बालाघाट: कुछ सालों पहले तक किसानों की लगाई गई धान की फसल रकबे को बेहतरीन खुशबू से सराबोर कर देती थी. इस तरह के देसी धान की किस्मों की भीनी भीनी खुशबू न केवल व्यक्ति के मन को प्रफुल्लित करती थी बल्कि भरपूर स्वाद और पोषण युक्त भी होती थी. इनसे प्रचुर मात्रा में आयरन और जिंक आदि भी मिलता था. लेकिन अब की स्थिति बिल्कुल अलग है. अब कृषि जगत को हाइब्रिड ने पूरी तरह से अपनी आगोश में लिया है. जिसके कारण परंपरागत देसी बीज विलुप्ति के कगार पर हैं. लेकिन विलुप्त होती इन परंपरागत देसी बीजों को सहेजने का कार्य कुछ किसानों ने किया है. जिनमें से एक बालाघाट जिले के किसान हैं, जिन्होंने 150 किस्मों की परंपरागत देसी धान के बीजों का संग्रहण और संरक्षण किया है. आईए जानते हैं आखिर कैसे इन परंपरागत देसी धान के बीजों का संरक्षण किसान द्वारा किया गया है...
150 वैराइटी के धान बीज का म्यूजियम
बालाघाट जिले के आदिवासी बाहुल्य परसवाड़ा विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव के किसान राजकुमार चौधरी ने परंपरागत देसी किस्म की 150 धान की प्रजातियों का सरंक्षण किया है. ये अपनी जमीन पर इन सभी किस्म के धान की फसल तैयार करते हैं. राजकुमार की माने तो 2013 से उन्होंने देसी धानों के संरक्षण का कार्य प्रारंभ किया था. उन्होंने शुरुआत सिर्फ 13 किस्मों के धान से की थी, लेकिन आज उनके पास 150 किस्म के देसी बीज के साथ यूं कहे तो म्यूजियम है.
कृषक राजकुमार चौधरी ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्होंने उन्ही परंपरागत देसी धान की किस्मों का संरक्षण किया है, जो पहले उनके दादा, परदादा खेतों में लगाया करते थे. जिसमें से ककरी, चिपड़ा, उरईबुटा, पांडी, सफरी, सटिया, गुरमुटिया, जीराशंकर, दुबराज, पीसो और लुचई जैसी कुछ खास प्रजातियों सहित करीब 150 धान बीज के किस्म शामिल हैं.
उन्होंने बताया कि "धान की इन वैराइटियों को संरक्षित करने का उद्देश्य यह है कि ये पुरातन काल से चली आ रही हैं. इनको हर साल लगा सकते हैं. लेकिन हाईब्रीड किस्म के धान को देखें तो इन्हें 1-2 साल के बाद बदलना ही पड़ता है. जिसके कारण आज की खेती खर्चीली होती जा रही है. इसलिए मैंने परंपरागत किस्मों को संरक्षित करने का फैसला लिया है."
इन बातों का रखना होता विशेष ध्यान
देसी परंपरागत धान की किस्मों के संरक्षण को लेकर उनका कहना है कि क्रॉस पॉलिनेशन का वे विशेष ध्यान रखते हैं. जिसके लिए फसलों के बीच डिस्टेंस बनाकर रखते हैं. इसके लिए हर किस्म के धान के बीच एक से डेढ़ फीट की दूरी रखकर लगाते हैं. इसक साथ ही उसके चारों ओर ऐसी किस्म के धान लगाते हैं, जिसकी पुष्पान तिथि कम से कम 10-15 दिन हो. पुष्पान तिथि का मतलब है कि फूल आने का समय है. अगर एक साथ एक समान पुष्पान तिथि वाले बीज लगाए जाएं तो उनमें क्रॉस पॉलिनेशन हो जाता है, जिससे वे किस्में मिश्रित हो जाती हैं.
कम लागत में अच्छी पैदावार
देसी परंपरागत बीजों की खेती करने में किसान को लागत कम लगती है. किसान घर में उत्पादन किए गए फसल का अगले साल बीज के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. इसको हर साल बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं होती है. भविष्य में यदि ये बीज बाजार में नहीं मिल रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में किसान अपने घर की बीज को ही बार-बार भी उपयोग कर सकता है.
इसके अलावा हाइब्रिड धान में रासायनिक खाद के अलावा जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग अधिक किया जाता है, जो कि महंगे भी होते हैं. लेकिन देसी किस्म की फसल में गोबर खाद और अन्य देसी जैविक खाद से ही उत्पादन बेहतर मिल जाता है. वहीं, किसी प्रकार की बीमारी की आशंका भी नहीं रहती है. इसलिए जहरीले कीटनाशकों के उपयोग का सवाल ही नहीं है और कम लागत में फसल अच्छी उत्पादन देती है.