रांची/दुमका: लोकसभा चुनाव 2024 के राजनीतिक बिसात पर भारतीय जनता पार्टी ने दुमका से सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाकर एक बड़ी चाल चल दी है. अपने पूर्व घोषित और वर्तमान सांसद सुनील सोरेन की जगह भाजपा नेतृत्व ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाकर एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश की है.
झारखंड और खासकर संथाल की राजनीतिक पर नजदीकी नजर रखने वालों की मानें तो सीता सोरेन को दुमका से चुनावी समर में उतारकर भाजपा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को दुविधा में डाल दिया है. झामुमो को अगर गुरुजी की इस परम्परागत सीट को दोबारा हासिल करना है तो अब नेतृत्व को अपना उम्मीदवार भी कम से कम सीता सोरेन के राजनीतिक कद की बराबरी का खोजना होगा. ऐसे में जानकर कहते हैं कि दुमका में भाजपा को मुकाबला देने के लिए उम्मीदवार भी हैवी वेट होना चाहिए. इस कड़ी में बसंत सोरेन या हेमन्त सोरेन का नाम पार्टी की ओर से आगे किया जा सकता है.
सोरेन परिवार के खिलाफ सीता सोरेन को आगे रखकर झामुमो पर निशाना साधेगी भाजपा
भाजपा लोकसभा चुनाव के समय सीता सोरेन को आगे कर दुमका की जनता के बीच यह परसेप्शन भी बनाने की कोशिश करेगी कि हेमंत सोरेन में अपने परिवार को एकजुट रखने की क्षमता नहीं है. जिस दुर्गा सोरेन के निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत के हेमंत सोरेन बारिश बने, उसी दुर्गा सोरेन की विधवा पत्नी सीता सोरेन के साथ न्याय नहीं हुआ. इन तमाम मुद्दों को उठाकर भाजपा सोरेन परिवार को असहज करने की कोशिश जरूर करेगी. वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि भाजपा चुनाव के समय इस तरह का परसेप्शन बनाकर मनोवैज्ञानिक लाभ लेने में मास्टर रही है.
आठ बार दुमका लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं शिबू सोरेन
महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन कर चर्चा में आनेवाले शिबू सोरेन अपना पहला चुनाव 1977 में टुंडी विधानसभा से लड़ा था और उनकी हार हो गयी थी. इसके बाद 1980 में देश में हुए मध्यावधि चुनाव में शिबू सोरेन की दुमका से जीत हुई थी और वह पहली बार सांसद बने थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की कांग्रेस उम्मीदवार पृथ्वीचंद किस्कू के हाथों हार हुई थी.
शिबू सोरेन की संथाल और खासकर दुमका लोकसभा क्षेत्र में कितनी पकड़ रही है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वह आठ बार दुमका से सांसद रहे हैं. 1980-1984 तक, 1989 से 1998 तक और फिर वर्ष 2002 से लेकर 2019 तक उन्होंने लोकसभा में दुमका का प्रतिनिधित्व किया और मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री भी बने. 1998 में बाबूलाल मरांडी से वह दुमका लोकसभा सीट हारे और फिर 2019 में अपने तीसरे प्रयास में भाजपा प्रत्याशी के रूप में सुनील सोरेन दिशोम गुरु को चुनावी मात देने में सफल रहें. अभी शिबू सोरेन राज्यसभा के सदस्य हैं
सीता सोरेन की उम्मीदवारी से अब कांटे का होगा मुकाबला, सामने झामुमो से कौन?
भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल हुई सोरेन परिवार की बड़ी बहू को दुमका से चुनावी मैदान में उतारा है. इससे सोरेन परिवार की दुविधा बढ़ गयी है. एक ओर जहां अपने पिता की परम्परागत सीट को भाजपा से वापस लेने का दबाव हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन के ऊपर है तो दूसरी ओर उन्हें यह भी तय करना है कि भाभी सीता सोरेन के सामने कौन उम्मीदवार हो?
अभी बसंत सोरेन दुमका से विधायक हैं तो संथाल के ही साहिबगंज के बरहेट से हेमंत सोरेन विधायक हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दुमका में अपना वर्चस्व बनाये रखने और भाजपा को पटखनी देने के लिए हेमंत या बसंत में से कोई मोर्चा संभालेंगे या फिर किसी नए और कद्दावर नाम पर झामुमो विचार करेगा.
यह लोकतंत्र बचाने की लड़ाई है, महत्वपूर्ण है भाजपा को सत्ता से बाहर करना- जेएमएम
सीता सोरेन को भाजपा द्वारा दुमका लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाये जाने पर झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि इसका कोई असर दुमका लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नहीं पड़ेगा. एक बड़े अंतर से झामुमो की दुमका में जीत होगी. मनोज पांडेय ने कहा कि दुमका से झामुमो के प्रत्याशी के नाम का इंतजार कीजिये, जो भी हमारा उम्मीदवार होगा और उसके हाथ में तीर धनुष होगा, उसकी जीत तय है.