उत्तरकाशी: गंगोत्री धाम (Uttarakhand Gangotri Dham) में साधना करने वालों की संख्या सबसे अधिक रहती है. इस बार शीतकाल में जो भी साधु-संत गंगोत्री धाम समेत आसपास की कंदराओं में रहेंगे, उन्हें अपना सत्यापन (Gangotri Dham Sadhu Verification) कराना होगा. गंगोत्री धाम में उत्तरकाशी पुलिस की ओर से पहली बार यह पहल की जा रही है.
गंगोत्री धाम (Gangotri Dham) के कपाट अक्षय तृतीया पर्व पर खुलते हैं और अन्नकूट पर्व पर शीतकाल के लिए बंद होते हैं. शीतकाल के दौरान गंगोत्री धाम में वर्षों से देश के अलग-अलग हिस्सों से आए साधु-संत साधना करते रहे हैं. गंगोत्री धाम के निकट कनखू, चीड़वासा, भोजवासा और तपोवन में भी साधु साधना करते हैं. परंतु इन साधुओं के बारे में प्रशासन के पास कोई जानकारी नहीं होती है. ऐसे में जब कभी कोई घटना घटित होती है, तो प्रशासन इन साधुओं के बारे में जानकारी जुटाता है. पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी (Uttarkashi SP Arpan Yaduvanshi) ने बताया कि गंगोत्री धाम के कपाट बंद हो गए है. अब सत्यापन की कार्रवाई शुरू की जाएगी.
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इस बार विश्व प्रसिद्ध चारधाम में शुमार गंगोत्री धाम के कपाट अन्नकूट पर्व पर दोपहर 12.01 बजे विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए (Gangotri Dham Kapat Closed) गए. जिसके बाद मां गंगा की डोली गंगोत्री से अपने शीतकालीन प्रवास स्थल मुखबा के लिए रवाना हुई. जिसके बाद शीतकाल में श्रद्धालु मुखबा में ही मां गंगा के दर्शन और पूजा-अर्चना का पुण्य लाभ अर्जित कर सकेंगे.
पौराणिक मान्यता: सतयुग में राजा भगीरथ के पूर्वज कपिल मुनि के श्राप से मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. मगर उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल रही थी. तब राजा को ऋषि ने कहा कि अगर स्वर्ग लोक से गंगा धरती पर आएं और उनका जल मृत शरीरों को स्पर्श करेगा, तो उन्हें मोक्ष मिलेगा. उसके बाद राजा भागीरथ ने गंगोत्री में 5 हजार 500 वर्ष तक कठोर तपस्या की. आज भी गंगोत्री में राजा की तपस्या स्थली भगीरथ शिला मौजूद है. उसके बाद गंगोत्री में भगवान शिव ने अपनी जटाओं को बिछाकर गंगा को धरती पर अवतरित किया. उसके बाद राजा भगीरथ आगे और मां गंगा की जलधारा उनके पीछे चल पड़ी. जिसके बाद ही राजा के पूर्वजों का उद्धार हो सका.