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حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی

کرگل جنگ کے دوران دشمنوں پر پہلی گولی چلانے والے بہادر فوجی جوان لانس نائک ستبیر سنگھ حکومت سے نالاں ہیں، 1999 کرگل جنگ میں لگی پیر میں گولی آج بھی موجود ہے۔

حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی
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Published : Jul 26, 2019, 3:29 PM IST

26 جولائی یوم کرگل کے طور ملک بھر میں جانا جاتا ہے، جب بھارت کے جوانوں نے اپنی جان کو داؤں پر لگا کر دشمن فوج پر حملہ کیا۔

دہلی کے مُکھمیل پور گاؤں کے رہنے والے لانس نائک ستبیر سنگھ نے کرگل جنگ میں حریف فوج پر سب سے پہلے ہینڈ گرینیڈ اور گولی چلائی تھی۔ یہ بہادر سپاہی آج حکومت کی بے رخی کا شکار ہے۔ در در کی ٹھوکریں کھا کر اپنی زندگی کے باقی دن کاٹ رہا ہے۔

جنگ کے دوران ستبیر سنگھ کے پاؤں میں گولی لگی تھی جس کے سبب وہ معذور ہو گئے، اور حکومت سے ایک امید لگائی کہ ملک کی خدمت کے عوض انھیں کچھ امداد فراہم کی جائے گی۔

حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی

لیکن آج 20 سال گزرنے کے بعد بھی انھیں کوئی سرکاری مدد نہیں ملی۔ مزدوری کر کے یہ بہادر اپنا اور اہل خانہ کا گزر بسر کر رہا ہے۔

حکومت کی طرف سے پیٹرول پمپ اور کاشتکاری کے لیے زمین دینے کا وعدہ ہوا تھا، لیکن وہ بھی نہیں ملا، البتہ کاشتکاری کے لیے زمین دی گئی لیکن 6 سال بعد وہ بھی واپس لے لی گئی۔

حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی
حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی

ستبیر سنگھ نے مزید بتایا کہ اس نے فوج میں 13 سال 11 مہینے گزارے، میڈیکل کے بعد غیر صحت مند قرار دے کر نوکری سے دستبردار کر دیا گیا۔ میں دہلی کا اکلوتا سپاہی تھا جسے سروس سیوا اسپیشل میڈل ملا تھا۔

اب تک وزیر اعظم، صدر جمہوریہ، وزیر دفاع اور دیگر مرکزی وزراء کو خط لکھ چکے ہیں لیکن کوئی جواب نہیں ملا ہے۔

26 جولائی یوم کرگل کے طور ملک بھر میں جانا جاتا ہے، جب بھارت کے جوانوں نے اپنی جان کو داؤں پر لگا کر دشمن فوج پر حملہ کیا۔

دہلی کے مُکھمیل پور گاؤں کے رہنے والے لانس نائک ستبیر سنگھ نے کرگل جنگ میں حریف فوج پر سب سے پہلے ہینڈ گرینیڈ اور گولی چلائی تھی۔ یہ بہادر سپاہی آج حکومت کی بے رخی کا شکار ہے۔ در در کی ٹھوکریں کھا کر اپنی زندگی کے باقی دن کاٹ رہا ہے۔

جنگ کے دوران ستبیر سنگھ کے پاؤں میں گولی لگی تھی جس کے سبب وہ معذور ہو گئے، اور حکومت سے ایک امید لگائی کہ ملک کی خدمت کے عوض انھیں کچھ امداد فراہم کی جائے گی۔

حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی

لیکن آج 20 سال گزرنے کے بعد بھی انھیں کوئی سرکاری مدد نہیں ملی۔ مزدوری کر کے یہ بہادر اپنا اور اہل خانہ کا گزر بسر کر رہا ہے۔

حکومت کی طرف سے پیٹرول پمپ اور کاشتکاری کے لیے زمین دینے کا وعدہ ہوا تھا، لیکن وہ بھی نہیں ملا، البتہ کاشتکاری کے لیے زمین دی گئی لیکن 6 سال بعد وہ بھی واپس لے لی گئی۔

حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی
حکومت سے مایوس جوان، آج بھی ہے جسم میں دشمن کی گولی

ستبیر سنگھ نے مزید بتایا کہ اس نے فوج میں 13 سال 11 مہینے گزارے، میڈیکل کے بعد غیر صحت مند قرار دے کر نوکری سے دستبردار کر دیا گیا۔ میں دہلی کا اکلوتا سپاہی تھا جسے سروس سیوا اسپیشل میڈل ملا تھا۔

اب تک وزیر اعظم، صدر جمہوریہ، وزیر دفاع اور دیگر مرکزی وزراء کو خط لکھ چکے ہیں لیکن کوئی جواب نہیں ملا ہے۔

Intro:नॉर्थ वेस्ट दिल्ली,

लोकेशन मुखमेल पुर ।

बाईट - लांस नायक सतवीर सिंह ओर उनके साथी के साथ वन टू वन ।

स्टोरी... 1999 के कारगिल युद्ध का जांबाज और वीर सैनिक आज सरकार के अपेक्षा का शिकार होकर दर-दर की ठोकरे खा रहा है । इस सैनिक ने 1999 में हुए कारगिल युद्ध में सबसे पहली विजय पताका अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मन को हराकर फहराई । दुश्मन की टुकड़ी पर सबसे पहले हैंड ग्रेनेड और गोली चलाने वाला यही वीर और जांबाज सैनिक है जो आज सरकार की बेरुखी का शिकार होकर थक हार कर अकेले बैठकर रोता है । कारगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान को हथेली पर लेकर दुश्मन के खेमे पर चीते की तरह टूट पड़ा और आज मजदूरी कर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहा है । दुश्मन की गोली पैर में लगने के बाद सतवीर सिंह को तो खुद चलने बैसाखी का सहारा मिल गया लेकिन जिंदगी जीने के लिए अभी भी सरकारी सहारे की आस लगाए बैठा है ।


Body:लांच नायक सतबीर सिंह दिल्ली के मुखमेलपुर गांव में रहते हैं यह दिल्ली से कारगिल युद्ध के अकेले जांबाज है । आज कारगिल युद्ध को 20 साल बीत जाने पर भी दुश्मन की गोली आज दिन के पैर में फंसी हुई है । जिसकी वजह से यह ठीक से चल फिर भी नहीं सकते । इस योद्धा ने करगिल के मैदान में दुश्मनों से लड़ाई तो जीत ली लेकिन सिस्टम से लड़ाई हार गया । कारगिल की लड़ाई के बाद करीब डेढ़ साल तक आर्मी अस्पताल में इलाज चला जिसके बाद अपनी आजीविका चलाने के लिए लांस नायक सतवीर सिंह ने मजदूरी तक भी की । इस योद्धा को मजदूरी कराने के लिए सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है । आज देश का बीसवां कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है लेकिन देश की राजधानी में कारगिल युद्ध का एक योद्धा अपने शौर्य गाथा बताते हुए रोने लगता है, कि किस तरह से कारगिल युद्ध में दुश्मन पर चीता बन कर टूट पड़ा । जिसने अपने हाथों से दुश्मन को धूल चटाई और वह आज मजदूरी कर किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहा है।

सतवीर बताते हैं कि 13 जून 1999 सुबह थी कारगिल की तोलोलिंग पहाड़ी पर थे तभी पहाड़ियों के बीच घात लगाए दुश्मन की टुकड़ी से आमना सामना हो गया । इन से महज कुछ ही दूरी पर पाकिस्तानी सैनिक थे, अपनी 9 सैनिकों की टुकड़ी नेतृत्व कर रहे सतवीर ने दुश्मन पर अपनी बंदूक से युद्ध की पहली गोली चलाई ओर हैंड ग्रेनेड भी फीका जिसमे पाकिस्तान के 7 सैनिक मारे गए । उन्होंने बताया कि जिस काम के लिए तोलोलिंग पहाड़ी पर भेजा गया था उन्होंने उस काम को बखूबी अंजाम दिया ओर तोलोलिंग पहाड़ी पर देश का तिरंगा फहराया । हमारी कंपनी में 24 जवान थे जिन्हें तीन टुकड़ों में बांटा गया और सबसे पहली टुकड़ी को लीड खुद सतवीर सिंह कर रहे थे । इस युद्ध में इनकी बटालियन के 7 अफसर ओर जवान भी शहीद हुए और इसी दौरान दुश्मन की गोली इनके पैर की एड़ी में आकर लगी जो आज भी पैर में फंसी हुई है । करीब 15 घंटो तक दुश्मन की गोली से घायल योद्धा चीते की तरह पहाड़ी पर पड़े रहे । जिसमें इनके शरीर का काफी खून बह चुका था, कई बार सेना का हेलीकॉप्टर भी लेने आया लेकिन दुश्मन सैनिकों की वजह से वह उतर नहीं सका । फिर बाद में इन्हें इनके साथियों की मदद से एयरबेस लाया गया । जहां पर करीब 9 दिन तक इलाज चलने के बाद ने दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया ।

सरकारी आंकड़ों की बात करें तो देश में करीब 527 योद्धा शहीद और 1300 से ज्यादा घायल हुए । भारत की विजय के साथ 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हो गया । उस युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं, घायल हुए अफसरों और सैनिकों के लिए तत्कालीन सरकार ने पेट्रोल पंप और खेती की जमीन मुहैया कराने की घोषणा की थी । उस सूची में कारगिल युद्ध के घायल योद्धाओं में लांस नायक सतवीर सिंह का नाम भी था । लांस नायक सतवीर के पैर में 2 गोलियां लगी थी एक गोली इनके पैर में लगकर ऐडी से छूकर निकल गई और दूसरी गोली आज भी पैर में फंसी हुई है ।

अपने अदम्य साहस का परिचय उसमें दे चुके सतवीर सिंह ने बताया कि करीब डेढ़ साल तक इनका इलाज दिल्ली के सेना हॉस्पिटल में चला । उसी दौरान घायल और शहीद हुए सैनिकों को पेट्रोल पंप आवंटित होने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी । लेकिन दुर्भाग्य से इन्हें पेट्रोल पंप नहीं मिल सका । इसके बाद जीवन यापन करने के लिए इन्हें करीब 1 एकड़ जमीन भी सरकार की ओर से दी गई । जिसमें उन्होंने फलों का बाग भी लगाया और वह जमीन करीब 6 साल तक इनके पास रही । इन्होंने उस पर खेती की, लेकिन बाद में उसे भी सरकार ने छीन लिया । बस अब किसी तरह से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे लेकिन पैसों की कमी के कारण उनके बेटों की पढ़ाई भी छूट गई । किसी तरह सरकारी पेंशन के पैसों से घर का खर्च चलाने के लिए जूस की दुकान खोली लेकिन मजबूरी में वह भी बंद करनी पड़ी । सतवीर सिंह बताते हैं कि इन्होंने देहाडी पर मजदूरी भी की जीवन यापन करने के लिए क्या कुछ नही किया । लेकिन सरकार की ओर से वाजिब मदद आज तक नहीं मिली ।




Conclusion:सतबीर बताते हैं कि इन्होंने फौज में 13 साल 11 महीने की नौकरी की । मेडिकल ग्राउंड पर अनफिट करार दिया गया दिल्ली का अकेला सिपाही था जिसे सर्विस सेवा स्पेशल मेडल मिला । सरकार ने जमीन व पेट्रोल पंप देने का वादा भी किया । ल3किन पेट्रोल पंप नही मिला खेती करने के लिए किसी तरह से एक एकड़ जमीन ही मिली । उसी दौरान एक बड़ी पार्टी के नेता ने उनसे जमीन वापस लेने के लिए संपर्क किया जब उन्होंने इंकार किया इनसे खेती की जमीन भी वापस छीन ली गयी । फिलहाल लांस नायक सतवीर सिंह के साथी हरपाल सिंह राणा ने इनकी लड़ाई लड़ने के लिए प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और राष्ट्रपति से लेकर सभी का दरवाजा खटखटाया, सभी मंत्रियों की चौखट पर गए सरकारी तंत्र का ऐसा कोई मंत्री नहीं जिसके पास इन्होंने चक्कर ना लगाए हो लेकिन आज तक नहीं कुछ नहीं मिला । कोई सरकारी मदद नहीं मिली । वह सम्मान नहीं मिला जिसका यह कारगिल युद्ध का वीर योद्धा हकदार है ।

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