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'मैं चिन्मय कृष्ण दास के लिए मुकदमा लड़ूंगा', वकील ने इस्कॉन के संत को मुक्त करने की कसम खाई - VOWS TO FREE ISKCON MONK

वकील घोष ने कहा कि, हत्या की धमकियों के बावजूद वे बांग्लादेश के हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास का पक्ष रखना जारी रखेंगे.

A Muktijodhha Vows To Free Chinmoy Krishna Das
अधिवक्ता रवीन्द्रनाथ घोष और चिन्मय कृष्ण दास के पक्ष में प्रदर्शन कर रहे लोग (ETV Bharat and AFP)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 16, 2024, 10:15 PM IST

कोलकाता: बांग्लादेश के एक प्रमुख वकील रवींद्रनाथ घोष ने सोमवार को दावा किया कि, जब से उन्होंने जेल में बंद हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास का प्रतिनिधित्व करने का निर्णय लिया है, तब से उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं. हालांकि, उन्होंने संकल्प जताया कि, वह न्याय और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.

उन्होंने आरोप लगाया कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार दास को इसलिए निशाना बना रही है, क्योंकि वह हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ मुखर रहे हैं और उत्पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय को एकजुट कर रहे हैं.

बता दें कि, देशद्रोह के आरोप में बांग्लादेश की जेल में बंद इस्कॉन भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास की रिहाई का अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय और दुनिया भर के सनातनियों को बेसब्री से इंतजार है. इस मामले में संभावित नतीजा अगले साल 2 जनवरी को आने की उम्मीद है. दरअसल, वकील रवींद्रनाथ घोष ने कहा है कि, वह दास के लिए कोर्ट में बहस करेंगे.

फिलहाल मेडिकल वीजा पर कोलकाता में मौजूद 70 वर्षीय दास ने कहा, "मैं जल्द ही बांग्लादेश लौटूंगा. चिन्मय कृष्ण दास के मामले की सुनवाई 2 जनवरी को होगी और मैं उनके लिए बहस करूंगा."

भारत का पूर्वी पड़ोसी देश बांग्लादेश इस साल के मध्य से ही तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ देशव्यापी छात्र विरोध के बाद से उबल रहा है. प्रदर्शनकारियों पर सरकार की कार्रवाई के बाद स्थिति और खराब हो गई, जिसके परिणामस्वरूप 5 अगस्त को हसीना को पद से हटा दिया गया और उन्हें भारत में शरण दी गई. तब से नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार देश चला रही है.

हालांकि, इस उथल-पुथल पर लगाम लगाने के बजाय, सरकार अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर मूकदर्शक बनी रही. दास इस बारे में सबसे मुखर रहे और विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे. उन्हें 25 नवंबर को राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने के आरोप में ढाका अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया और बाद में उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया. तब से वे जेल में बंद हैं.

दास की जमानत याचिका पर दिसंबर की शुरुआत में चटगांव की एक अदालत में सुनवाई होनी थी, लेकिन उनके लिए कोई वकील नहीं आया. अदालत ने सुनवाई 2 जनवरी, 2025 को फिर से निर्धारित की. हालांकि, अगली सुनवाई पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि आरोप है कि दास के लिए लड़ने के इच्छुक वकीलों को रोका गया, धमकाया गया और यहां तक​ कि उनके साथ मारपीट भी की गई.

मुक्तिजोधा (1971 के युद्ध के दिग्गज) घोष ने कहा, वे चिन्मय दास के वकील हैं और अदालत में उनका पक्ष रखने चटगांव गए थे. लेकिन वहां लोगों ने उन्हें रोका और परेशान किया. साथी वकीलों ने भी उन्हें बहस करने से रोका. घोष ने कहा कि, 2 जनवरी को क्या होगा, इसका अनुमान लगाना संभव नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि, इन सबके बीच, कई अल्पसंख्यक हिंदू बांग्लादेश से भागने लगे हैं और उनमें से कुछ को भारत-बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ ने पकड़ लिया है. घोष ने कहा, "कई सताए गए लोग भारत में आने को तैयार हैं और इस प्रक्रिया में उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा हिरासत में लिया जा रहा है. मैं एक राजनीतिक व्यक्ति हूं, लेकिन एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हूं जो लोगों को न्याय दिलाने के लिए लड़ता हूं. मैं अपने देश से क्यों भागूंगा? मैं हमेशा वहीं (बांग्लादेश में) रहूंगा."

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