बक्सरः बिहार के बक्सर शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर एक कतकौली गांव है. इस गांव की खासियत है कि यहां के लोग आजादी के बाद कभी पुलिस थाने नहीं गए और न ही कभी कोर्ट का चक्कर लगाए. यह जानकर हैरानी हो रही है लेकिन यही सच्चाई है. यह वही गांव है जहां 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ था. लोगों ने इतना रक्तपात देखा था कि सभी का दिल पसीज गया था. तभी से इस गांव के लोगों ने कसम खाया था कि कभी एक दूसरे से बैर नहीं करना है और मिल जुलकर रहना है. बक्सर पुलिस भी इस गांव में कभी नहीं गई.
250 साल पुरानी युद्ध की कहानीः घटना 250 साल पुरानी है. जाहिर सी बात है कि इतने लंबे समय के बाद उस घटना का सटीक जानकारी कोई नहीं दे सकता है लेकिन अपने पूर्वजों से सुनी-सुनाई बातों पर लोग आज भी अमल करते हैं और एक दूसरे से लड़ाई झगड़े नहीं करते हैं. अपने पूर्वजों से मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय लोग बताते हैं कि इस गांव में युद्ध हुआ था जिसकी निशानी आज भी मौजूद है. गांव की धरती खून से लाल हो गई थी.
अंग्रेज और भातीय सेना में युद्धः 23 अक्टूबर 1764 की बात है. कतकौली गांव के मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेनाओं के बीच युद्ध लड़ा गया था. बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी सेनाओं के बीच जंग हुई थी. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व अधिकार कंपनी के हाथों में चला गया था.
खून से रंग गई थी धरतीः इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में हिंदू और मुसलमान दोनों थे. युद्ध खत्म होने के बाद चारो ओर लाशें दिखाई दे रही थी. पूरी धरती खून से रंग गई थी. हथियार बिखड़े हुए थे. यह देखकर गांव के लोगों की आंखे फटी की फटी रह गई थी. पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया था. काफी हिम्मत के बाद गांव के लोगों ने मारे गए सैनिकों के शव को उनके मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किए थे.
कुएं में दफन हुए थे सैनिक के शवः स्थानीय लोग बताते हैं कि मुसलमान सैनिक को गांव के बाहर एक विशाल कुएं में दफन किया गया था. हिंदू सैनिकों के शवों को गांव के उत्तर दिशा में 2 किलोमीटर दूर स्थित जीवनदायिनी गंगा में प्रवाहित कर दिया गया था. शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में उस समय एक बरगद का वृक्ष कुएं पर लगाया गया था. आज भी वह कुआं और वृक्ष लोगों युद्ध की खौफनाक याद दिलाती है.
एक बार पुलिस में मची थी हड़कंपः स्थानीय लोग बताते हैं कि आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ तो यहां के कुछ मुसलमान पाकिस्तान चले गए. 16 साल पहले ये लोग इसी गांव में पहुंचे थे. जैसे ही पुलिस को इसकी सूचना मिली अलर्ट हो गई थी. आनन-फानन में पुलिस प्रशासन ने गांव के इतिहास को खंगाला तो पता चला था कि इस गांव में हुए बक्सर के युद्ध में इनके भी घर के लोग शहीद हुए थे जो भारतीय सिपाही थे.
एक भी केस दर्ज नहींः आजादी से पहले देश के अलग अलग हिस्से में लड़ाई होती रही. इस खून खराबा को देखकर यहां के लोगों ने फैसला किया कि एक दूसरे से बैर नहीं रखेंगे. यही कारण है कि यहां के लोग आजादी के बाद से आज तक पुलिस थाने नहीं गए और न ही पुलिस इस गांव में आती है. इसकी पुष्टि खुद बक्सर के एसपी मनीष कुमार कहते हैं. उन्होंने कहा कि यहां के लोग काफी समझदार हैं. छोटा-मोटा विवाद आपस में बात से सुलझा लेते हैं.