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बिना सरकारी मदद के ग्रामीणों ने खोज निकाला गांव तक पानी लाने का नायब तरीका - रिलायंस फाउंडेशन

देवन्द्री राणा ने बताया कि गांव के लिए पाइपलाइन निर्माण में गांव के हर परिवार की महिला और कुछ पुरुषों ने श्रमदान किया. जिसके कारण आज ये दिन देखने को मिला है. वहीं सभी ग्रामीणों ने सहयोग करने के लिए निजी कंपनी की जिला टीम का भी धन्यवाद किया है.

गांव वालों ने खुद की मेहनत से तैयार की पाइपलाइन.
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Published : Mar 29, 2019, 1:57 PM IST

उत्तरकाशी: करीब 20 सालों से पीने के पानी के लिए तरस रहे जामक गांव के ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के गांव तक पानी पहुंचाया. गांव के ही करीब 50-60 साल के बुजुर्ग अमरा देवी, देवन्द्री राणा, पूर्णि और दिलीप सिंह ने पहले गांव से दूर जंगल में पीने के पानी की स्त्रोत ढूंढ़ा. जिसके बाद इन लोगों ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. इन लोगों ने खुद के अथक प्रयास से श्रमदान कर जंगल से गांव तक करीब तीन किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई. जिसके बाद गांव वालों को सालों बाद पीने का पानी नसीब हुआ.


इस पाइपलाइन के रख रखाव के लिए गांव की जल समिति प्रत्येक परिवार से 30 रुपये शुल्क वसूलती है. जिससे पानी के टैंकों और लाइन की मरम्मत का काम होता है. इस बहुआयामी योजना को लेकर एक निजी कंपनी ने ग्रामीणों को पाइप लाइनों और टैंक निर्माण के लिए संसाधनों की मदद की थी. जिसके बाद गांव में जल समिति का गठन किया गया. इस समिति का संचालन गांव की महिलाएं करती हैं. यह वही गांव है जहां 1991 के भूकम्प में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था.

गांव वालों ने खुद की मेहनत से तैयार की पाइपलाइन.


ईटीवी भारत की टीम से जामक गांव की ग्रामीण महिलाओं ने पाइप लाइन निर्माण के दौरान की यादें साझा की. बड़े खुश होते हुए महिलाओं ने कहा कि आज उनके गांव में उनकी मेहनत से पानी है. जिसके लिए उन्होंने बरसात, धूप में कड़ी मेहनत की है. जामक गांव की पूर्णि देवी बताती हैं कि एक साल पहले तक उनकी बहू-बेटियों को 2 किमी दूर जाकर सुबह शाम पानी लाना पड़ता था. जिसके बाद भी उन्हें पीने के लिए साफ पानी नसीब नहीं होता था.


गांव की एक अन्य महिला देवन्द्री राणा ने बताया कि गांव के लिए पाइपलाइन निर्माण में गांव के हर परिवार की महिला और कुछ पुरुषों ने श्रमदान किया. जिसके कारण आज ये दिन देखने को मिला है. वहीं सभी ग्रामीणों ने सहयोग करने के लिए निजी कंपनी की जिला टीम का भी धन्यवाद किया है. ग्रामीणों ने बताया कि कंपनी के सहयोग से गांव में 20 हजार और 10 हजार लीटर के दो टैंकों का निर्माण करवाया गया है. जिससे 24 घंटे गांव में पानी की सप्लाई चालू रहती है.


गांव के ही एक अन्य बुजुर्ग बताते हैं कि 2011 के बाद से ग्रामीण पीने के साफ पानी के लिए तरस गए थे. गांव की महिलाओं को पीने के पानी के लिए काफी दूर जाना होता था. जिससे लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं के बुलन्द हौसलों के आगे बड़ी सारी चुनौतियां छोटी पड़ गई. जिसके बात सभी ने गांव तक पाइपलाइन पहुंचाने का फैसला किया. जिसके बाद सभी के अथक प्रयास से आखिर गांव में पीने का साफ पानी मौजूद है.

उत्तरकाशी: करीब 20 सालों से पीने के पानी के लिए तरस रहे जामक गांव के ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के गांव तक पानी पहुंचाया. गांव के ही करीब 50-60 साल के बुजुर्ग अमरा देवी, देवन्द्री राणा, पूर्णि और दिलीप सिंह ने पहले गांव से दूर जंगल में पीने के पानी की स्त्रोत ढूंढ़ा. जिसके बाद इन लोगों ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. इन लोगों ने खुद के अथक प्रयास से श्रमदान कर जंगल से गांव तक करीब तीन किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई. जिसके बाद गांव वालों को सालों बाद पीने का पानी नसीब हुआ.


इस पाइपलाइन के रख रखाव के लिए गांव की जल समिति प्रत्येक परिवार से 30 रुपये शुल्क वसूलती है. जिससे पानी के टैंकों और लाइन की मरम्मत का काम होता है. इस बहुआयामी योजना को लेकर एक निजी कंपनी ने ग्रामीणों को पाइप लाइनों और टैंक निर्माण के लिए संसाधनों की मदद की थी. जिसके बाद गांव में जल समिति का गठन किया गया. इस समिति का संचालन गांव की महिलाएं करती हैं. यह वही गांव है जहां 1991 के भूकम्प में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था.

गांव वालों ने खुद की मेहनत से तैयार की पाइपलाइन.


ईटीवी भारत की टीम से जामक गांव की ग्रामीण महिलाओं ने पाइप लाइन निर्माण के दौरान की यादें साझा की. बड़े खुश होते हुए महिलाओं ने कहा कि आज उनके गांव में उनकी मेहनत से पानी है. जिसके लिए उन्होंने बरसात, धूप में कड़ी मेहनत की है. जामक गांव की पूर्णि देवी बताती हैं कि एक साल पहले तक उनकी बहू-बेटियों को 2 किमी दूर जाकर सुबह शाम पानी लाना पड़ता था. जिसके बाद भी उन्हें पीने के लिए साफ पानी नसीब नहीं होता था.


गांव की एक अन्य महिला देवन्द्री राणा ने बताया कि गांव के लिए पाइपलाइन निर्माण में गांव के हर परिवार की महिला और कुछ पुरुषों ने श्रमदान किया. जिसके कारण आज ये दिन देखने को मिला है. वहीं सभी ग्रामीणों ने सहयोग करने के लिए निजी कंपनी की जिला टीम का भी धन्यवाद किया है. ग्रामीणों ने बताया कि कंपनी के सहयोग से गांव में 20 हजार और 10 हजार लीटर के दो टैंकों का निर्माण करवाया गया है. जिससे 24 घंटे गांव में पानी की सप्लाई चालू रहती है.


गांव के ही एक अन्य बुजुर्ग बताते हैं कि 2011 के बाद से ग्रामीण पीने के साफ पानी के लिए तरस गए थे. गांव की महिलाओं को पीने के पानी के लिए काफी दूर जाना होता था. जिससे लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं के बुलन्द हौसलों के आगे बड़ी सारी चुनौतियां छोटी पड़ गई. जिसके बात सभी ने गांव तक पाइपलाइन पहुंचाने का फैसला किया. जिसके बाद सभी के अथक प्रयास से आखिर गांव में पीने का साफ पानी मौजूद है.

Intro:हेडलाइन- जामक के ग्रामीणों का अपना पानी। Uk_uttarkashi_vipin negi_jaamka villagers generate water_28 march 2019.(exclusive) उत्तरकाशी। न कोई डिग्री धारक इंजीनियर था, और न ही कोई विशेषज्ञ। बस थे तो "जामक गांव" के ग्रामीण 50 से 60 वर्ष की उम्र की अमरा देवी,देवन्द्री राणा,पूर्णि 7 और 60 वर्ष के दलेप सिंह और अन्य ग्रामीण जो कि गत 20 वर्षों से पानी की बूंद बूंद के लिए तरस रहे थे। स्वयं गांव से करीब 3 किमी अंदर जंगल मे गए और पानी का स्रोत ढूंढा और गांव के लिए श्रमदान से बना दी 3 किमी की लंबी पेपलाइन,जो गांव का आज अपना पानी है और गांव की जल समिति प्रत्येक परिवार से पानी का माह का रु.30 रुपये शुल्क वसूलती है। जिससे पानी के टैंको और लाइन की मरम्मत का प्रबंधन चलता है। इस बहुआयामी योजना को लेकर रिलायंस फाउंडेशन ने ग्रामीणों को पाइपलाइनों और टैंक निर्माण के लिए संसाधनों की मदद की थी और गांव में जल समिति का गठन किया। जिसका संचालन जामक गांव की महिलाएं करती हैं। यह वही गांव है जहां 1991 के भूकम्प में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था।


Body:वीओ-1, etv bharat की टीम गांव पहुंची। तो गांव की ग्रामीण महिलाओं ने गांव की अपनी पाइपलाइन निर्माण की यादें साझा की,और कहा कि आज उनके गांव का अपना पानी है। जिसके लिए उन्होंने बरसात हो या धूप,जी तोड़ मेहनत की है। जामक गांव की पूर्णि देवी बताती हैं कि एक वर्ष पूर्व तक उनकी बहू बेटियों को 2 किमी दूर गड्ढेरे में पानी के लिए रोज सुबह शाम जाना पड़ता था। उसके बाद भी भी शुद्ध जल नहीं मिलता था। लेकिन आज गांव में हर व्यक्ति का अपना पानी है। गांव की देवन्द्री राणा ने बताया कि गांव के लिए पाइपलाइन निर्माण में गांव के हर परिवार की महिला और कुछ पुरुषों ने श्रमदान किया। जिससे आज घर की अन्य चीजों के साथ ग्रामीण श्रमदान से लाये पानी से नगदी फसलों की खेती भी कर रहे हैं। वहीं ग्रामीणों ने रिलायंस फाउंडेशन की जिला टीम का धन्यवाद भी किया कि उन्होंने पाइपलाइन निर्माण के लिए संसाधनों का सहयोग किया। जिससे कि आज गांव में 20 हजार और 10 हजार लीटर के दो टैंकों का निर्माण किया गया है। इन टेंकों से गांव में 24*7 पानी की सप्लाई चालू है।


Conclusion:वीओ-2, गांव के दलेप सिंह ने बताया कि 2011 के बाद से ग्रामीण स्वच्छ जल पीने के लिए तरस गए थे। वहीं पानी का स्रोत ऐसे स्थान पर था। जहां पर किसी प्रकार का कार्य करना बहुत खतरनाक साबित हो सकता था। लेकिन ग्रामीण महिलाओं के बुलन्द हौसलों के आगे बड़ी बड़ी चुनोतियाँ भी छोटी पड़ गई। रिलायंस फाउंडेशन के कमलेश गुरुरानी ने बताया कि जब 2016 में वह पहली बार जामक गांव में आये थे। तो ग्रामीणों ने बताया कि सबसे ज्यादा दिक्कत पानी की है। उसके बाद फाउंडेशन ने केस स्टडी कर ग्रामीणों के सामने पाइपलाइन का प्रस्ताव रखा। 2018 में ग्रामीणों की मेहनत से गांव में आज उनका अपना पानी है। साथ ही गांव की ग्राम जल समिति प्रत्येक परिवार से पानी का रु.30 शुल्क वसूलती है। जिससे कि पाइपलाइन का रखरखाव किया जाता है। यह उदाहरण अपने आप मे एक बेमिशाल है। बाईट- पूर्णि देवी,ग्रामीण जामक। बाईट- देवन्द्री राणा,ग्रामीण जामक। बाईट- दलेप सिंह,ग्रामीण जामक। बाईट- कमलेश गुरुरानी,रिलायंस फाउंडेशन।
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