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कब भरेंगे आराकोट आपदा के जख्म! घाटी में सड़कें बंद, सेब की फसल मंडी पहुंचाना हुआ मुश्किल - सरकार पर उपेक्षा का आरोप

उत्तरकाशी जिले के आराकोट बंगाण क्षेत्र में मुख्य सड़क के साथ लिंक मार्ग भी बाधित हैं. जिससे ग्रामीणों की परेशानियां बढ़ गई है. ऐसे में ग्रामीण अपनी सेब की फसल मंडी नहीं पहुंचा पा रहे हैं. उन्हें सेब के सड़ने का डर सता रहा है. इसके अलावा उन्होंने सरकार पर उपेक्षा का आरोप भी लगाया है.

Arakot disaster news
आराकोट आपदा के जख्म
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Published : Aug 9, 2022, 5:04 PM IST

Updated : Aug 9, 2022, 5:28 PM IST

उत्तरकाशीः आराकोट बंगाण आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक हालात जस के तस हैं. आलम ये है कि थोड़े से बारिश में ही मार्ग बाधित हो रहा है. जबकि, इनदिनों घाटी में सेब का सीजन चल रहा है, लेकिन जगह-जगह बाधित होने से बागवान अपनी सेब की फसल को मंडी नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इसके अलावा स्कूली बच्चे और ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं. वहीं, ग्रामीणों ने शासन और प्रशासन से जल्द से जल्द मार्ग खोलने की गुहार लगाई है.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटा सेब उत्पादन के लिए विशेष पहचान रखने वाले आराकोट-बंगाण क्षेत्र में ग्रामीणों को मिले आपदा के जख्म अभी तक भी नहीं भर पाया है. इस आपदा में क्षेत्र की लाइफलाइन आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन आज तक इसका पुनर्निर्माण और मरम्मत पूरा नहीं हो पाया है. वहीं, बीते चार दिन से आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग समेत अन्य लिंक रोड बाधित (Road Closed in Arakot area) है. इन मार्गों पर जगह-जगह भूस्खलन हुआ है. ऐसे में बागवान अपने नकदी फसल यानी सेब मंडी नहीं भेज पा रहे हैं. अब उन्हें डर है कि कहीं सेब सड़ ना जाए. हालांकि, जेसीबी मशीनों से मार्ग को खोलने का काम किया जा रहा है, लेकिन कब तक मार्ग सुचारू होगा कह नहीं सकते हैं.

आराकोट बंगाण क्षेत्र में सड़कें बंद.

वहीं, ग्रामीणों ने सरकार पर उपेक्षा का भी आरोप लगाया है. सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान ने बताया कि सड़क बंद होने से क्षेत्र के कई गांवों के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनका साफ कहना है कि कुछ ही दिनों में आपदा की बरसी भी आने वाली है, लेकिन अभी तक हालात नहीं सुधरे हैं. मनमोहन चौहान ने बताया कि आज भी एक बारिश से ही क्षेत्र में आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. आजतक सरकार और संबंधित विभागों ने कोई भी सुरक्षात्मक कार्य नहीं करवाए हैं. जिससे स्थिति सामान्य हो सके.

ये भी पढ़ेंः आराकोट बंगाण की बदहाल तस्वीर! पुल के तारों के ऊपर रेंगकर नदी को पार कर रहे लोग

CM धामी पुरोला तो आए लेकिन आपदाग्रस्त आराकोट आने की जहमत नहीं उठाईः सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान (Social Worker Manmohan Singh) समेत अन्य लोगों का आरोप है कि खुद सीएम धामी समेत कई नेता पुरोला तो आए, लेकिन पुरोला विधानसभा के आपदाग्रस्त क्षेत्र में आकर आपदा पीड़ितों से मिलना उचित तक नहीं समझा. उनका कहना है कि कई बार क्षेत्रीय शिष्टमंडल के माध्यम से सीएम धामी से मिलकर आपदा पीड़ितों की समस्याओं से अवगत भी करवा चुके हैं, लेकिन कोठीगाड़ क्षेत्र को नजर अंदाज किया जा रहा है.

साल 2019 में आई थी भीषण आपदा: गौर हो कि 18 अगस्त 2019 को आराकोट बंगाण के कोठीगाड़ क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें 20 लोग काल के गाल में समा गए थे. जबकि, कई घर जमींदोज हो गए थे. चिंवा, टिकोची, आराकोट और सनैल कस्बों में भारी मात्रा में मलबा आ गया था. इस आपदा में कोठीगाड़ पट्टी के माकुड़ी, डगोली, बरनाली, मलाना, गोकुल, धारा, झोटाड़ी, किराणू, जागटा, चिंवा, मौंडा, ब्लावट आदि गांवों में कृषि बागवानी तबाह हो गई थी. काश्तकारों की कई हेक्टेयर कृषि भूमि और सेब की फसल आपदा की भेंट चढ़ गई थी. कई मोटर मार्ग, पेयजल योजनाएं, पुल, अस्पताल, स्कूल आदि बह गए थे.

रेस्क्यू में दो हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त: इस दौरान संचार सुविधा की काफी कमी महसूस हुई थी. ग्रामीणों ने आपदा की जानकारी हिमाचल के नेटवर्क के जरिए दी थी. रेस्क्यू के दौरान कई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त घाटी में राहत और बचाव कार्य में जुटे थे. वहीं, दो हेलीकॉप्टर भी हादसे का शिकार हो गए थे. 21 अगस्त को पहले हेलीकॉप्टर हादसे में पायलट समेत तीन लोगों की जान गई थी. जबकि, 23 अगस्त को दूसरे हेलीकॉप्टर की आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी. हालांकि, इस आपात लैंडिंग में कोई जनहानि नहीं हुई थी, लेकिन हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचा था.

ये भी पढ़ेंः चिट्ठी-पत्री का नहीं आया जवाब, सीमांत गांवों को बस हिमाचल का 'सहारा'

सेब उत्पादन में विशेष पहचान: उत्तरकाशी जिले में करीब 21 से 23 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. जिसमें सबसे ज्यादा आराकोट बंगाण में होता है. यह घाटी फल पट्टी के रूप में जानी जाती है. यहां रॉयल डिलीसियस, रेड चीफ, स्पर, रेड गोल्डन, गोल्डन, हाईडेंसिटी के रूट स्टॉक आदि वैरायटी के सेब की पैदावार होती है. इसके अलावा नाशपाती, आड़ू, पूलम, खुबानी की खेती भी होती है. वहीं, तब तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष चौहान ने एक महीने तक आराकोट में कैंप कर युद्धस्तर पर क्षेत्र में कार्य कर वैकल्पिक व्यवस्था सुचारू की थी. इस आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी भी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हो पाई हैं.

उत्तरकाशीः आराकोट बंगाण आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक हालात जस के तस हैं. आलम ये है कि थोड़े से बारिश में ही मार्ग बाधित हो रहा है. जबकि, इनदिनों घाटी में सेब का सीजन चल रहा है, लेकिन जगह-जगह बाधित होने से बागवान अपनी सेब की फसल को मंडी नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इसके अलावा स्कूली बच्चे और ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे हैं. वहीं, ग्रामीणों ने शासन और प्रशासन से जल्द से जल्द मार्ग खोलने की गुहार लगाई है.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटा सेब उत्पादन के लिए विशेष पहचान रखने वाले आराकोट-बंगाण क्षेत्र में ग्रामीणों को मिले आपदा के जख्म अभी तक भी नहीं भर पाया है. इस आपदा में क्षेत्र की लाइफलाइन आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन आज तक इसका पुनर्निर्माण और मरम्मत पूरा नहीं हो पाया है. वहीं, बीते चार दिन से आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग समेत अन्य लिंक रोड बाधित (Road Closed in Arakot area) है. इन मार्गों पर जगह-जगह भूस्खलन हुआ है. ऐसे में बागवान अपने नकदी फसल यानी सेब मंडी नहीं भेज पा रहे हैं. अब उन्हें डर है कि कहीं सेब सड़ ना जाए. हालांकि, जेसीबी मशीनों से मार्ग को खोलने का काम किया जा रहा है, लेकिन कब तक मार्ग सुचारू होगा कह नहीं सकते हैं.

आराकोट बंगाण क्षेत्र में सड़कें बंद.

वहीं, ग्रामीणों ने सरकार पर उपेक्षा का भी आरोप लगाया है. सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान ने बताया कि सड़क बंद होने से क्षेत्र के कई गांवों के लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनका साफ कहना है कि कुछ ही दिनों में आपदा की बरसी भी आने वाली है, लेकिन अभी तक हालात नहीं सुधरे हैं. मनमोहन चौहान ने बताया कि आज भी एक बारिश से ही क्षेत्र में आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. आजतक सरकार और संबंधित विभागों ने कोई भी सुरक्षात्मक कार्य नहीं करवाए हैं. जिससे स्थिति सामान्य हो सके.

ये भी पढ़ेंः आराकोट बंगाण की बदहाल तस्वीर! पुल के तारों के ऊपर रेंगकर नदी को पार कर रहे लोग

CM धामी पुरोला तो आए लेकिन आपदाग्रस्त आराकोट आने की जहमत नहीं उठाईः सामाजिक कार्यकर्ता मनमोहन चौहान (Social Worker Manmohan Singh) समेत अन्य लोगों का आरोप है कि खुद सीएम धामी समेत कई नेता पुरोला तो आए, लेकिन पुरोला विधानसभा के आपदाग्रस्त क्षेत्र में आकर आपदा पीड़ितों से मिलना उचित तक नहीं समझा. उनका कहना है कि कई बार क्षेत्रीय शिष्टमंडल के माध्यम से सीएम धामी से मिलकर आपदा पीड़ितों की समस्याओं से अवगत भी करवा चुके हैं, लेकिन कोठीगाड़ क्षेत्र को नजर अंदाज किया जा रहा है.

साल 2019 में आई थी भीषण आपदा: गौर हो कि 18 अगस्त 2019 को आराकोट बंगाण के कोठीगाड़ क्षेत्र में बादल फटने से भारी तबाही मची थी. जिसमें 20 लोग काल के गाल में समा गए थे. जबकि, कई घर जमींदोज हो गए थे. चिंवा, टिकोची, आराकोट और सनैल कस्बों में भारी मात्रा में मलबा आ गया था. इस आपदा में कोठीगाड़ पट्टी के माकुड़ी, डगोली, बरनाली, मलाना, गोकुल, धारा, झोटाड़ी, किराणू, जागटा, चिंवा, मौंडा, ब्लावट आदि गांवों में कृषि बागवानी तबाह हो गई थी. काश्तकारों की कई हेक्टेयर कृषि भूमि और सेब की फसल आपदा की भेंट चढ़ गई थी. कई मोटर मार्ग, पेयजल योजनाएं, पुल, अस्पताल, स्कूल आदि बह गए थे.

रेस्क्यू में दो हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त: इस दौरान संचार सुविधा की काफी कमी महसूस हुई थी. ग्रामीणों ने आपदा की जानकारी हिमाचल के नेटवर्क के जरिए दी थी. रेस्क्यू के दौरान कई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त घाटी में राहत और बचाव कार्य में जुटे थे. वहीं, दो हेलीकॉप्टर भी हादसे का शिकार हो गए थे. 21 अगस्त को पहले हेलीकॉप्टर हादसे में पायलट समेत तीन लोगों की जान गई थी. जबकि, 23 अगस्त को दूसरे हेलीकॉप्टर की आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी. हालांकि, इस आपात लैंडिंग में कोई जनहानि नहीं हुई थी, लेकिन हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचा था.

ये भी पढ़ेंः चिट्ठी-पत्री का नहीं आया जवाब, सीमांत गांवों को बस हिमाचल का 'सहारा'

सेब उत्पादन में विशेष पहचान: उत्तरकाशी जिले में करीब 21 से 23 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है. जिसमें सबसे ज्यादा आराकोट बंगाण में होता है. यह घाटी फल पट्टी के रूप में जानी जाती है. यहां रॉयल डिलीसियस, रेड चीफ, स्पर, रेड गोल्डन, गोल्डन, हाईडेंसिटी के रूट स्टॉक आदि वैरायटी के सेब की पैदावार होती है. इसके अलावा नाशपाती, आड़ू, पूलम, खुबानी की खेती भी होती है. वहीं, तब तत्कालीन जिलाधिकारी आशीष चौहान ने एक महीने तक आराकोट में कैंप कर युद्धस्तर पर क्षेत्र में कार्य कर वैकल्पिक व्यवस्था सुचारू की थी. इस आपदा को तीन साल होने जा रहे हैं, लेकिन अभी भी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं हो पाई हैं.

Last Updated : Aug 9, 2022, 5:28 PM IST
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