बेलगाम:आम तौर पर सभी ने सुना होगा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 50 से ज्यादा उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं. हालांकि, इस सीट पर एक बार 301 और फिर 456 उम्मीदवारों ने मैदान में उतरकर इतिहास रचा था. हां, बेलगाम में दो महत्वपूर्ण चुनावों ने देश का ध्यान खींचा, जिसके कारण मतदाता पहचान पत्र और जमा राशि में वृद्धि हुई. 1985 और 1996 का चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती थी. हालांकि, आयोग ने इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया और इतिहास रचा.
आरोप था कि महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) बेलगाम विधानसभा चुनाव में फर्जी वोटिंग के जरिए जीत हासिल करता रहा है. इसलिए कन्नड़ सेनानियों ने कई बार सरकार से अपील कर उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
इस पर कोई प्रतिक्रिया न मिलने की पृष्ठभूमि में एक अलग संघर्ष की योजना बनाने वाले सेनानियों ने 1985 में बेलगाम विधानसभा चुनाव में 301 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया. उस समय कन्नड़ समर्थक सेनानी, उनके परिवार के सदस्य, अखबारों के संपादक, पत्रकार और घर के सभी लोग चुनाव मैदान में आये थे. ऐसे में आयोग के लिए चुनाव चिन्हों का वितरण और मतपत्रों की छपाई चुनौती थी. बेलगाम विधानसभा चुनाव ने पूरे देश का ध्यान खींचा. दो महीने बाद चुनाव हुए और अंततः एमईएस समर्थित उम्मीदवार आर.एस. माने ने जीत हासिल कर रिकॉर्ड बनाया था.
1996 में एमईएस ने इस अलग प्रयोग को लागू किया, जो 1985 में कन्नाडिगास ने किया था. इस चुनाव में कुल 456 लोगों ने हिस्सा लिया. यह चुनाव आयोग के लिए भी बड़ा सिरदर्द था. आयोग को मतपत्र छापने और चुनाव कराने की चुनौती दी गई. चुनाव दो महीने के लिए टाल दिया गया. जनता दल से शिवानंद कौजलगी, बीजेपी से बाबा गौड़ा पाटिल और कांग्रेस से प्रभाकर कोरे मैदान में उतरे थे. बाद में हुए चुनाव में जनता दल के शिवानंद कौजलगी ने जीत हासिल की.