शिवगण लखिया को देखते ही रोमांचित हो उठे लोग, हिलजात्रा में दिखा आस्था और परंपरा का रंग
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पिथौरागढ़: सीमांत जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ में कई सांस्कृतिक विरासत समय-समय पर देखने को मिलती है. जो अतीत की गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए हैं. आज भी इन लोकपर्वों के प्रति शहरी हो या ग्रामीण किसी का भी लगाव कम नहीं हुआ है. ऐसा ही एक पर्व है सोरघाटी पिथौरागढ़ का ऐतिहासिक पर्व हिलजात्रा. जो भारत और नेपाल की सांझा संस्कृति का प्रतीक भी है. साथ ही यह पर्व शौर्यगाथा को भी प्रदर्शित करता है. जो लोकपर्व के रूप में अपनी पहचान बना चुका है. गौर हो कि सोरघाटी पिथौरागढ़ के सावन के महीने को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं. सातूं-आठूं से शुरू होने वाले इस पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है. ये पर्व पूरे भारत वर्ष में केवल पिथौरागढ़, अस्कोट और सीरा परगने में मनाया जाता है. लेकिन इस हिलजात्रा की असल शुरुआत पिथौरागढ़ जिले के कुमौड़ गांव से हुई.