रांची: लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस राज्य की 07 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से एक लोकसभा सीट जिस पर आलाकमान को काफी मशक्कत करनी पड़ी वह सीट रांची की रही. रांची लोकसभा सीट से रामटहल चौधरी, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और सुबोधकांत सहाय के नाम की चर्चा थी. उधर, पार्टी की ओर से लगातार रांची लोकसभा सीट से उम्मीदवार का नाम होल्ड पर रखने से कयासों का दौर भी शुरू हो गया था. पार्टी के अंदर ही अलग-अलग नेताओं के समर्थक अपने-अपने नेता की मजबूत दावेदारी पर चर्चा करने लगे थे.
कांग्रेस आलाकमान के निर्णय ने चौंकाया
ऐसे में 21अप्रैल को कांग्रेस आलाकमान ने दो चौंकाने वाले फैसले लेते हुए गोड्डा से दीपिका पांडेय सिंह की जगह प्रदीप यादव को उम्मीदवार बना दिया, वहीं रांची लोकसभा सीट से सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय को टिकट दे दिया. ईटीवी भारत ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर यशस्विनी सहाय कैसे बन्ना गुप्ता और रामटहल चौधरी पर भारी पड़ गईं?
गोड्डा से दीपिका का टिकट कटने के बाद रांची से यशस्विनी का रास्ता साफ!
झारखंड और कांग्रेस की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले पत्रकार सतेंद्र सिंह के अनुसार पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय का कांग्रेस में ऊंचा कद और राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों ने ऐसा माहौल बना दिया कि रांची लोकसभा सीट बन्ना गुप्ता और रामटहल चौधरी की जगह यशस्विनी सहाय की झोली में चली गई. सतेंद्र सिंह कहते हैं कि गोड्डा में पिछड़े या अल्पसंख्यक को उम्मीदवार बनाने की मांग तेज होती जा रही थी, ऐसे में वहां जब सवर्ण जाति से आनेवाली दीपिका पांडेय सिंह का टिकट काट कर ओबीसी वर्ग से आनेवाले प्रदीप यादव को टिकट दे दिया गया तो स्वतः ही रांची सीट से ओबीसी वर्ग से आनेवाले रामटहल चौधरी और बन्ना गुप्ता की दावेदारी कमजोर पड़ गई.
सुबोधकांत की पार्टी में पहुंच आई काम!
वहीं वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते है कि ऐसा लगता है कि कांग्रेस आलाकमान पहले से सुबोधकांत सहाय को उनकी बढ़ती उम्र और भाजपा से लगातार दो चुनाव में हारने के बाद सुबोधकांत को टिकट नहीं देने का मन बना चुका था. ऐसे में पहले तो सुबोधकांत सहाय ने खुद को टिकट की रेस में बनाए रखा, लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि बन्ना गुप्ता और रामटहल चौधरी के सामने उनकी दावेदारी कमजोर पड़ती जा रही है तो उन्होंने पुत्री यशस्विनी का नाम आगे कर दिया.
उनका कहना है कि उदयपुर चिंतन शिविर में युवाओं को मौका देने को लेकर लिए गए फैसले, दूसरे ओर गोड्डा से एक सवर्ण महिला को टिकट देकर बाद में बदल दिए जाने पर सवर्ण महिला को टिकट देने का नीतिगत दवाब के साथ-साथ सुबोधकांत सहाय की पार्टी में पहुंच भी काम आई. सुबोधकांत सहाय की पार्टी में कितनी पकड़ है इसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि उलगुलान महारैली के दौरान जब मल्लिकार्जुन खड़गे दिशोम गुरु को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित कर रहे थे, तब वहां सुबोधकांत सहाय भी थे.