उत्तरकाशी: हिन्दू धर्म में चार धाम यात्रा का खास महत्व है. माना जाता है कि जो व्यक्ति जीवन में चारों धामों की यात्रा कर लेता है उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है. इन्हीं चारों धामों में से एक धाम यमुनोत्री भी है. ये वही धाम में जहां बहन यमुना के साथ धर्मराज यमराज विराजते हैं. चारधाम यात्रा की शुरुआत यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते ही हो जाती है.
भले ही यमराज का नाम सुनते ही लोगों का कलेजा कांप जाता हो लेकिन यमुनोत्री धाम में यमराज भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं. पुराणों के अनुसार, माता यमुना सूर्य देव की पुत्री और यमराज की छोटी बहन हैं. माना जाता है कि यमुनोत्री धाम में मां यमुना के साथ मृत्यु के देवता यमराज भी विराजमान हैं. इसलिए भैय्यादूज के दिन इस धाम की महत्ता बढ़ जाती है.
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कालिंद पर्वत माला पर स्थित
भैय्यादूज के मौके पर बहनें मां यमुना में स्नान कर सच्चे मन से अपने भाई को जल का तिलक करती हैं. माना जाता है ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल जाती है.
देश-विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु
यमुनोत्री धाम में सूर्य और गौरी नाम के दो कुंड भी हैं, जिनमें श्रद्धालु स्नान करते हैं. इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रताप शाह ने कराया था. मंदिर का पुन: निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में कराया था.
यमुनोत्री धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के कालिंद पर्वत माला पर स्थित है. यही यमुना का उद्गम स्थल भी माना जाता है इसलिए मां यमुना को शास्त्रों में कालिंदी भी कहा गया है. यमुनोत्री धाम का प्रवेश द्वार जानकीचट्टी स्थल बेहद खूबसूरत है जो श्रद्धालुओं की सारी थकाम को मिटा देता है. हर साल सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करते हुए धाम के कपाट विधि-विधान से खोले जाते हैं साथ ही इस पावन घड़ी का साक्षी बनने के लिए देश-विदेश के श्रद्धालु यहां यात्रा कर पहुंचते हैं.