट लगने से मौत हो गई. आदर्श सबसे छोटा बेटा है. उसकी जिंदगी की सलामती के लिए परिवार के लोगों ने अपनी पूरी संपत्ति बेचकर इसके इलाज में खर्च कर दिया.
क्या कहना है आदर्श की दादी का?: आदर्श की हालत को देखकर उसकी दादी अंबिका देवी की आंखें नम हो जाती हैं.उन्होंने अपने बेटे और बहू को इसके लिऐ धन्यवाद दिया जिन्होंने कर्ज आदि लेकर इनके पोते को जिंदा रखा. फिलहाल रोबोट बॉय आदर्श एक आम इंसान होने के बावजूद एक रोबर्ट बॉय है. जानें कब उसके दिमाग के अंदर लगे मशीन की बैटरी गुल हो जाए और आदर्श काठ की कठपुतली बन जाए.