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چمکی بخار کا علاج اور احتیاطی تدابیر

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Published : Jun 19, 2019, 12:39 PM IST

چمکی بخار کتنا خطرناک ہوسکتا ہے یہ آپ نے بہار کے مظفر پور میں دیکھا ہے، اس بیماری کا علاج کیا ہے اور اس سے بچنے کی احتیاطی تدابیر کیا ہیں جانیے ایمس کی ماہرامراض اطفال ڈاکٹر شیفالی گلاٹی سے۔

چمکی بخار کا علاج اور احتیاطی تدابیر

مظفر پور میں پھیلے انسیفلائٹس وائرس جسے چمکی بخار بھی کہا جارہا ہے اس نے پوری ریاست میں میڈیکل ایمرجنسی جیسے حالات پیدا کردیے ہیں۔

چمکی بخار کا علاج اور احتیاطی تدابیر

اس بیماری نے اب تن 100 بچوں کی جان لے لی ہے۔

اس بیماری سے کیسے بچا جائے اور اس کا علاج کیا ہے یہ جاننے کے لیے ای ٹی وی بھارت نے دہلی کے ایمس اسپتال کی ماہر امراض اطفال ڈاکٹر شیفالی گلاٹی سے خصوصی بات چیت کی۔

مظفر پور میں پھیلے انسیفلائٹس وائرس جسے چمکی بخار بھی کہا جارہا ہے اس نے پوری ریاست میں میڈیکل ایمرجنسی جیسے حالات پیدا کردیے ہیں۔

چمکی بخار کا علاج اور احتیاطی تدابیر

اس بیماری نے اب تن 100 بچوں کی جان لے لی ہے۔

اس بیماری سے کیسے بچا جائے اور اس کا علاج کیا ہے یہ جاننے کے لیے ای ٹی وی بھارت نے دہلی کے ایمس اسپتال کی ماہر امراض اطفال ڈاکٹر شیفالی گلاٹی سے خصوصی بات چیت کی۔

Intro:मुजफ्फरपुर में फैले इंसेफलाइटिस जिसे चमकी बुखार भी कहा जा रहा है, ने बिहार में मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. अब तक सौ से ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो चुकी है. इस बुखार की भयावहता और बचाव के उपायों को लेकर ईटीवी भारत ने खास बातचीत की दिल्ली एम्स की चाइल्ड न्यूरो प्रमुख डॉ शैफाली गुलाटी से.


Body:नई दिल्ली: डॉ शैफाली गुलाटी ने बताया कि यह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम बीमारी है, जिसमें बच्चे को बुखार चढ़ता है, फिर कुछ देर बाद उसको दौरे पड़ने शुरू हो जाते हैं, उनमें चिड़चिड़ापन आता है, जिससे कई तरह के डिसऑर्डर भी आते हैं, दिमाग में स्वेलिंग होती है और फिर यह एक इमरजेंसी में बदल जाती है.

पिछले कई दशकों से चली आ रही इस बीमारी की कोई अचूक दवा अब तक क्यों नहीं बनी, इसके जवाब में डॉ शैफाली गुलाटी ने बताया कि यह क्लीनिकल सिंड्रोम है और इसके कारक बहुत सारे वायरस हैं. उदाहरण के रूप में उन्होंने बताया कि सन 2000 से पहले जैपनीज इन्सेफेलाइटिस वायरस कॉमन था. इसके केसेज वेस्टर्न यूपी, बिहार और बंगाल के कई हिस्सों में देखे गए थे, फिर तमिलनाडु में एक अलग तरह का वायरस आया, फिर चांदीपुरा में हमने निपाह वायरस देखा.

डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि 2014-15 में सबसे पहले चांदीपुरा में ही लीची से पैदा होने वाले वायरस का पता चला. हालांकि इसके अलावा कई तरह के वायरस और बैक्टीरिया हैं, जिनकी वजह से यह बीमारी हो सकती है. साथ ही ऑटोइम्यून के कारण भी यह होती है, हमारी बॉडी जो एंटी बायोटिक्स प्रोड्यूस करती है, वो इसके कारक हो सकते हैं. इसके अलावा वातावरण में फैले टॉक्सिंस भी इसकी वजह हो सकते हैं.

इतने सारे कारक से होने वाली इस बीमारी को लेकर डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि यह अभी साफ नहीं हो सका है कि इसका कारण क्या है. हालांकि मुजफ्फरपुर के मामले में उनका संकेत इस तरफ था कि इसके कारकों की सुई लीची की तरफ जा रही है. 2014 15 में सबसे पहले यह सामने आया था कि लीची इस बीमारी का कारण हो सकता है. इसका एक आधार यह है कि लीची के अंदर जो केमिकल होता है और जिस तरह रसायन के इस्तेमाल से उसकी पैदावार होती है, उसके कारण उसके सेवन से बच्चों के दिमाग में ग्लूकोज की कमी हो जाती है.

मुजफ्फरपुर या जिन इलाकों में बच्चों को ये बीमारी हो रही है, वहां पर कुपोषण एक बड़ी समस्या है, साथ ही खेती में रसायन का इस्तेमाल भी वहां पर ज्यादातर होता है. हमने डॉक्टर शैफाली गुलाटी से इसे लेकर सवाल किया कि क्या यह कारण हो सकता है, तो उनका कहना था कि रसायन के इस्तेमाल से खासकर लीची में कई तरह के केमिकल सामने आ रहे हैं और जो कच्ची लीची होती है, वो इस मामले में कुछ ज्यादा खतरनाक होती है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी तक इसका कोई साफ प्रमाण नहीं है कि यह बीमारी लीची के सेवन से ही होती है.

डॉक्टर गुलाटी ने बताया कि इसे लेकर एम्स में भी एक रिसर्च हो रहा है कि आखिर इंसेफेलाइटिस की बीमारियां किस वजह से हो रही है. उन्होंने बताया कि अगले 1 महीने में इसका पूरा ऑपरेशन शुरू होगा.

जहां तक इस बीमारी से बचाव की बात है, तो डॉक्टर गुलाटी का कहना था कि जो भी बीमारी होती है, उसमें तीन स्तर पर बचाव का काम होता है, प्राइमरी,।सेकेंडरी और टर्सरी. जिस बच्चे में भी इस बीमारी के लक्षण हों, उसको तुरंत अस्पताल ले जाया जाए और उसके लिए सबसे जरूरी यह है कि उसका ग्लूकोज और ब्लडप्रेशर मेंटेन रहे. अगर उसे बुखार आता है तो उसे क्रॉसिन दिया जाए.

उन्होंने बताया कि यह अलग अलग तरीके के इंसेफेलाइटिस हो सकते हैं और मेनिनजाइटिस भी. दोनों अलग अलग हैं, लेकिन कई बार एक बच्चे में दोनों बीमारियां हो सकती हैं. ऐसे में मॉनिटरिंग जरूरी होती है और सबसे ज्यादा जरूरी होता है कि प्राइमरी मॉनिटरिंग के साथ-साथ उसे सेकेंडरी मॉनिटरिंग में ले जाए जाए. दोनों में गैप नहीं होना चाहिए.

डॉक्टर गुलाटी ने कहा कि अगर प्राइमरी इलाज का समय ही निकल जाता है, तो फिर डायरेक्ट सेकेंडरी इलाज का कोई मतलब नहीं रह जाता. अगर बच्चे के दिमाग में शुगर की कमी हो गई या दौरे शुरू हो गए या ब्रेन में स्वेलिंग हो गई और प्रेशर बढ़ रहा हो या बच्चा उल्टी कर रहा हो तो यह सब प्राइमरी स्तर पर जांच करके इसका त्वरित इलाज करना चाहिए.

अगर बच्चों में ऐसे लक्षण आए तो अभिभावकों को क्या एहतियात बरतनी चाहिए, इसे लेकर सवाल करने पर डॉक्टर गुलाटी ने कहा कि अगर बच्चे को हल्का बुखार है तो अभिभावकों को बिना देर किए उसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए और इसमें जरूरी है कि ब्लड प्रेशर मेंटेन रहे और ग्लूकोज का स्तर बना रहे. हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी बच्चों में यही लक्षण हो, लेकिन बदकिस्मती से अभी ज्यादातर बच्चों में यही देखने को मिल रहा है. ऐसे में जरूरी है कि ऐसे लक्षण सामने आने पर जल्द से जल्द डॉक्टर के पास बच्चों को ले जाया जाए. डॉक्टर गुलाटी ने यह भी कहा कि ऐसा नहीं है कि किसी बड़े अस्पताल में ही जाए जाए, किसी भी अस्पताल में पहुंचकर प्राथमिक इलाज कराना सबसे जरूरी है. इधर उधर भागने में समय व्यतीत होता है और यह नुकसानदेह हो सकता है

डॉक्टर गुलाटी ने खास तौर पर यह भी कहा कि छुआछूत की बीमारी नहीं है लेकिन वातावरण में जो वायरस होते हैं वह एक साथ कई लोगों पर अटैक कर सकते हैं एक परिवार में या बीमारी दो बच्चों को हो सकती है लेकिन एक बच्ची से दूसरे बच्चे में नहीं होती


Conclusion:गौरतलब है कि बीते एक दशक से ज्यादा समय से हर साल मई से लेकर जब तक मानसून न शुरू हो, तब तक का समय मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों के लिए बेहद तकलीफदेह होता है. लेकिन जैसा डॉ शैफाली गुलाटी ने बताया, इलाज तो दूर, अब तक इसके कारणों की भी ठोस पड़ताल नहीं हो सकी है. ऐसे में अभी के लिए सिर्फ और सिर्फ बचाव ही एकमात्र सहारा है.
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