श्रीनगर:पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने बांग्लादेश संकट पर बोलते हुए कहा कि, तानाशाही लंबे समय तक नहीं चलती है. बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की स्थिति भारत के लिए सबक है. महबूबा ने कहा कि, भारत को इससे यह सीख लेनी चाहिए कि युवाओं को दीवार के सामने नहीं धकेला जाना चाहिए.
बांग्लादेश संकट पर महबूबा मुफ्ती का बयान
बांग्लादेश में नौकरी कोटा को लेकर कई सप्ताह तक हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद बांग्लादेश अनिश्चितता में डूब गया. जिसके कारण शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उन्हें देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. हजारों प्रदर्शनकारियों ने ढाका में हसीना के आधिकारिक आवास में घुसकर लूटपाट और तोड़फोड़ की. इतना ही नहीं हसीना के जाने का जश्न मनाते हुए उनकी पार्टी के कार्यालयों में आग लगा दी गई.
तानाशाही ज्यादा दिनों तक नहीं चलती, बोलीं महबूबा
पत्रकारों से बात करते हुए मुफ्ती ने आगे कहा कि, "देश को बांग्लादेश की स्थिति से सबक लेना चाहिए. मुफ्ती ने कहा कि जब आप युवाओं को दीवार के सामने धकेलते हैं, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से निपटने में विफल होकर उन्हें निराश करते हैं और शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन्हें असहाय महसूस कराते हैं, तो बांग्लादेश जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. उन्होंने दोहराया कि, हमें सबक लेना चाहिए कि तानाशाही ज्यादा दिनों तक नहीं चलती." उन्होंने कहा कि, इन परिस्थितियों में लोग अपना धैर्य खो सकते हैं. उन्होंने आगे कहा कि, जब जनता सरकार की नीतियों या कानूनों से तंग आ जाती है तो वे उनके खिलाफ हो जाते हैं और फिर शेख हसीना की तरह भागना पड़ता है."
बांग्लादेश की हालत जम्मू कश्मीर जैसी, महबूबा का बयान
पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती ने कहा कि बांग्लादेश में स्थिति जम्मू-कश्मीर जैसी है. यहां युवाओं को कई मुद्दों का सामना करना पड़ता है. मुफ्ती ने कहा कि, युवा आज बांग्लादेश की तरह असहाय महसूस करते हैं. इसके अलावा, उन्हें उत्पीड़न और बल, यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम), और पीएसए (सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम) का सामना करना पड़ता है. इसलिए, हमें बांग्लादेश संकट से सबक सीखना चाहिए और युवाओं के मुद्दों का समाधान करना चाहिए. उन्होंने कहा, "भगवान न करे, ऐसी स्थिति यहां पैदा हो." पीडीपी अध्यक्ष ने कहा, बांग्लादेश संकट एक सबक है कि कमजोर लोग भी असहाय महसूस कराए जाने पर अपने अधिकारों के लिए लड़ सकते हैं.
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